Thursday, 23 August 2018

· good news

नागा ग्रुप ने ग्रेटर नागालैंड कि मांग को छोड़ दिया है, और सबका साथ सबका विकास की धारा में नागा विद्रोही भी जुड़ने को तैयार हो चुके है,
नरेंद्र मोदी सरकार एक के बाद एक देश में उठ रही अलगाववादी विचारधारा को अपनी नीतियों और निर्णयों से एकजुटता में परिवर्तित कर रही है.. 
कई वर्षों से यह विवाद चल रहा था नागा और सरकारों के बीच अलग ग्रेटर नागालैंड की मांग को के कर, जो अब सुलझता दिखाई दे रहा है...
Manish Soni
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दलितों और सवर्णों के बीच एक कठिन निर्णय...
सुप्रीम कोर्ट वामपंथियों का एक प्यादा है, जो एक ऐसी जगह बैठा है जहाँ से वह समाज के दो स्तंभों को चुनौती दे रहा है... उसे दलितों और सवर्णों के बीच लाकर बिठा दिया गया है....... शतरंज में एक स्थिति ऐसी होती है जिसे "Forking" कहते है, इस स्थिति में एक मोहरा एक ऐसी जगह रख दिया जाता है जहाँ से वह आपके दो में से किसी एक मोहरे को काटेगा ही काटेगा...तो आप क्या करते हैं ??
अब मोदी को चुनना था कि उनका कौन सा स्तंभ ज्यादा मजबूत है. और अंकगणित साफ कहता है कि दलित ज्यादा मजबूत स्तंभ हैं. उसे वामपंथी गिराना चाहते हैं और मोदी बचाना चाहते हैं.आपको गणित लगाना होता है कि उस समय आपको किस मोहरे की ज्यादा जरूरत है. इसका यह बिल्कुल अर्थ नहीं है कि दूसरा मोहरा आपके लिए बेकार था,उसके कटने का भी आपको दुख होता ही है. फिर भी खिलाड़ी को एक कठिन निर्णय लेना ही पड़ता है.
यह बिल्कुल निर्णायक क्षण है. अगर वामपंथी दलितों को तोड़ कर भीम-मीम समीकरण को पूरा करने में सफल हो गए पूरी बाजी जाएगी हाथ से.
और राजा को शह और मात होने के बाद बाकी मोहरों का क्या होता है? बिसात पलट दी जाती है, सारे मोहरे उलट कर डिब्बे में बंद कर दिए जाते हैं. फिर प्यादे का वही होता है जो भिश्ती का और जो वजीर का.
आप सोचिए, हारी हुई बाजी का वजीर बनने की जिद है या जीती हुई बाजी में प्यादा बनना मंजूर है ???
बाजी आपकी... , फैसला भी आपका ... Hardik Savani

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