Monday, 22 January 2018

हिन्दू ह्रदय सम्राट पृथ्वीराज चौहान,
दिल्ली को राजधानी बनाकर एकछत्र राज करने वाला अंतिम हिन्दू शासक,
महानतम हिन्दू राजपुत योद्वा
जन्म - 24 अक्टूबर,1149 ई. ,
बलिदान पर्व - बसंत पंचमी, 1192 ई.
पृथ्वीराज ने विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को कई बार पराजित किया। गोरी ने इस अपमान का बदला लेने के लिए तराइन (1192) के मैदान में धोखे से पृथ्वीराज को कैद कर अपना मुल्क ले गया। वहां पृथ्वीराज के साथ अत्यन्त ही बुरा सलूक किया गया। उसकी आंखें गरम सलाखों से जला दी। लेकिन पृथ्वीराज ने तब भी हार नहीं मानी। दुश्मन के दांत कैसे खट्टे किए जाते हैं वे इससे पूरी तरह से वाकिफ थे। अंधे होने के बावजूद गोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया। यह करने वे इसलिए सफल हुए क्योंकि राजकवि चंदबरदाई की यह योजना थी। चंदबरदाई ने गोरी तक तीरंदाजी कला के प्रदर्शन की बात पहुंचाई। गोरी ने इसके लिए मंजूरी दे दी। कहा जाता है गोरी के शाबास लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज ने गोरी पर शब्दभेदी बाण चलाया था। इसके बाद दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया।
अजमेर के चौहान राजवंश में पृथ्वीराज का जन्म हुआ। वे अपने पिता की शादी के पूरे 12 साल बाद 1149 में जन्मे थे। इन्हें राय पिथौरा भी कहा जाता है। हालांकि उन्हें मारने के लिए कई हमले हुए लेकिन दुश्मनों को हर बार मुंह खानी पड़ी। बचपन से पृथ्वीराज तीर और तलवारबाजी के शौकीन थे। कहा जाता है कि बाल अवस्था में ही शेर से लड़ाई की और उसे मार गिराया। बाद में चलकर इसी बालक ने युद्ध मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। जो इतिहास में महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
1166 से 1192 तक दिल्ली और अजमेर की हुकूमत पृथ्वीराज चौहान के हाथों में थी। वे चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे। जो उत्तरी भारत में एक क्षत्र राज करते थे। किंवदंतियों के अनुसार मोहम्मदगोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था। जिसमें 17 बार गोरी को पराजित होना पड़ा। हालांकि इतिहासकार युद्धों की संख्या के बारे में तो नहीं बताते लेकिन इतना मानते हैं कि गौरी और पृथ्वीराज में कम से कम दो भीषण युद्ध हुए थे। जिनमें प्रथम में पृथ्वीराज विजयी और दूसरे में पराजित हुआ था। वे दोनों युद्ध थानेश्वर के निकटवर्ती तराइन या तरावड़ी के मैदान में 1191 और 1192 में हुए थे।
युद्ध में पराजित होने के बाद पृथ्वीराज की किस प्रकार मृत्यु हुई। इस विषय में चंदबरदाई द्वारा लिखित "पृथ्वीराज रासो" कविता में पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर लिखा गया है।लेकिन चंदबरदाई के कविता में पिरोई जीवनी में इस अपमान का बदला किस तरह लेते हैं। इसका वर्णन किया गया है। चंदबरदाई के कहने पर ही गौरी ने तीरंदाजी कौशल प्रदर्शित करने के लिए सहमति दी थी। पृथ्वीराज को दरबार में बुलाया गया। वहां गोरी ने पृथ्वीराज से उसके तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के लिए कहा। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को कविता के माध्यम से प्रेरित किया। जो इस प्रकार है-
"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।"
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धसा. जिसके फलस्वरूप गोरी का प्राणांत हो गया।
इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
साभार एवं प्रेरणास्रोत - श्रीमान राजेन्द्र कुमार जी

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