Wednesday 8 August 2018

सोमनाथ का बाणस्तंभ

सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर है.इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है. यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है. यह स्तंभ कब से वहाँ पर है ... बता पाना कठिन है.
  १२ ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग हैं सोमनाथ..! अनेकों बार  हमले हुए. उसे लूटा गया. सोना, चाँदी, हीरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए. इतनी संपत्ति लुटने के बाद भी हर बार सोमनाथ का शिवालय उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था ....
विशाल अरब सागर रोज भगवान सोमनाथ के चरण पखारता है.और गत हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लाँघी है. न जाने कितने आँधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये ..लेकिन किसी भी आँधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई है.लेकिन केवल इस वैभव के कारण ही सोमनाथ का महत्व नहीं है. 
*इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है. यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है. यह स्तंभ कब से वहाँ पर है ... बता पाना कठिन है.लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ है. उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा.
यह एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है. इस बाणस्तंभ पर लिखा है –
*‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत*
*अबाधित ज्योतिरमार्ग..’*
इस पंक्ति का सरल अर्थ यह है कि ‘सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्टिका तक), एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है'. ‘इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक  ‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है'.
यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था ..  सोचिये कि हम कितने समृद्धशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर सँजोये हुए हैं.. करीब डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था,इस पर विश्वास ही नहीं होता..!
उस जमाने में पृथ्वी को दक्षिणी ध्रुव हैं, यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहाँ से आया..? सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता है, यह जबरदस्त निर्धारण किसने किया होगा ..? कैसे किया..? .इसका अर्थ यह है कि  भारतीयों को पृथ्वी गोल हैं, इसका ज्ञान था. पृथ्वी को दक्षिण ध्रुव हैं (अर्थात उत्तर ध्रुव भी हैं) यह भी ज्ञान था.* यह कैसे संभव हुआ..? इसके लिए पृथ्वी का ‘एरिअल व्यू’ लेने का कोई साधन उपलब्ध था..? 
भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था. संपूर्ण दक्षिण एशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिन्ह पग पग पर दिखते हैं, उससे यह ज्ञात होता हैं कि भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा, सुमात्रा, यवद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे. सन १९५५ में गुजरात के ‘लोथल’ में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं. इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं.
सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण ध्रुव तक दिशादर्शन, उस समय के भारतियों को था यह निश्चित हैं.
लेकिन सबसे महत्वपूर्व प्रश्न सामने आता हैं कि *दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं, ऐसा बाद में खोज निकाला, या दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर, बिना अवरोध के सीधी रेखा जहाँ मिलती हैं, वहाँ पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया..?*
‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत, अबाधित ज्योतिरमार्ग.. जिसका उल्लेख किया गया हैं, वह ‘ज्योतिरमार्ग’ क्या है..? यह आज भी प्रश्न ही हैं..!
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