सुप्रीम कोर्ट के वामपंथी चेहरे उजागर हो गए। इनका दर्द यह है कि चेलमेश्वर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में नहीं बन सकेंगे। इसका कारण यह है कि वह पहले सेवा निवृत जायेंगे। मिश्रा जी 20 अक्टुम्बर 2018 को सेवा निवृत होंगे चेलमेश्वर 22 जून 2018 को सेवा से मुक्त हो जायेंगे। भीमराज लोकुर केवल चालीस दिन तक मुख्य जज बन सकते है । उनके बाद गगोई का कार्यकाल भी एक साल से कम 17 नवम्बर 2019 तक होगा।
अब कपिल सिब्बल ने जो मांग की थी की सुनवाई जून 2019 के बाद की जावे, यह उस योजना का हिस्सा है। ताकि उस समय मुख्य जज रहे रंजन गोगोई और अयोध्या में बनाई जाये बाबरी मस्जिद,
कल ही प्रकाश करात ने बौखलाहट में कह दिया कि अयोध्या मसले में ये 4 जज होने चाहिए
प्रशांत भूषण ,कपिल सिब्बल ,चिदंबरम जैसे लोगों के कई धंधे सुप्रीम कोर्ट सहारे चलते थे। वे सब बंद होते जा रहे है और लगता है मिश्रा जी की सेवा निवृति के बाद मोदी सरकार ने अरविन्द शरद बोबडे को मुख्य जज बनाने का निश्चय कर लिया है। उसमें मिश्रा जी सहमति मिल गई है
यह इस प्रेस कांफ्रेंस का अघोषित दर्द था। वामपंथियों की दुकान न्याय पालिका में बंद होने की आहट से वे खाल से बाहर आ गए। तभी डी राजा ने आज चेलमेश्वर से मुलाकात करी है। यह वही डी राजा है जिसकी बेटी JNU में देश तोड़क गेंग में नारेबाजी कर रही थी।
दूसरा दर्द यह है कि मिश्रा जी बनाई बेंच राम मंदिर का फैसला कर लेगी तो मोदी सरकर राम मंदिर बना लेगी। सो राम मंदिर का निर्माण कैसे रोका जाए। उस पर फैसले को कैसे रोका जाए उसका यह नाटक आज की पहली कथा है।
देखिए लोकतंत्र को कहां कहां पर खतरा है ? :- ---
●जस्टिस दीपक मिश्रा ने 1984 दंगों के केस का पुनः संज्ञान लिया। (लोकतंत्र को खतरा है)
●हालिया, जस्टिस दीपक मिश्रा ने संज्ञान लेकर वेबसाइट के खिलाफ FIR दर्ज करने का दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस भंडारी की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के "तरक़्क़ी में आरक्षण" के फैसले को आंकड़ों के आधार पर निरस्त किया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस मिश्र उस बेंच के प्रमुख थे जिसने 1993 के मुंबई ब्लास्ट के मुजरिम याकूब मेमन की फांसी की सजा को उम्र कैद की याचिका को खारिज कर दिया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●5 मई 2017 को जसिट्स मिश्रा की खंडपीठ ने निर्भया केस के चार गुनहगारों को फांसी की सजा बरकरार रखी। साथ ही बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाए जाने की जरूरत बताई। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस मिश्रा उन सात जजों की पीठ के प्रमुख थे, जिसने कोलकाता हाईकोर्ट के जसिट्स सीएस करनन को छह महीने के लिए जेल भेजा। सनद रहे, जस्टिस करनन ने "दलित कार्ड" खेलने की नाकाम कोशिश की थी। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●अब राम मंदिर पर सुनवाई कर रहे हैं। ( लोकतंत्र को यहां पर भयंकर खतरा है )
भारत के नामचीन संविधान विद सोली सोराबजी ने इन चार जजों की हरकत की निंदा की और रिटायर जस्टिस आरएस सोढ़ी ने इन चार जजों के खिलाफ "महाभियोग" चलाए जाने की मांग कर दी है।
लोकतंत्र वाकई खतरे में है।
अब कपिल सिब्बल ने जो मांग की थी की सुनवाई जून 2019 के बाद की जावे, यह उस योजना का हिस्सा है। ताकि उस समय मुख्य जज रहे रंजन गोगोई और अयोध्या में बनाई जाये बाबरी मस्जिद,
कल ही प्रकाश करात ने बौखलाहट में कह दिया कि अयोध्या मसले में ये 4 जज होने चाहिए
प्रशांत भूषण ,कपिल सिब्बल ,चिदंबरम जैसे लोगों के कई धंधे सुप्रीम कोर्ट सहारे चलते थे। वे सब बंद होते जा रहे है और लगता है मिश्रा जी की सेवा निवृति के बाद मोदी सरकार ने अरविन्द शरद बोबडे को मुख्य जज बनाने का निश्चय कर लिया है। उसमें मिश्रा जी सहमति मिल गई है
यह इस प्रेस कांफ्रेंस का अघोषित दर्द था। वामपंथियों की दुकान न्याय पालिका में बंद होने की आहट से वे खाल से बाहर आ गए। तभी डी राजा ने आज चेलमेश्वर से मुलाकात करी है। यह वही डी राजा है जिसकी बेटी JNU में देश तोड़क गेंग में नारेबाजी कर रही थी।
दूसरा दर्द यह है कि मिश्रा जी बनाई बेंच राम मंदिर का फैसला कर लेगी तो मोदी सरकर राम मंदिर बना लेगी। सो राम मंदिर का निर्माण कैसे रोका जाए। उस पर फैसले को कैसे रोका जाए उसका यह नाटक आज की पहली कथा है।
देखिए लोकतंत्र को कहां कहां पर खतरा है ? :- ---
●जस्टिस दीपक मिश्रा ने 1984 दंगों के केस का पुनः संज्ञान लिया। (लोकतंत्र को खतरा है)
●हालिया, जस्टिस दीपक मिश्रा ने संज्ञान लेकर वेबसाइट के खिलाफ FIR दर्ज करने का दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस भंडारी की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के "तरक़्क़ी में आरक्षण" के फैसले को आंकड़ों के आधार पर निरस्त किया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस मिश्र उस बेंच के प्रमुख थे जिसने 1993 के मुंबई ब्लास्ट के मुजरिम याकूब मेमन की फांसी की सजा को उम्र कैद की याचिका को खारिज कर दिया। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●5 मई 2017 को जसिट्स मिश्रा की खंडपीठ ने निर्भया केस के चार गुनहगारों को फांसी की सजा बरकरार रखी। साथ ही बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाए जाने की जरूरत बताई। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●जस्टिस मिश्रा उन सात जजों की पीठ के प्रमुख थे, जिसने कोलकाता हाईकोर्ट के जसिट्स सीएस करनन को छह महीने के लिए जेल भेजा। सनद रहे, जस्टिस करनन ने "दलित कार्ड" खेलने की नाकाम कोशिश की थी। ( लोकतंत्र को खतरा है )
●अब राम मंदिर पर सुनवाई कर रहे हैं। ( लोकतंत्र को यहां पर भयंकर खतरा है )
भारत के नामचीन संविधान विद सोली सोराबजी ने इन चार जजों की हरकत की निंदा की और रिटायर जस्टिस आरएस सोढ़ी ने इन चार जजों के खिलाफ "महाभियोग" चलाए जाने की मांग कर दी है।
लोकतंत्र वाकई खतरे में है।
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