प्रकाशन का व्यवसाय अभी भी वामियों से दबा हुआ है।
वाम और इस्लाम पर शंकर शरण जी को कितने लोगों ने पढ़ा है? यू ट्यूब पर उनके घंटा-सवा घंटा के भाषण उपलब्ध हैं, कितनों ने सुने हैं ? उनकी किताबें न सस्ती हैं और न सतही हैं, लेकिन ठोस ज्ञान से ओतप्रोत हैं।
वामी साहित्य का देशज भाषाओं में अनुवाद नहीं हुआ है और देश की बहुसंख्या जनता को अँग्रेजी नहीं आती।
इन दोनों बातों का परिणाम यही है कि इनके चेहरे से, इनके कारनामों से और इनके एजेंडे से आप अपरिचित हैं।
डॉक्यूमेंटेड इतिहास पर अभी भी इनकी पकड़ है जिसका दीर्घकालीन नुकसान हम समझना नहीं चाहते क्योंकि अभी इसी वक्त हमें उससे कुछ नुकसान नहीं लग रहा।
एक अमेरिकन कहावत है – if you can’t lick ‘em, join ‘em. अर्थ है – अगर आप किसी को हरा नहीं सकते तो उसके साथ हो जाइए।
सत्तर साल हमारे बाप दादा उनको जॉइन ही करते रहे और उनको ही इस्तेमाल कर के हम अपनी ही जड़ें खुदवाते रहें।
आज भी जहां जॉइन करने का ऑफर आता है तो तुरंत स्वीकृत होता है और उसका जिस तरह समर्थन किया जाता है वह… चलिये, उसे मनोरंजक कह देते हैं।
जनता, सर्वहारा आदि के पुरोधा वामी… आप उन्हें समाजवादी भी कह सकते हैं। क्या किया है उन्होंने आप के साथ, यह तो आप समझ गए ही हैं।
और यही सोच समझ में न आए इसलिए आप को अँग्रेजी सीखने से वंचित रख दिया। और टीवी पर यही, बढ़िया कॉन्वेंटिया धाँसू अँग्रेजी में लफ्फाज़ी करते दिखते हैं -जिस लफ्फाज़ी से आप प्रभावित होते हैं कि देखो, कैसे चीर-फाड़ रहा है।
क्या किया उन्होने? वैसे पहले भी बताया था, फिर से बता रहा हूँ कि मैं कभी किसी कॉन्वेंट का विद्यार्थी नहीं रहा, फिर भी मेरी अँग्रेजी अच्छी है। केंद्रीय विद्यालय, CBSE आदि भी नहीं, वो हमारे पिता की हैसियत नहीं थी।
गोखले एजुकेशन सोसायटी द्वारा संचालित एक स्कूल का विद्यार्थी रहा हूँ, जो स्कूल अब विद्यार्थी न मिलने के कारण बंद भी हो गया। पुत्र की शिक्षा भी माधवराव भागवत हाईस्कूल की है और उसकी अँग्रेजी भी अच्छी है।
कारण यही था कि शिक्षक ईमानदार थे। मराठी शिक्षक ही थे लेकिन अँग्रेजी के जानकार थे और बच्चों को सिखाना है, महज उनके सामने रटकर ड्यूटी पूरी हो गयी ऐसे समझनेवाले नहीं थे।
उत्तर प्रदेश बिहार के भी शिक्षक कर्मठ हुआ करते थे, लेकिन समाजवाद के नाम पर दर्जा गिराया गया और करोड़ों छात्रों की जिंदगियाँ बर्बाद कर दी। न अँग्रेजी समझे और न इनकी गतिविधियां।
जो समझे वो यह भी समझे कि लड़कर फायदा नहीं, समाज सुधारेगा नहीं, अपन अपनी जिंदगी सुधार लें। देखते देखते ये भी सिस्टम का हिस्सा कब बन गए पता भी नहीं चला। और इन लाभार्थियों से रिश्ते जोड़ता समाज ही उनकी ढाल भी बनता चला।
वाम को आप ने जगह दी, समय दिया फिर वह भी इस्लाम की तरह का ही नुकसान करता है। बहरहाल, आनेवाला समय कठिन है लेकिन क्षणिक या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए टूटना सब का नुकसान करेगा। वो कैसे इसपर अलग से चर्चा करेंगे।
वाम और इस्लाम पर शंकर शरण जी को कितने लोगों ने पढ़ा है? यू ट्यूब पर उनके घंटा-सवा घंटा के भाषण उपलब्ध हैं, कितनों ने सुने हैं ? उनकी किताबें न सस्ती हैं और न सतही हैं, लेकिन ठोस ज्ञान से ओतप्रोत हैं।
वामी साहित्य का देशज भाषाओं में अनुवाद नहीं हुआ है और देश की बहुसंख्या जनता को अँग्रेजी नहीं आती।
इन दोनों बातों का परिणाम यही है कि इनके चेहरे से, इनके कारनामों से और इनके एजेंडे से आप अपरिचित हैं।
डॉक्यूमेंटेड इतिहास पर अभी भी इनकी पकड़ है जिसका दीर्घकालीन नुकसान हम समझना नहीं चाहते क्योंकि अभी इसी वक्त हमें उससे कुछ नुकसान नहीं लग रहा।
एक अमेरिकन कहावत है – if you can’t lick ‘em, join ‘em. अर्थ है – अगर आप किसी को हरा नहीं सकते तो उसके साथ हो जाइए।
सत्तर साल हमारे बाप दादा उनको जॉइन ही करते रहे और उनको ही इस्तेमाल कर के हम अपनी ही जड़ें खुदवाते रहें।
आज भी जहां जॉइन करने का ऑफर आता है तो तुरंत स्वीकृत होता है और उसका जिस तरह समर्थन किया जाता है वह… चलिये, उसे मनोरंजक कह देते हैं।
जनता, सर्वहारा आदि के पुरोधा वामी… आप उन्हें समाजवादी भी कह सकते हैं। क्या किया है उन्होंने आप के साथ, यह तो आप समझ गए ही हैं।
और यही सोच समझ में न आए इसलिए आप को अँग्रेजी सीखने से वंचित रख दिया। और टीवी पर यही, बढ़िया कॉन्वेंटिया धाँसू अँग्रेजी में लफ्फाज़ी करते दिखते हैं -जिस लफ्फाज़ी से आप प्रभावित होते हैं कि देखो, कैसे चीर-फाड़ रहा है।
क्या किया उन्होने? वैसे पहले भी बताया था, फिर से बता रहा हूँ कि मैं कभी किसी कॉन्वेंट का विद्यार्थी नहीं रहा, फिर भी मेरी अँग्रेजी अच्छी है। केंद्रीय विद्यालय, CBSE आदि भी नहीं, वो हमारे पिता की हैसियत नहीं थी।
गोखले एजुकेशन सोसायटी द्वारा संचालित एक स्कूल का विद्यार्थी रहा हूँ, जो स्कूल अब विद्यार्थी न मिलने के कारण बंद भी हो गया। पुत्र की शिक्षा भी माधवराव भागवत हाईस्कूल की है और उसकी अँग्रेजी भी अच्छी है।
कारण यही था कि शिक्षक ईमानदार थे। मराठी शिक्षक ही थे लेकिन अँग्रेजी के जानकार थे और बच्चों को सिखाना है, महज उनके सामने रटकर ड्यूटी पूरी हो गयी ऐसे समझनेवाले नहीं थे।
उत्तर प्रदेश बिहार के भी शिक्षक कर्मठ हुआ करते थे, लेकिन समाजवाद के नाम पर दर्जा गिराया गया और करोड़ों छात्रों की जिंदगियाँ बर्बाद कर दी। न अँग्रेजी समझे और न इनकी गतिविधियां।
जो समझे वो यह भी समझे कि लड़कर फायदा नहीं, समाज सुधारेगा नहीं, अपन अपनी जिंदगी सुधार लें। देखते देखते ये भी सिस्टम का हिस्सा कब बन गए पता भी नहीं चला। और इन लाभार्थियों से रिश्ते जोड़ता समाज ही उनकी ढाल भी बनता चला।
वाम को आप ने जगह दी, समय दिया फिर वह भी इस्लाम की तरह का ही नुकसान करता है। बहरहाल, आनेवाला समय कठिन है लेकिन क्षणिक या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए टूटना सब का नुकसान करेगा। वो कैसे इसपर अलग से चर्चा करेंगे।
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