Monday, 8 January 2018

देह शूद्र है, मन वैश्य है, आत्मा क्षत्रिय है और परमात्मा ब्राह्मण।
इसलिए ब्रह्म परमात्मा का नाम है।
ब्रह्म से ही ब्राह्मण बना है।
जन्म के साथ अपने को ब्राह्मण समझ लेना , अज्ञान है । बुद्ध, जैनों के चौबीस तीर्थंकर, राम, कृष्ण;सब क्षत्रिय थे! क्यों? होना चाहिए सब ब्राह्मण, मगर थे सब क्षत्रिय। क्योंकि *ब्राह्मण* होने के पहले क्षत्रिय होना जरूरी है ! भोग यानी शूद्र। तृष्णा यानी वैश्य। संकल्प यानी क्षत्रिय। और जब संकल्प पूरा हो जाए, तभी समर्पण की संभावना है। तब समर्पण यानी *ब्राह्मण*। *ब्राह्मण* वह है जो शांत, तपस्वी और यजनशील हो।
जैसे वर्षपर्यंत चलनेवाले सोमयुक्त यज्ञ में स्तोता मंत्र-ध्वनि करते हैं वैसे ही मेढक भी करते हैं । जो स्वयम् ज्ञानवान हो और संसार को भी ज्ञान देकर भूले भटको को सन्मार्ग पर ले जाता हो, ऐसों को ही ब्राह्मण कहते हैं।
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ।यजुर्वेद।
वंदे मातरम
ये देश जितना चन्द्रगुप्त का है उतना ही चन्द्रगुप्त मौर्य का। जितना महाराणा उदयसिंह का है उतना ही पन्ना धाय का।
जितना बाबू कुंवर सिंह का है उतना ही बिरसा मुंडा का।
भारतीय इतिहास का पहला सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" जाति से शूद्र था, और उसे एक सामान्य बालक से एशिया का सम्राट बनाने वाला था चाणक्य एक ब्राम्हण।
डॉ आंबेडकर की सफलता के पीछे भी एक ब्राह्मण पंडित और एक क्षत्रिय राजा ही थे।
ऋषि वेद व्यास ब्राह्मण नहीं थे, जिन्होंने पुराणों की रचना की पँर भगवान गणेश उनके स्टेनो बने।
*लक्या हम शिव को ब्राह्मण कहें?
विष्णु कौन से समाज से थे और ब्रह्मा की कौन सी जाति थी?
क्या हम काली का माता और भैरव को दलित समाज का मानकर पूजना छोड़ दें?
आज के शब्दों का इस्तेमाल करें तो ये लोग दलित थे- ऋषि कवास इलूसू, ऋषि वत्स, ऋषि काकसिवत, महर्षि वेद व्यास, महर्षि महिदास अत्रैय, महर्षि वाल्मीकि ऋषि आदि ऐसे महान वेदज्ञ हुए हैं जिन्हें आज की जातिवादी व्यवस्था दलित वर्ग का मान सकती है।
ऐसे हजारों नाम गिनाएं जा सकते हैं जो सभी आज के दृष्टिकोण से दलित थे।
वेद को रचने वाले, स्मृतियों को लिखने वाले और पुराणों को गढ़ने वाले ब्राह्मण नहीं थे।
वामपंथी साहित्य पढ़कर कुछ लोग जातिवाद, छुआछूत और स्वर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराते हो। लेकिन यह बिल्कुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शस्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है।
क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है।
जब भी भारत्त देश सुव्यवस्थित चलने लगता है तो अनेक राजनीतिक, वामपंथी, सामाजिक संगठन जातिवाद और छुआछूत को और बढ़ावा देकर समाज में दीवार खड़ी करते रहे हैं।
दलितों को 'दलित' नाम हिन्दू धर्म ने नहीं दिया, इससे पहले 'हरिजन' नाम भी हिन्दू धर्म के किसी शास्त्र ने नहीं दिया।
इसी तरह इससे पूर्व के जो भी नाम थे वह हिन्दू धर्म ने नहीं दिए।
आज जो नाम दिए गए हैं वह पिछले 70 वर्ष की राजनीति की उपज है और इससे पहले जो नाम दिए गए थे वह पिछले 900 साल की गुलामी की उपज है।
बहुत से ऐसे ब्राह्मण हैं जो आज दलित हैं, मुसलमान है, ईसाई हैं। भारत ने 900 साल मुगल और अंग्रेजों की गुलामी में बहुत कुछ खोया है खासकर उसने अपना मूल धर्म और संस्कृति खो दी है। खो दिए हैं देश के कई हिस्से। जिन लोगों के अधीन भारतीय थे उन लोगों ने भारतीयों में फूट डालने के हर संभव प्रयास किए और इसमें वह सफल भी हुए।
अब आप यह भी जान ले कि हिन्दू धर्म के शास्त्र कौन से हैं। हिन्दुओं का धर्मग्रंथ मात्र "वेद" है। वेदों का सार "उपनिषद" है जिसे "वेदांत" कहते हैं और उपनिषदों का सार "गीता" है।
मनुस्मृति, पुराण, रामायण और महाभारत यह सम्पूर्ण विश्व् के मनुष्यों के लिए बनाये गए हैं। इन ग्रंथों में हिन्दुओं का इतिहास दर्ज है।
असल में यह काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते समाज का चित्रण है।
पूर्व में हमारे देश में परंपरागत कार्य करने वालों का एक समाज विकसित होता गया।
जिसने स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट मानने की भूल की है तो उसमें हिन्दू धर्म का कोई दोष नहीं है।
यदि आप धर्म की गलत व्याख्या कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं तो उसमें धर्म का दोष नहीं है।
प्राचीन काल में ब्राह्मणत्व या क्षत्रियत्व को वैसे ही अपने प्रयास से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं।
जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता है। जब तक कि वह आईएएस की परीक्षा नहीं दे देता।
ऐसा ही उस काल में गुरुकुल से जो जैसी भी शिक्षा लेकर निकलता था उसे उस तरह की पदवी दी जाती थी।
बाबा साहब का नाम लेकर आप दलितों को बरगला रहे हो तो सुन लो तुम तो शायद एक बार गलती से "जय भीम" बोल भी दोगो ... लेकिन उमर खालिद... केवल अल्लाह को सर्वोच्च मानने वाला, *वन्देमातरम्* गाने में ऐतराज करने वाला ... "जय भीम" कैसे बोलेगा??
बोल भी दिया तो ये सब पाखंड है क्योंकि कुछ माह पहले सितम्बर 2017 मे बिहार के एक मुस्लिम विधायक ने जय श्रीराम बोला तो मौलानाओं ने उसको मुस्लमान धर्म से बाहर कर दिया था।
जो मुस्लिम अल्लाहः के अलावा किसी के सामने सिर नही झुकाते अचानक वो बाबा अम्बेडकर जी के सामने कैसे सिर झुकाने लगे??
ये जेहादी लोग, जिन्होंने इस्लाम को फैलाने के लिए अनेक देशों में यजीदी, इसराइली, पारसियों को काट डाला, वो क्या दलितों को जीवित छोड़ेंगे?
जिग्नेश ने तो अपनी बहन का विवाह एक मुसलमान से करने को सहमती दिखाई पर "क्या उमर खालिद अपनी बहन का विवाह किसी हिन्दू/दलित से करने केलिए सहमत होगा" पुछिय ??

No comments:

Post a Comment