Monday, 2 November 2015

हरप्रीत सिंह इंग्लैंड में रहता था।
उसके साथ उसकी माँ और बाबूजी भी रहा करते थे।
अचानक उसकी माँ चल बसी
तो उसने माँ का पार्थिव शरीर बक्से में पैक करवा कर अपने गाँव भेजा।
गाँव में उसके भाई मनप्रीत सिंह ने बक्सा खोला तो देखा कि बक्से में माँ की लाश तो थी, लेकिन एक इंच जगह भी खाली नहीं थी। माँ के हाथ छाती पर थे और अंगुलियों में एक चिट्ठी फँसी थी।
मनप्रीत ने ऊँची आवाज़ में वह चिट्ठी पढ़नी शुरू की।
"प्यारे भाई मनप्रीत, जसप्रीत, सुखविंदर और परमिंदर,
माफ़ करना मैं ख़ुद नहीं आ सका क्योंकि मेरी तनख़्वाह काट दी जाती।
मैं माँ को बक्से में इसलिए भेज रहा हूँ, क्योंकि वह चाहती थी कि उसका क्रियाकर्म गाँव में ही हो।
लाश के नीचे इंपोर्टेड चॉकलेट के कई पैकेट रखे हैं, इसे बच्चों में बाँट देना।
यहाँ अखरोट अच्छे मिलते हैं इसलिए तुम्हें बक्से में अखरोट के भी दो बड़े पैकेट मिलेंगे।
माँ के पैरों में तुम्हें दो जोड़े सैंडल के और एक जोड़ा रीबॉक जूतों का बंधा मिलेगा।
सैंडल संतो मौसी और राजवंत कौर के लिए हैं, और जूते मोहिंदर के लिए हैं। शायद साइज़ ठीक ही होगा।
माँ ने चार जींस पहनी हुई हैं,
एक तुम्हारे लिए, एक जसप्रीत और बाक़ी दोनों सुखविंदर और परमिंदर के लिए है।
माँ के एक हाथ में स्विस घड़ी होगी,
जिसे प्रीतो भाभी ने मंगाया था।
जीतो ने जो नेकलेस मंगाया था वह माँ के गले में है,
पम्मी ने जो कान की बालियाँ मंगाई थीं वह माँ के कानों में हैं।
उन्हें ये सारी चीज़ें निकाल कर दे देना।
माँ कै पैरो में छः जोड़ी मोज़े हैं,
उन्हें मेरे भतीजों के बीच बाँट देना।
माँ ने छः टी-शर्ट भी पहन रखे हैं,
उन्हें मेरे सालों को दे देना।
अगर किसी और चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे बता देना,
आजकल बाबूजी की तबीयत भी ज़रा ठीक नहीं रहती"।

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