Thursday, 18 January 2018

जब सरदार पटेल यरवदा जेल में थे उसी समय अप्रैल 1941 से अमदाबाद में एक भीषण हिन्दू मुस्लिम दंगा हुआ जिसमें हिन्दुओं ने जानमाल की बहुत क्षति उठायी। 
सरदार को जब जेल में इस दंगे की सूचना मिली तो उन्हें बहुत व्यथा हुई। उनके मन में प्रश्नों का तूफान उठ खड़ा हुआ। 'मुस्लिम उपद्रवकारियों में इतना साहस कहां से आया ? 
ब्रिटिश अधिकारियों ने उनका उत्पात क्यों नहीं रोका ? 
हिन्दुओं ने इतनी कायरता का परिचय क्यों दिया ? 
इस दंगे में जितने हिन्दू मारे गए यदि उसके आधे भी साहस के साथ प्रतिरोध करने के लिए खड़े हो जाते तो क्या मरने वालों की संख्या कम नहीं हो जाती ?"
किंतु सरदार इन प्रश्नों का उत्तर देने से पहले ही पुन: भारत छोड़ो आंदोलन के अन्तर्गत कारावास में पहुंच गये।
1945 में जब वे बाहर निकले तो घटनाचक्र बहुत आगे बढ़ चुका था।
हिन्दू समाज असंगठित, निशस्त्र एवं कायर अहिंसा में जकड़ा हुआ पड़ा था और उधर 1939 से 1945 तक कांग्रेस नेतृत्व के ब्रिटिश सरकार से संघर्ष का लाभ उठाकर मुस्लिम लीग के नेतृत्व में मुस्लिम समाज पूर्ण तथा संगठित एवं सशस्त्र हो चुका था।
मुस्लिम समाज हिंसक शक्ति के सहारे मातृभूमि का विभाजन करने के लिए कटिबद्ध था।
सरदार ने गृह मंत्रालय संभाला।
मुस्लिम लीग ने ह्यसीधी कार्रवाईह्ण के रूप में हिंसक सामर्थ्य का प्रदर्शन किया।
पंजाब से लेकर पूर्वी बंगाल तक साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी।
लाखों निर्दोष हिन्दू फिर से मुसलमानों के हाथों मारे गये।
सरदार ने गृहमंत्री होकर भी अपने को असहाय पाया।
उन्होंने देखा कि किस प्रकार समस्त ब्रिटिश अधिकारी एवं उनके द्वारा नियंत्रित प्रशासकीय तंत्र मुस्लिम हिंसा की पीठ थपथपा रहा था।
गांधी जी नोआखली में पड़े थे।
वहां सरदार के विरुद्ध उनके कान भरे जाने लगे।
गृहमंत्री के नाते सरदार ने दृढ़ता से काम लेना चाहा।
किंतु नेहरू और मौलाना आजाद सरदार के विरुद्ध हो गये।
नेहरू जी स्वयं नोआखाली गये।
उन्होंने गांधी जी के कान खूब भरे।
गांधी ने सरदार को पत्र के माध्यम से कहा....
"आपके बारे में बहुत असंतोष सुना। आपके भाषण लोगों को नाखुश करने वाले और उकसाने वाले होते हैं। आपने हिंसा अहिंसा का भेद नहीं रखा। तलवार का जवाब तलवार से देने का न्याय आप लोगों को सिखाते हैं। जब मौका मिलता है मुस्लिम लीग का अपमान करने से नहीं चूकते। यह सब सच हो तो बहुत हानिकारक है।"
खैर इसके बाद सरदार के समक्ष विभाजन की बात थी।
नेहरू और गांधी का दवाब लगातार था,
विभाजन को सरदार पटेल ने क्यों स्वीकार किया ?
इसका उत्तर उनके एज करीबी ने दिया जिससे सरदार ने एक सुबह टहलते हुए बात की
उन्होंने कहा ...
"यदि विभाजन को स्वीकार नहीं किया जाता तो नगरों और गांवों में भी लम्बा साम्प्रदायिक संघर्ष चलेगा। यहां तक कि सेना और पुलिस भी साम्प्रदायिक आधार पर बंट जाएगी। यदि यह संघर्ष टाला न जा सका तो हिन्दू अधिक असंगठित एवं कम कट्टर होने के कारण एक सुदृढ़ संगठन के अभाव में पराजित हो जाएंगे।"
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दोस्तों सरदार जैसा व्यक्तित्व भी हिंदुओं के अहिंसक होने की वजह से झुकने की मजबुुर हो गए
अगर हिंदुओं ने दंगे के समय मुसलमानों को पलट के जवाब दिया होता
तो शायद विभाजन से सरदार पलट सकते थे
और जिन्ना जैसो को अकेले ही सबक सिखा सकते थे
आज भी दुर्भाग्य है कि हिन्दू समाज अहिंसा का दामन तब भी पकडे रहते हैं
जब सामने वाला सिर्फ हिंसा चाहता है।

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