Monday, 8 January 2018

महान क्रांतिकारी शहीद महाराजा नाहर सिंह
#वल्लभगढ़(फरीदाबाद-हरियाणा) एक बहुत ही शक्तिशाली #रियासत थी जिसके संस्थापक हिन्दू वीर महाराजा #बलराम सिंह थे।वल्लभगढ़ और भरतपुर रियासतों ने मिलकर जिहादियों से धर्म की रक्षा की थी।
महाराजा बलराम सिंह की 7 वीं पीढ़ी में 6 #अप्रैल 1821 को इस महान प्रतापी राजा नाहर सिंह ने #जन्म लिया था।उस समय देश पर अंग्रेजो का शाशन था।
नाहर सिंह के बचपन का नाम #नर सिंह था इनके ऊपर शिकार करते वक्त एक #शेर ने हमला कर दिया था।तब नर सिंह और इनके अंगरक्षक #हरचन्द गुर्जर ने शेर से टक्कर ली पर हरचन्द की मृत्यु हो गयी फिर #नर_सिंह ने शेर को #मार गिराया।उस समय ये मात्र 16 साल के ही थे।तब इनका नाम नर सिंह से नाहर सिंह हुआ।
उसके बाद उनका विवाह #कपूरथला रियासत के #सिख जाट #राजा की पुत्री #किशन कौर से कर दिया गया। 20 जनवरी 1839 को छोटी सी उम्र में उनका #राजतिलक हुआ और राजा बनते ही उन्होंने सेना को मजबूत करना शुरू कर दिया।बल्लभगढ़ रियासत का उस समय नाम बलरामगढ़ था जो इसके संस्थापक महाराजा बलराम सिंह के नाम पर पड़ा था।इस रियासत की ओर आँख उठाने की अंग्रेजों हिम्मत भी नही पड़ती थी।
महाराजा नाहर सिंह के नाम से अंग्रेज थर थर कांपते थे।
उन्होंने अंग्रेजो के अपनी रियासत में #घुसने पर भी #प्रतिबंध का फरमान जारी कर दिया था जो उस समय बड़े बड़े राजाओं के भी बस की बात नही थी।इसी बीच 1857 की क्रांति की योजना शुरू हुई उन्होंने गुड़गांव रेवाड़ी ग्वालियर फरुखनगर के राजाओं को एक #झंडे तले लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
18 मार्च 1857 को #मथुरा में राजाओं की एक गुप्त मीटिंग हुई जिसमें नाहर सिंह को शिरमौर बनाया गया और इस मीटिंग के आयोजक व अध्यक्ष वही थे।इस मीटींग में #तात्याटोपे भी शामिल थे।और बहादुर शाह जफर ने उन्हें दिल्ली के पश्चिमी हिस्से को चाक चौबंद रखने के लिए कहा।
क्रांति की तारीख 31 #मई रखी गई थी ताकि सब तक खबर पहुंचाकर पुरे देश में एक साथ क्रांति की जाये।मगर क्रांति पहले ही शुरू हो गई।जिससे अचानक से सब गड़बड़ा गया।मंगल पांडे शहीद हो गए।और उसके बाद उस बटालियन के ज्यादातर सैनिक नाहर सिंह की सेना में शामिल हो गए।
क्रांति शुरू होते ही नाहर सिंह ने अंग्रेजो के काफिले रोकने शुरू कर दिए।और कई बार अंग्रेजो को मकर पिता और भगाया।इस तरह वीर क्रांतिकारियों ने दिल्ली को अंग्रेजो के कब्जे से छुड़ा लिया व बहादुर शाह जफर को दिल्ली का बादशाह बना दिया गया।
दिल्ली 132 #दिन तक आजाद रही।
महाराजा ने आगरा से आती हुई अंग्रेज टुकड़ियों को भी काट दिया।जहाँ से अंग्रेज उनके सामने पहुंचे वही अंग्रेजी सेना का लहू नाहर की तलवार से लगा और विजय हुई।
नाहर सिंह ने दिल्ली की सीमा की सुरक्षा की और अंग्रेजो को वहां से नही घुसने दिया।इसलिए अंग्रेज उन्हें #आयरन_गेट_ऑफ़_दिल्ली कहने लगे।
अंग्रेजो ने फिर कुछ गद्दारो के साथ मिलकर योजना बनाई और दूसरी तरफ से जाकर बहादुर शाह जफर ने आत्मसमर्पण कर दिया और अंग्रेजो ने युद्ध विराम का का सफेद झंडा लहरा दिया ।और बहादुर शाह के खास आदमी इलाहीबख्श जो #गद्दार था को नाहर सिंह के पास भेजा गया।नाहर सिंह इन सब से अनजान थे।तो उस गद्दार ने महाराज को कहा कि आपको बहादुर शाह जफर ने बुलाया है अंग्रेजो से संधि की जायेगी।जब महाराज वहां पहुंचे तो नजारा कुछ और ही था।मौके का फायदा उठाकर धोखे से उन्हें 6 दिसम्बर 1857 को #बंदी बना लिया गया।
उन्हे अंग्रेजो ने कहा कि सत्ता वापिस कर दी जायेगी अगर अंग्रेजों की #अधीनता स्वीकार करो तो नाहर सिंह ने तेवर दिखाकर जवाब दिया कि मैं वो राजा नही जो देश के दुश्मनों के आगे झुक जाऊं।और जो देश धर्म से गद्दारी करे वो #जाट क्षत्रीय ही क्या?
फिर #चांदनी चौक पर उन्हें फांसी देने का प्रबंध किया गया।दिल्ली की जनता वहां खचाखच भर गई और भारत माता की जय और महाराजा नाहर सिंह की जय के नारों से #दिल्ली गूंज उठी।
अंग्रेज घबरा गए उन्होंने फांसी के फंदे पर भी राजा के सामने वही बात दोहराई।
पर उन्होंने साफ कहा इस देश का दुश्मन मेरा दुश्मन और मैं कभी दुश्मनों के आगे झुकता नही राज ही चाहिए होता तो मैं विद्रोह करता ही नहीं।
और दिल्ली की जनता को आह्वाहन करते हुए उन्होंने कहा कि देशवासियों एक चिंगारी पैदा करके जा रहा हूँ इससे आजादी की मशाल जलाए रखना।
एक नाहर सिंह मरेगा लाखो पैदा होंगे और इस अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकेगे।माँ भारती के हाथों में भारत का झंडा शान से लहराना चाहिए।
और फिर भारत माँ की जय का नारा लगाकर उन्होंने हंसते हुए ख़ुशी से फांसी का फंदा चूम लिया।
इस तरह एक महान क्रन्तिकारी महाराजा नाहर सिंह अपनी वीरता और देशभक्ति का किस्सा हमारे बीच छोड़ गए। उनके नाम पर हर साल मेला भी लगता है।
जय वीर नाहर सिंह।जय भारत माता।

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