Sunday, 19 August 2018


उस दिन मैंने देखा कि अहसान फरामोशी क्या होती है..
जून 2016 में हम अंडमान यात्रा पर थे....उस दिन भी तेज बारिश और तेज़ हवा भी थी...टूर आपरेटर ने सूचना दी कि तूफान जैसे मौसम में दूसरे द्वीप को जाने वाला जहाज़ कैंसिल हो गया है....परिजनों को होटल में छोड़कर मैं एक छतरी लेकर बरसते पानी मे निकल पड़ा...दिल मे इच्छा हुई कि नेवी के हवाई अड्डे की ओर चला जाये...कोई 2 किलोमीटर की दूरी थी..पानी बरसने की रफ्तार कम हो गई थी...मगर अनेक जालीदार टोपियों और काले बुरकों को हेलीपेड की तरफ तेज़ रफ़्तार से जाते देख मेरी सहज उत्सुकता जाग उठी...मैं भी उस भीगती हुई भीड़ का हिस्सा बन गया..
दरअसल हुआ यो था कि कुछ मोमिन मछुआरे अपनी #जीपीएस वाली नाव लेकर एक दिन पूर्व मछली पकड़ने निकले थे...आज जब तूफान आया तो यह मछुआरे अंडमान से 60-70 नॉटिकल मील दूर खुले समुद्र में थे...हवा और पानी के थपेड़ों से नाव के परखच्चे उड़ गए थे... मौत सामने थी...जीपीएस ने लाभ दिया...नेवी को नाव टूटने और 5 मोमिन मछुआरों के जीवनों के खतरे में होने की सूचना प्राप्त हो गई...बेहद खराब मौसम में नेवी के #हेलीकॉप्टर गंतव्य स्थान पर पहुचे...
मोमिन मछुआरों को दहाड़ते समुद्र से सुरक्षित एयरलिफ्ट किया गया और हेलीकाप्टर उन पांचों मछुआरों को लेकर अंडमान के नौसेना के हवाई अड्डे पर लौटा...जहां टोपियों और बुरकों के साथ मैं भी मौजूद था..दरअसल यह टोपिया और बुर्के उन मछुआरे के परिजन, मोहल्लेवाले और दोस्त-अहबाब थे ,जिनकी जान नेवी के पायलटों ने बचाई थी..जो इसके बाद हुआ....मेरे लिए एक दुःखद आश्चर्य था...
पांचों मोमिन मछुआरे जो शक्ल-सूरत से पढ़े-लिखे लग रहे थे...पैंट-शर्ट पहने थे...तुरंत हवाई अड्डे पर पर ही घुटने के बल बैठकर नमाज़ की पोजीशन पर आ गये... साथ की दर्जनों की मुस्लिम भीड़ भी "अल्लाह का लाख-लाख शुक्रिया "...माशाल्लाह कहते हुए खुशी में "अल्लाह ओ अकबर " के नारे लगाने लगी... शायद पायलेट उम्मीद करते होंगे कि मोमिनों की भीड़ धन्यवाद स्वरूप उन्हें कंधों पर उठा लेगी... क्योकि कुछ क्षणों की देर...और पायलटों की झिझक इन मछुआरों की जान ले लेती...खुद अपनी जान पर खेल कर मोमिन मछुआरों की जान बचाई गई थी...मगर यहाँ तो सिर्फ अल्लाह और ख़ुदा का ही शुक्रिया हो रहा था...
चंद मिनटों में टोपियां और बुर्के उन मोमिन मछुआरे को लेकर रवाना हो गई... पायलेट ठगे देखते रह गए....मैं पायलटों की स्तब्धता देखता रह गया...उस दिन मैंने देखा कि अहसान फरामोशी क्या होती है...मोमिन मानस कभी भारतीय सेना.... नौसेना... वायुसेना या पुलिस की अहसानमंद नहीं होगा...इस भारतीय धरती के लिए वह कभी शुक्रगुज़ार नहीं होंगे... उनके लिए जो कुछ है ,अल्लाह ही है...और कोई नहीं...
दरअसल यह कहानी आज मुझे इसलिए याद आई क्योकि आज #केरल में मैंने मोमिन औरतों को फिर एक हिन्दू नौजवान मछुआरे की #पीठ पर #पैर #रखकर NDRF की नाव पर चढ़ते देखा...यही सीन मैंने #श्रीनगर बाढ़ के दौरान भी देखा था... जब घाटी में सेना पर पत्थर फेकने वाली औरतों को सेना की वर्दी पहने एक सैनिक की पीठ पर पैर रखकर#कश्मीरी_औरतें सेना के ट्रक पर चढ़ रही थीं...बाद में इन्ही कश्मीरी लोगों ने सेना के मुंह पर थूक दिया और सैकड़ों सैनिकों की जाने ले ली थी...
Deep Kumar

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