सर, मैं आप से निवेदन करता हु, यहाँ से चले जाइये."
“Por favor, señor, le pido que, por favor, deje este lugar.”
यद्यपि मुझे स्पेनिश भाषा नहीं आती, फिर भी मैं अच्छी तरह से समझ सकता था कि वेटर किसी को रेस्तरां छोड़ने के लिए कह रहा था. क्योकि मुझे फ्रेंच आती है और दोनों भाषाए काफी मिलती जुलती है.
"सर आगे बढ़ें, मुझ पर एहसान करे ... ", “जाइये सर”, वेटर गिड़गिड़ाया.
मैं सपरिवार गोविंदा में था, एक शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां अगुआस कालिएन्ट्स में. अगुआस कालिएन्ट्स एक छोटा सा धूल भरा गांव है, पेरू की इंका सभ्यता का खोया हुआ प्रसिद्ध शहर माछु पिच्छू के बेस में बसा हुआ. पेरू भारत से कुछ 17,000 किलोमीटर दूर लैटिन अमेरिका का देश है.
गोविंदा रेस्तरां हरे कृष्ण - भगवान कृष्ण के भक्तों द्वारा - चलाया जाता है।
हालांकि हम उत्सुक थे, पर शिष्टाचार के कारण उस "व्यक्ति" की तरफ, जिसे वेटर जाने को कह रहा था - देखना नहीं चाहते थे.
फिर भी, जिज्ञासा हावी हो गयी और हमने उस दिशा में तिरछी आँखों से एक निगाह फेंक दी.
आखिर में, वह व्यक्ति बहुत ही अनिच्छा से अपनी जगह से उठा. अपनी पूंछ हिलाते हुए वह बाहर निकल गया.
वह एक कुत्ता था.
वेटर ने कुत्ते को धन्यवाद दिया. फिर, वह हमारा आर्डर लेना आया.
पेरू की, इसके शहर कुस्को, sacred valley और इसमें स्थित माछु पिच्छू की अविश्वसनीय सुंदरता की कई बेहतरीन यादें हैं.
लेकिन, यह घटना हमेशा हमारी चेतना में बसी हुई है और हमारे चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान ले आती है.
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“Por favor, señor, le pido que, por favor, deje este lugar.”
यद्यपि मुझे स्पेनिश भाषा नहीं आती, फिर भी मैं अच्छी तरह से समझ सकता था कि वेटर किसी को रेस्तरां छोड़ने के लिए कह रहा था. क्योकि मुझे फ्रेंच आती है और दोनों भाषाए काफी मिलती जुलती है.
"सर आगे बढ़ें, मुझ पर एहसान करे ... ", “जाइये सर”, वेटर गिड़गिड़ाया.
मैं सपरिवार गोविंदा में था, एक शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां अगुआस कालिएन्ट्स में. अगुआस कालिएन्ट्स एक छोटा सा धूल भरा गांव है, पेरू की इंका सभ्यता का खोया हुआ प्रसिद्ध शहर माछु पिच्छू के बेस में बसा हुआ. पेरू भारत से कुछ 17,000 किलोमीटर दूर लैटिन अमेरिका का देश है.
गोविंदा रेस्तरां हरे कृष्ण - भगवान कृष्ण के भक्तों द्वारा - चलाया जाता है।
हालांकि हम उत्सुक थे, पर शिष्टाचार के कारण उस "व्यक्ति" की तरफ, जिसे वेटर जाने को कह रहा था - देखना नहीं चाहते थे.
फिर भी, जिज्ञासा हावी हो गयी और हमने उस दिशा में तिरछी आँखों से एक निगाह फेंक दी.
आखिर में, वह व्यक्ति बहुत ही अनिच्छा से अपनी जगह से उठा. अपनी पूंछ हिलाते हुए वह बाहर निकल गया.
वह एक कुत्ता था.
वेटर ने कुत्ते को धन्यवाद दिया. फिर, वह हमारा आर्डर लेना आया.
पेरू की, इसके शहर कुस्को, sacred valley और इसमें स्थित माछु पिच्छू की अविश्वसनीय सुंदरता की कई बेहतरीन यादें हैं.
लेकिन, यह घटना हमेशा हमारी चेतना में बसी हुई है और हमारे चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान ले आती है.
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रास्ते में अपनी मां के साथ जाती बच्ची आम के पेड़ में आम देखती है.. आम खाने की जिद्द करती है.. माँ मना कर देती है.. ऊँचाई पे है आम बेटी.. छोड़ो इसे।... लेकिन बच्ची को आम खाने की जिद्द... इसे तो मैं तोड़ के ही दम लुंगी... पत्थर उठाई और पूरा दम लगा के लक्ष्य पे छोड़ दी.. एक ही बार में आम जमीन पर।.. माँ आश्चर्यचकित.. इतना सटीक निशाना ??!!
बच्ची घर आ कर बाँस के डंडों से धनुष बनाती और आम जामुन पे लक्ष्य भेदती.. और निशाना एकदम सटीक। .. दस साल की उम्र में एक निशानी का पारंपरिक गुण विकसित होना शुरू हुआ.. उन्हें नहीं मालूम कि इसकी कोई प्रतियोगिता भी होती है नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पे। लेकिन ये अपने आम जामुन के जरूरत के हिसाब से चलाती रही तीर-धनुष।
एक बार इन्हें पता चला कि लोहरदगा में जिला स्तरीय कोई तीरंदाजी प्रतियोगिता है, बस वहाँ जाने की जिद्द कर बैठी.. घर में पैसे नहीं.. पिता रिक्शा चालक.. पिता जी ने मना कर दिया.. लेकिन बच्ची ने हार नहीं माना.. विवश हो पिता ने 10 रुपये दिए और वो लोहरदगा गई और जीत कर आई।.. और यहाँ से शुरुआत होती है भारतीय तीरंदाज सनसनी राँची की बेटी,शिवनारायण महतो की बेटी दीपिका कुमारी का।
आज दीपिका किसी के परिचय की मोहताज़ नहीं है।
बच्ची घर आ कर बाँस के डंडों से धनुष बनाती और आम जामुन पे लक्ष्य भेदती.. और निशाना एकदम सटीक। .. दस साल की उम्र में एक निशानी का पारंपरिक गुण विकसित होना शुरू हुआ.. उन्हें नहीं मालूम कि इसकी कोई प्रतियोगिता भी होती है नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पे। लेकिन ये अपने आम जामुन के जरूरत के हिसाब से चलाती रही तीर-धनुष।
एक बार इन्हें पता चला कि लोहरदगा में जिला स्तरीय कोई तीरंदाजी प्रतियोगिता है, बस वहाँ जाने की जिद्द कर बैठी.. घर में पैसे नहीं.. पिता रिक्शा चालक.. पिता जी ने मना कर दिया.. लेकिन बच्ची ने हार नहीं माना.. विवश हो पिता ने 10 रुपये दिए और वो लोहरदगा गई और जीत कर आई।.. और यहाँ से शुरुआत होती है भारतीय तीरंदाज सनसनी राँची की बेटी,शिवनारायण महतो की बेटी दीपिका कुमारी का।
आज दीपिका किसी के परिचय की मोहताज़ नहीं है।
मैंने कुछ फोटोज और वीडियो संक्रांति के दिन अपलोड किए थे मंजूरा पंचायत,बोकारो में हुए बेझा-बिंधा(तीरंदाजी) प्रतियोगिता की।.. ये पारंपरिक प्रतियोगिता है जो पिछले कई वर्षों से चलती आ रही है।.. पहले प्रत्येक गांवों में ऐसी प्रतियोगिता हुआ करती थी जो कि अब कुछ ही गांवों में शेष बची हुई है।
गाँव का 'महतो' ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करते थे/हैं जिसमें विजयी प्रतिभागी को इनाम स्वरूप एक खेत दिया जाता था/है साल भर फसल उगाने के लिए।
इस बार वाले बेझा-बिंधा प्रतियोगिता में पहले ही राउंड में पहले ही तीर में प्रतियोगी ने 101डेग(92 मिटर्स) दूर में रखे लक्ष्य को भेद दिया और विजयी हुआ।
गाँव का 'महतो' ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करते थे/हैं जिसमें विजयी प्रतिभागी को इनाम स्वरूप एक खेत दिया जाता था/है साल भर फसल उगाने के लिए।
इस बार वाले बेझा-बिंधा प्रतियोगिता में पहले ही राउंड में पहले ही तीर में प्रतियोगी ने 101डेग(92 मिटर्स) दूर में रखे लक्ष्य को भेद दिया और विजयी हुआ।
लोगों का उत्साह इस दौरान देखते बनता है।.. लोग कई दिन पूर्व ही इसके अभ्यास में जुट जाते कि इस बार हम ही विजयी होंगे।.. बच्चे भी बड़ों को देखा-देखी तीरंदाजी के गुर सीखने लगते।.. अच्छे निशानेबाज भी बनते हैं, लेकिन ये बात दीगर कि इनपे सरकारी एजेंसियों की कभी नज़र पड़ती हैं।
इन्हीं बेझा-बिंधा प्रतियोगिता में से सुदूर चौड़ा गाँव, कसमार निवासी दस वर्षीय Karan Kumar Karmakar का तीर और धनुष के ऊपर प्यार का परवान चढ़ता है.. शुरू हो जाता अपने घर में रखे बाप-दादाओं के पारंपरिक धनुष-बाण के साथ खेलना।.. लोगों को कह-कह के निशाना लगाने को बोलता और एक ही तीर में लक्ष्यभेद डालता।.. गाँव के वरिष्ठ लोगों का इनपे ध्यान गया.. चर्चा थोड़ी-बहुत होने लगी.. और आगे तीरंदाजी में राज्य और देश के लिए कुछ कर-गुजरने का सपना भी देखने लगे ।
कॉलेज,जिला स्तर से इन्होंने आरंभ की यात्रा। और अपनी प्रतिभा बिखेरते गया.... वनवासी कल्याण आश्रम वालों ने इनकी मदद भी करी थोड़ा-बहुत।.. लेकिन आगे राह इतनी भी आसान नहीं थी।.. बेहद ही गरीब परिवार से संबंध रखने वाला लड़का.. आर्थिक तंगी.. लेकिन प्रतिभा कूट-कूट के भरी हुई।.. पारंपरिक धनुष में महारत रखने वाले लड़के के लिए राज्य और राष्ट्र स्तरीय टूर्नामेंटों के लिए मॉडर्न धनुष से जरा सामंजस्य बिठाने में वक़्त लगा.. ऊपर से इनके पास इतने पैसे नहीं कि मॉडर्न धनुष खरीद सके।.. लोगों ने जैसा बोला वैसा-वैसा ही हर कोई को चिट्ठी लिखता गया, सभी सरकारी महकमे में.. लेकिन कोई मदद को नहीं आया। .. धनुष खरीदने के लिए अपने पिता के तीन बेटों में से अपने हिस्से की जमीन को बेचने का फैसला लिया... इनकी खबरें अखबार में छपी.. तो धनबाद में आयकर विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने इन्हें धनबाद बुलाया और धनुष खरीदने में मदद की। और धनबाद में ही एक आर्चरी कोच से इनकी मुलाकात कराई।.. फिर वहाँ से ये आगे बढ़े.. आगे सरकारी रवैयों का भी क्या कहना।.. लम्बी-चौड़ी बातें हैं।.. इनपे चर्चा कभी अलग से हो जाएगी।
इन्हीं बेझा-बिंधा प्रतियोगिता में से सुदूर चौड़ा गाँव, कसमार निवासी दस वर्षीय Karan Kumar Karmakar का तीर और धनुष के ऊपर प्यार का परवान चढ़ता है.. शुरू हो जाता अपने घर में रखे बाप-दादाओं के पारंपरिक धनुष-बाण के साथ खेलना।.. लोगों को कह-कह के निशाना लगाने को बोलता और एक ही तीर में लक्ष्यभेद डालता।.. गाँव के वरिष्ठ लोगों का इनपे ध्यान गया.. चर्चा थोड़ी-बहुत होने लगी.. और आगे तीरंदाजी में राज्य और देश के लिए कुछ कर-गुजरने का सपना भी देखने लगे ।
कॉलेज,जिला स्तर से इन्होंने आरंभ की यात्रा। और अपनी प्रतिभा बिखेरते गया.... वनवासी कल्याण आश्रम वालों ने इनकी मदद भी करी थोड़ा-बहुत।.. लेकिन आगे राह इतनी भी आसान नहीं थी।.. बेहद ही गरीब परिवार से संबंध रखने वाला लड़का.. आर्थिक तंगी.. लेकिन प्रतिभा कूट-कूट के भरी हुई।.. पारंपरिक धनुष में महारत रखने वाले लड़के के लिए राज्य और राष्ट्र स्तरीय टूर्नामेंटों के लिए मॉडर्न धनुष से जरा सामंजस्य बिठाने में वक़्त लगा.. ऊपर से इनके पास इतने पैसे नहीं कि मॉडर्न धनुष खरीद सके।.. लोगों ने जैसा बोला वैसा-वैसा ही हर कोई को चिट्ठी लिखता गया, सभी सरकारी महकमे में.. लेकिन कोई मदद को नहीं आया। .. धनुष खरीदने के लिए अपने पिता के तीन बेटों में से अपने हिस्से की जमीन को बेचने का फैसला लिया... इनकी खबरें अखबार में छपी.. तो धनबाद में आयकर विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने इन्हें धनबाद बुलाया और धनुष खरीदने में मदद की। और धनबाद में ही एक आर्चरी कोच से इनकी मुलाकात कराई।.. फिर वहाँ से ये आगे बढ़े.. आगे सरकारी रवैयों का भी क्या कहना।.. लम्बी-चौड़ी बातें हैं।.. इनपे चर्चा कभी अलग से हो जाएगी।
करण भाई अंतर-विश्वविद्यालय,राज्य स्तरीय और नेशनल स्तर में ढेर सारे अवार्ड जीत चुके हैं।.. NIS,कोलकाता से बतौर डिप्लोमा ले अभी विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग में बतौर कोच की जिम्मवारी संम्भाल रहे हैं और झारखंडी माटी के पूतों को सवांरने में लगे हुए हैं.। .. फिलहाल इनका लक्ष्य नेक्स्ट ओलिंपिक है जहाँ ये भारत का नाम रौशन कर सके।
इतना ही नहीं कुछ ही दिनों में करण भाई अपने ही गाँव में एक आर्चरी एकेडमी खोल रहे हैं जहाँ इनके जैसे ही बच्चे आगे चल के राज्य और देश का नाम विश्व पटल पे लिखेंगे।
इतना ही नहीं कुछ ही दिनों में करण भाई अपने ही गाँव में एक आर्चरी एकेडमी खोल रहे हैं जहाँ इनके जैसे ही बच्चे आगे चल के राज्य और देश का नाम विश्व पटल पे लिखेंगे।
सार क्या है कि जो हमारी पारंपरिक चीजें थी उनमें हम महारत रखते हैं.. कुश्ती हो या तीरंदाजी।.. जिन्होंने भी परंपरा को जिया और संभाले रखा वही आज विश्व पटल पर चमक रहे हैं।
परंपरा को पुरातन कह के छोड़ना आधुनिकता कतई नहीं है, विशुद्ध निरा मूर्खता है।... इनका आयोजन होना ही चाहिए और वृहत पैमाने पे होना चाहिए, प्रोत्साहन मिलना चाहिए, तभी तो इनमें से दीपिका,करण, सुशील,योगेश्वर जैसे हीरे निकल के आएंगे।
परंपरा को पुरातन कह के छोड़ना आधुनिकता कतई नहीं है, विशुद्ध निरा मूर्खता है।... इनका आयोजन होना ही चाहिए और वृहत पैमाने पे होना चाहिए, प्रोत्साहन मिलना चाहिए, तभी तो इनमें से दीपिका,करण, सुशील,योगेश्वर जैसे हीरे निकल के आएंगे।
संघी गंगवा
खोपोली से।
खोपोली से।
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