बस्तर में अधिकांशत देवगुड़ियों में गणेश या शाक्त प्रतिमायें ही प्राप्त होती है। मिरतुर एक ऐसा ग्राम है जहां पर ब्रम्हा, विष्णु और लकुलीश अवतार में शिव तीनों की प्रतिमायें आज भी सुरक्षित विद्यमान है। मिरतुर भी तत्कालीन नागयुगीन गढ़ था। नागयुगीन स्थापत्यकला के अवशेष मिरतुर एवं आसपास के ग्रामों में इन प्रतिमाओं के रूप में प्राप्त होते है।
मिरतुर ग्राम में ब्रम्हा विष्णु महेश (लकुलीश) तीनो देवताओ की एक साथ प्रतिमाये स्थापित होने के कारण इस का ऐतिहासिक महत्व कई गुना बढ़ जाता है.मिरतुर की ब्रम्हाजी की प्रतिमा भी दक्षिण् बस्तर के ढोलकल, गणेशजी प्रतिमा के समान ही स्वर्णिम नागयुग की महत्वपूर्ण प्रतीक है।
दक्षिण बस्तर के मिरतुर जैसे गांव मे ब्रम्हाजी की प्राचीन प्रतिमा होना बेहद ही अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय है ऐसा इसलिये क्योकि पूरे विश्व मे राजस्थान के पुष्कर मे ही ब्रम्हाजी का एकमात्र मन्दिर स्थित है. अन्यत्र मंदिरों के दिवारों पर भी ब्रम्हा की प्रतिमायें प्राप्त होती है। बस्तर में मिरतुर में ब्रम्हा की प्रतिमा प्राप्त होने से यह प्रतीत होता है कि नागशासकों ने यहां के मंदिरों में ब्रम्हाजी की प्रतिमायें स्थापित करवायी थी।
हिन्दुओं में तीन प्रधान देव माने जाते है- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा इस संसार के रचनाकार है, विष्णु पालनहार है और महेश संहारक है। लेकिन हमारे देश में जहाँ विष्णु और महेश के अनगिनत मंदिर है वही खुद की पत्नी सावित्री के श्राप के चलते ब्रह्मा जी का पुरे भारत में एक मात्र मंदिर है जो की राजस्थान के प्रशिद्ध तीर्थ पुष्कर में स्तिथ है।सावित्री ने अपने पति ब्रह्मा को ऐसा श्राप इसका वर्णन हमे पद्म पुराण में मिलता है। हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक एक समय धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसके बढ़ते अत्याचारों से तंग आकर ब्रह्मा जी ने उसका वध किया। लेकिन वध करते वक़्त उनके हाथों से तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी। इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा।
इस घटना के बाद ब्रह्मा ने संसार की भलाई के लिए यहाँ एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी यज्ञ करने हेतु पुष्कर पहुँच गए लेकिन किसी कारणवश सावित्री जी समय पर नहीं पहुँच सकी। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्री जी के नहीं पहुँचने की वजह से उन्होंने गुर्जर समुदाय की एक कन्या ‘गायत्री’ से विवाह कर इस यज्ञ शुरू किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं।
उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए। लेकिन उन्होंने नहीं लिया। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा। भगवान विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी ने विष्णु जी को भी श्राप दिया थाकि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण राम (भगवान विष्णु का मानव अवतार) को जन्म लेना पड़ा और 14 साल के वनवास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था.
मिरतुर मे गांव के आखिरी छोर मे एक प्राचीन तालाब के पास बरगद का विशाल पेड़ के नीचे एक चबुतरे मे ब्रम्हा विष्णु महेश तीनो आदि देवो की प्रतिमा स्थापित है. इस चबुतरे मे तीनो आदि देवो के अलावा सप्त मातरिका , सूर्य ,एक शिशविहीन घूडसवार तथा नन्दी की भग्न प्रतिमा भी स्थापित है।
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