हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान :
प्रकृति भी अपना स्वभाव सृष्टि के हित में बदलती है, हमें भी अपना स्वभाव गरीबों के हित में बदलना चाहिए जैसे जरूरतमंदों को दान देकर मदद करना। बच्चों से दान देने की आदत डालनी चाहिए। डॉ.भागवत जी ने आगे कहा कि दुनिया में इन दिनों अपने-अपने पंथ और संप्रदाय को ही सर्वोपरि बताने की प्रवृति बढ़ी है जो गलत और अस्वीकारणीय है। भारत में भी अनेक जातियां, बोलियां और देवी-देवता हैं लेकिन इतनी विविधता में भी एकता के दर्शन होते है। ४० हजार सालों से भारत की पहचान उसकी संस्कृति, उसके पूर्वज हैं।
सुख की चाह में हम जो बटोर रहे हैं, उसमें से जरूरतमंदों को कुछ बांटने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत का चेहरा कोई पंथ या संप्रदाय नही हो सकता बल्कि संस्कृति ही हमारी पहचान है। उपरोक्त विचारों को हम आत्मसात करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नही कर सकती, हरा नही सकती। वर्तमान में दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं।
जब-जब हम भारत की लिए लड़े, हमारी एकता कायम रही, हमें कोई जीत नही सका लेकिन जैसे-जैसे हम पंथ, संप्रदाय, भाषा इत्यादि को लेकर लडऩे लगे, हमारा देश टूटने लगा। हमें हमारे पूर्वजों पर अभिमान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति तोड़ती है लेकिन समाज और संस्कृति व्यक्ति को जोड़ती है।.......
डॉ मोहन भागवत जी
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