कुछ न्यूज चैनल वाले शोर मचा रहे कि पद्मावत फिल्म मे कोई विवादास्पद सीन नही है, फिल्म मे राजपूतों का बखान ही किया गया है। जबकि ये सरासर झूठ है, ये न्यूज चैनल वालों को या तो इतिहास का ज्ञान नही है, या पैसों के लिये इन्होंने जमीर बेच खाया है।
फिल्म देखने वाले इतिहासकारों का कहना है कि फिल्म इतिहास छोडिये, मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत पर भी आधारित नही है, जिसका की दावा किया गया है।
पद्मावत की कथा मे दो सैन्य अभियान है, जिनमें राजपूतों की वीरता का वर्णन हुआ है। प्रथम, जब अलाउद्दीन खिलजी महारावल रतन सिंह को धोखे से कैद कर लेता है, और उन्हें छोडने के बदले रानी पद्मिनी की मांग करता है, तब उन्हें बचाने के लिये रानी पद्मिनी का भेष बनाकर राजपूत योद्धा बादल और उनके चाचा गोरा खिलजी के दल पर आक्रमण कर देते हैं, तथा रतन सिंह को छुडाने मे सफल होते हैं। इस लोमहर्षक युद्ध की घटना को फिल्म मे जगह ही नही दी गयी है, बल्कि इसके स्थान पर दिखाया गया है कि खिलजी रतनसिंह को कैद करके दिल्ली ले जाता हैं, जहाँ रानी पद्मिनी उन्हें छुडाने पहुंचती हैं, अलाउद्दीन खिलजी की बेगम दोनो को कैद से भागने मे मदद करती है। मतलब ये कि राजपूत योद्धाओं ने नही बल्कि अलाउद्दीन की बेगम ने रतन सिह को आजाद किया था, और रतनसिंह कायरों की तरह चुपके से भाग निकले थे। जबकि इतिहास या जायसी की पद्मावत मे रतनसिंह को दिल्ली ले जाये जाने का कोई जिक्र नही है।
दूसरे सैन्य अभियान मे जिसमें राजपूत सेना ने शाका अर्थात् मृत्यु आने तक युद्ध किया था, तथा रानी पद्मिनी ने जौहर किया था, उसमें इस घटना से फिल्मकार की सहमति न होने का डिस्कलमेयर लगा कर जबरदस्ती जौहर और सती प्रथा को एक दिखाने की धूर्तता की गयी है।
साथ ही अलाउद्दीन खिलजी को कामुक न दिखाकर एक ब्राह्मण को मुख्य षड्यन्त्रकारी दिखाया गया है, जो खिलजी को भडकाता है।
कुल मिलाकर ये पूरी फिल्म इतिहास को मलीन कर हिन्दू अस्मिता को अपमानित करने के लिये बनायी गयी है, इस फिल्म का केवल राजपूतों को ही नही बल्कि सभी हिन्दुओं को पुरजोर विरोध करना चाहिये।
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