Sunday 21 January 2018

ईसाई मिशनरी ने अपने अथाह साधनों के दम पर सम्पूर्ण विश्व के सभी प्रकार के मीडिया में अपने आपको शक्तिशाली रूप में स्थापित कर लिया है। उन्हें मालूम है कि लोग वह सोचते हैं, जो मीडिया सोचने को प्रेरित करता है।
इसलिए किसी भी राष्ट्र में कभी भी आपको ईसाई मिशनरी द्वारा धर्म परिवर्तन के लिए चलाये जा रहे गोरखधंधों पर कभी कोई समाचार नहीं मिलेगा। जबकि भारत जैसे देश में दलितों के साथ हुई कोई साधारण घटना को भी इतना विस्तृत रूप दे दिया जायेगा। मानों सारा हिन्दू समाज दलितों का सबसे बड़ा शत्रु है।
हम दो उदहारणों के माध्यम से इस खेल को समझेंगे। पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई चर्च का बोलबाला है। रियांग आदिवासी त्रिपुरा राज्य में पीढ़ियों से रहते आये है। वे हिन्दू वैष्णव मान्यता को मानने वाले है। ईसाईयों ने भरपूर जोर लगाया परंतु उन्होंने ईसाई बनने से इनकार कर दिया।
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चर्च ने अपना असली चेहरा दिखाते हुए रियांग आदिवासियों की बस्तियों पर अपने ईसाई गुंडों से हमला करना आरम्भ कर दिया। वे उनके घर जला देते, उनकी लड़कियों से बलात्कार करते, उनकी फसल बर्बाद कर देते। अंत में कई रियांग ईसाई बन गए, कई त्रिपुरा छोड़कर आसाम में निर्वासित जीवन जीने लग गए।
पाठकों ने कभी चर्च के इस अत्याचार के विषय में नहीं सुना होगा। क्योंकि सभी मानवाधिकार संगठन, NGOs, प्रिंट मीडिया, अंतराष्ट्रीय संस्थाएं ईसाईयों के द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संचालित हैं। इसके ठीक उल्ट गुजरात के ऊना में कुछ दलितों को गोहत्या के आरोप में हुई पिटाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे उठाया गया जैसे इससे बड़ा अत्याचार तो दलितों के साथ कभी हुआ ही नहीं है।
रियांग आदिवासी भी दलित हैं। उनके ऊपर जो अत्याचार हुआ उसका शब्दों में बखान करना असंभव है। मगर गुजरात की घटना का राजनीतीकरण कर उसे उछाला गया।
जिससे दलितों के मन में हिन्दू समाज के लिए द्वेष भरे। इस प्रकार से चर्च अपने सभी काले कारनामों पर सदा पर्दा डालता है और अन्यों की छोटी छोटी घटनाओं को सुनियोजित तरीके से मीडिया के द्वारा प्रयोग कर अपना ईसाईकरण का कार्यक्रम चलाता है। इसके लिए विदेशों से चर्च को अरबों रूपया हर वर्ष मिलता है

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