Sunday, 5 August 2018

कम्युनल वायलेंस बिल कांग्रेस द्वारा हिंदुओं के दमन व् सफाये हेतु बनाया गया अस्त्र
आज मैं आपसे सांप्रदायिक हिंसा निवारण विधेयक यानी कम्युनल वायलेंस बिल के विषय में चर्चा करने जा रहा हूं, मेरा यह लेख उन राष्ट्रवादियों के लिए है जो कांग्रेस की हिंदू विरोधी व् हिंदुओं के दमन हेतु कांग्रेस द्वारा बनाई गई नीतियों और उसके इतिहास से अनभिज्ञ हैं और उन लोगों को समझाने का प्रयास है जो आज मोदी से असंतुष्ट व् रुष्ट हुए बैठे हैं तथा वो जो “रिबेल विदाउट कॉज़” बन भाजपा व् मोदी के धुर विरोधी बने बैठे हैं,
वैसे तो अधिकांश लोग यह जानते हैं कि कांग्रेस ने
मुस्लिमों द्वारा धर्म के नाम पर पाकिस्तान बनवाने के बावजूद उन्हें भारत में बसाया था और हिंदू कोड बिल लाकर हिंदुओं के अधिकारों को सीमित किया और मुसलमानों को चार शादी, मौखिक तीन तलाक, हलाला, मुताह, हज सब्सिडी, अपने धार्मिक शैक्षिक संस्थान खोलने व चलाने का अधिकार, हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाने का अधिकार दिया था,
मुसलमानों की मस्जिद, मदरसे, मजारे टैक्स की सीमाओं से बाहर रखी गई थीं, किंतु हिंदुओं के मंदिरों पर ट्रस्ट बनाकर उनपर आधिपत्य जमा लिया गया और उनकी संपत्ति और कमाई को टैक्सेबल बना दिया गया, और मंदिरों को कोई धार्मिक शैक्षिक संस्था चलाने की स्वतंत्रता के वंचित कर दिया था, अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिमों को सस्ते एजुकेशन लोन उनके मदरसों को सरकारी आर्थिक सहायता और व्यवसाय हेतु सस्ते सरल लोन की व्यवस्था की गई, और भारत की हिंदू आबादी को इन सुविधाओं से वंचित रखा गया
किंतु सोनिया-राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस की यूपीए-2 जब सत्ता में थी तब कांग्रेस ने पहले से भी दस कदम आगे बढ़ते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए कि कांग्रेस सदैव सत्ता में बनी रहे कांग्रेस ने ऐसी नीतियां व् कानून बनाने का निर्णय लिया जिससे कि उसके राजनीतिक अस्तित्व पर कभी कोई आंच ना आए और वो सदैव भारत की सत्ता में बनी रहे, कांग्रेस यह भली प्रकार जानती थी कि केवल हिंदू वोट बैंक ही उसे सत्ता से बाहर कर सकता है क्योंकि इतनी क्षमता और संख्याबल केवल हिंदू के पास है,
अतः कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने चाटुकारों को सम्मिलित कर एक पैनल बनाया, जिसका काम था सरकार को नए कानून बनाने का सुझाव देना, उस पैनल को नाम दिया गया नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC)इसमें चुन-चुनकर हिंदू विरोधी, इस्लामिस्ट, कम्युनिस्ट और कांग्रेसियों को स्थान दिया गया और इस काउंसिल की अध्यक्ष थी सोनिया गांधी जो खुद एक गैर हिन्दू रोमन कैथोलिक है,
वर्ष 2011 में इसी सोनिया गांधी की नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ने एक ड्राफ्ट बिल बनाया जिसका नाम था कम्युनल वायलेंस बिल इसे हिंदी में सांप्रदायिक हिंसा निवारण विधायक 2011 का नाम दिया गया,
इस बिल के प्रावधान ना केवल एकपक्षीय, अन्यायपूर्ण व् तुगलकी थे अपितु पूर्ण रूप से घोर हिंदू विरोधी थे, इस बिल का उद्देश्य भारत की हिंदू आबादी का दमन करना, उनकी शक्ति को सीमित करना, तथा हिंदुओं को भारत में दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखने का था
वह तो भला हुआ कि वो बिल भाजपा ने संसद में पास नहीं होने दिया अन्यथा बहुसंख्यक हिंदू समाज की सुरक्षा अल्पसंख्यकों के रहमों करम पर रहती और कांग्रेस, एमआईएम, मुस्लिम लीग जैसी कई अन्य हिंदू विरोधी पार्टियां इस बिल के द्वारा हिंदुओं को प्रताड़ित कर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करती और हिंदुओं का इस देश में जीवन नर्क समान हो जाता, और वो बिल जिहादी और हिंदू विरोधी तत्वों के लिए एक उत्प्रेरक का काम करता, और वे निर्भय व् बेखौफ होकर भारत की हिंदू आबादी को निशाना बनाते और उनके विरुद्ध मनचाहे अपराध करते,
अब मैं आपको उस कम्युनल वायलेंस बिल कानून के तकनीकी पहलुओं से परिचित करवाता हूं
इस बिल का सबसे विवादास्पद भाग था इसमें दी गई “समूह” की परिभाषा, जिसमें केवल मजहबी और भाषाई अल्पसंख्यकों को सम्मिलित किया गया था, यानी भारत कि बहुसंख्यक हिंदू आबादी को उस “समूह” की परिभाषा से बाहर रखा गया था, इस बिल का प्रावधान था कि सांप्रदायिक हिंसा कि स्थिति में केंद्र सरकार के पास शक्ति होगी कि वो राज्य सरकार को भंग कर राष्ट्रपति शासन तत्काल लागू कर दे
उस कानून का ड्राफ्ट बिल पहले से यह मानकर चल रहा था कि बहुसंख्यक हिंदू समाज के लोग आक्रामक, सांप्रदायिक, युद्धउन्मादी व् दमनकारी है,
यानि वो बिल बहुसंख्यक हिंदुओं को पहले से ही अपराधी मान रहा था, वो बिल कहता था कि सांप्रदायिक हिंसा केवल बहुसंख्यक हिंदू ही अल्पसंख्यकों के विरुद्ध करते हैं, और अल्पसंख्यक कभी भी बहुसंख्यक हिंदुओं के विरुद्ध कोई हिंसा कर ही नहीं सकते,और ना ही कभी करते हैं,
यानी कि इस कानून के अंतर्गत अगर कभी भी देश में कहीं भी, कोई सांप्रदायिक हिंसा हुई, तो हिंसा करने वाला अपराधी सदैव बहुसंख्यक हिंदू ही माना जाएगा, चाहे वास्तविक दोषी कोई भी हो,
अर्थात बिल के इस प्रावधान व परिभाषा के अनुसार यदि कोई अपराध बहुसंख्यक हिंदू समाज के व्यक्ति द्वारा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किया गया तो वह तो दंडनीय अपराध होगा,
किंतु यदि वही अपराध किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति ने बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के व्यक्ति के विरुद्ध किया तो वह कोई दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा,
अब आप भली प्रकार समझ सकते हैं यह कानून कांग्रेस का किस स्तर का हिंदू विरोधी अस्त्र था,
सभी देशों में कानून सबके लिए एक समान होते हैं किंतु यह भेदभाव से पूर्ण था और यह कानून कांग्रेस के हिंदुओं के प्रति सोच, हिंदुओं के प्रति नफरत, द्वेष, और घृणा को उजागर करने वाला व दर्शाने वाला था,
इस कानून में सांप्रदायिक भेदभाव का स्तर यह था की हिंदुओं के विरुद्ध हुए किसी अपराध को अपराध नहीं माना गया था, विश्व के किसी भी लोकतंत्र व सभ्य समाज में अपराध का दंड अपराधी के धर्म व मजहब पर कभी निर्भर नहीं होता और कानून व् नियम सबके लिए एक समान होते हैं, तथा अपराध, अपराध होता है चाहे वो बहुसंख्यक करें या फिर अल्पसंख्यक,
किंतु कांग्रेस ने आरोपी के मजहब के आधार पर पक्षपात और भेदभाव पूर्ण कानून बनवाकर रखा था?
और इस तुगलकी बिल को लागू करने के लिए एक 7 सदस्यों की राष्ट्रीय अथॉरिटी गठित होनी थी और उसके सदस्यों में से 4 सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होते, जिसमें की चेयरमैन और वाइस चेयरमैन सम्मिलित थे, और इसी तर्ज पर राज्यों में भी ऐसी ही 7 सदस्यों की राज्य अथॉरिटी भी बनती,
जिसका अर्थ हुआ की अथॉरिटी की सदस्यता व्यक्ति के धर्म मजहब और वर्ग पर आधारित होती, यानी कि वहां भी सांप्रदायिक भेदभाव,
और क्योंकि इस कानून के अनुसार आरोपी सदैव बहुसंख्यक हिंदू होते और न्याय सदैव अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य करते, तो ऐसी परिस्थिति में पूर्ण संभावना थी की जो न्याय किया जाता वह एकतरफा व् पक्षपातपूर्ण होगा।
किसी भी शिकायत की स्थिति में इन अथॉरिटी के पास छापा मारने और जांच करने का अधिकार होता और इन अथॉरिटी के पास राज्य व केंद्र सरकार को एडवाइजरी जारी करने की शक्ति भी होती
उस कानून के अंतर्गत जांच के दौरान पालन की जाने वाली प्रक्रिया भी विवादास्पद और संदेहास्पद थी जैसे कि
💥 शिकायतकर्ता का नाम उसकी पहचान उसका पता आरोपी को नहीं बताया जाता यानी कि किसी आरोपी को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके विरुद्ध शिकायत और मुकदमा किसने दायर किया
💥 शिकायतकर्ता अपने घर बैठकर आरोपी के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकता था
💥 शिकायतकर्ता का बयान केवल कोर्ट के सामने रिकॉर्ड होता
💥 इस कानून के सरकारों को सांप्रदायिक हिंसा का अंदेशा भर होने पर संदेशों और कॉल्स को ट्रैक करने ब्लॉक करने टेलीफोन और इंटरनेट सर्विसेज को रोक देने की शक्ति दे देता
💥 यदि किसी भी हिंदू के विरुद्ध सांप्रदायिक हिंसा के आरोप लगते तो उसी क्षण से उसे दोषी मान लिया जाता जब तक कि वह अपने आप को निर्दोष साबित ना कर दे जिसका अर्थ यह हुआ कि केवल एक शिकायत को ही सबूत मान लिया जाना था
💥 सरकारी अधिकारियों पर बिना सरकार की स्वीकृति के इस कानून के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा सकता था
💥 और उस कानून के द्वारा केंद्र सरकार किसी भी सांप्रदायिक हिंसा की शिकायत आने पर राज्य की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती थी
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यदि वह बिल संसद से पारित हो जाता तो बहुसंख्यक हिंदू समाज के विरुद्ध बहुत बड़े स्तर पर इसका दुरुपयोग होना तय था, अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी व्यक्ति बिना किसी सबूत के उस कानून के अंतर्गत किसी भी बहुसंख्यक समाज के हिंदू के विरुद्ध कोई भी झूठी शिकायत जैसे नफरत फ़ैलाने का आरोप, हमला करने का आरोप या उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने का आरोप लगाकर, झूठा मुकदमा दायर करवा सकता था और आरोपी हिंदू को यह पता भी नहीं चलता कि उसके विरोध मुकदमा किसने दायर करवाया है,
इस बिल में इतने लूप होल्स थे की अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस बिल का अनुचित लाभ उठाते क्योंकि वह भली प्रकार से जानते कि वह कुछ भी कर ले इस कानून के अंतर्गत उन पर कोई कार्यवाही नहीं होने वाली, इसके अलावा कट्टरपंथी जिहादी भी इस कानून के लूप होल्स और कमजोरियों और इसकी सीमित क्षमता का लाभ उठा कर आतंकवादी आतंकी
कृत्य और हमले कर बड़ी ही सरलता से बच निकलते, यानी हिंदुओं की स्थिति वन में विचरण करती बकरी जैसी होती जो कभी भी किसी मांसाहारी का शिकार हो सकती है,
यह सभी बिंदु दर्शाते है की यह बिल पूरी तरह से भेदभावपूर्ण और घोर पक्षपाती था और इसे पढ़ने के बाद यह समझना कठिन नहीं कि यह बिल मजहबी और जातीय आधार पर भेदभाव करता था और उस कानून के लागू होने पर देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए इसके परिणाम बहुत ही घातक सिद्ध होते
उस कम्युनल वायलेंस बिल के कानून बनने की परिणीति ये होती कि कोई अल्पसंख्यक किसी बहुसंख्यक हिंदू की पिटाई करे, उससे लूट व् छिनैती करे, दूकान मकान जमीन व् उसकी सम्पत्ति पर कब्जा करे, हत्या करें, बलात्कार करे, सामूहिक बलात्कार करे, यौन शोषण करें, घर से उठाकर ले जाए, घर जला दे, तो उस अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति पर कोई मुकदमा नहीं होता और इसे अपराध नहीं माना जाता ना ही उस व्यक्ति को कोई सजा मिलती।
अंत में मैं सभी हिंदू मोदी विरोधियों, दलितों व् सामान्य वर्ग के हिंदुओं से मात्र एक प्रश्न पूछना चाहता हूं की, मान लो यदि भाजपा व् मोदी 2019 का चुनाव हार गये, तो क्या कोई यह गारंटी दे सकता हैं कि कांग्रेस सत्ता में आने के बाद दोबारा उस हिन्दू विरोधी कम्युनल वायलेंस बिल को लाने का प्रयास नहीं करेगी ? और यदि कांग्रेस 2019 का चुनाव जीतकर यह बिल लाने में में सफल हो गई तो दलित हिंदू और सामान्य वर्ग के हिंदू दोनों की दुर्दशा होना तय है।
:🇮🇳Rohan Sharma🇮🇳

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