Tuesday 24 July 2018

अक्टूबर 1920,कालीकट (मोपला) आज खिलाफत मंडल की सभा में पंजाब से *मौलाना अल्लाहबख्श* आए हुए थे, कालीकट के मुसलमानों ने खिलाफत मंडल के नेता *रामनारायण नंबूदरी* को समझाया कि अलाहबख्श के भाषण से पहले हिन्दू-मुस्लिम एकता दिखाने के लिए जुलूस में *अल्लाहबख्श की बग्घी को घोड़ों के बजाए हिन्दू नौजवानों द्वारा खिंचवाया जाए,
इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता का पूरे मुल्क में सुंदर संदेश जाएगा ।
नम्बूद्री राम नारायण खुश हुए, बग्घी में अल्लाहबख्श तनकर बादशाहों वाले अंदाज़ में बैठा था…….
मुस्लिम, सुभान अल्लाह-सुभान अल्लाह और अल्लाह-उ-अकबर का नारा लगाते चलते थे ! हिन्दू, अल्लाहबख्श के ऊपर फूलों की वर्षा कर रहे थे !
*हिन्दू युवक अल्लाहबख्श की बग्घी में घोड़ों की जगह जुते हुए पूरे कालीकट में अल्लाहबख्श को राजा की तरह यात्रा कराते रहे….. मुस्लिम गर्व से छाती फुलाए थे….*
हिन्दू, ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ का गीत गाते नहीं थकते थे….
बस एक छोटी सी हिंदुओं से गलती यह हो गई , वह यह कि एक नायर के मुंह से अल्लाह-उ -अकबर के बीच
‘वंदेमातरम’ का नारा निकल गया…..
मुस्लिम नौजवानों ने फौरन नायर को जुलूस के बीच से खींचकर निकाल दिया !
हिन्दू नेताओं ने आदेश दिया कि हिन्दू भी अल्ला – उ – अकबर का नारा लगाएंगे….
बड़ी मुश्किल से मुस्लिमों की नाराजी दूरकर जुलूस आगे बढ़ा, और महानन्दी अय्यर के घर पहुचा…… जहां मीटिंग थी…… जिसे सदारत कर रहे थे ।
*मौलाना अल्लाहबख्श को महानन्दी अय्यर ने सुझाव दिया कि चूंकि स्वराज आंदोलन भी जोरों पर है, अतः मीटिंग में खिलाफत के साथ-साथ ‘स्वराज’ पर चर्चा हो जाये…. मुल्ला एटखान बेहद नाराज हो गए…. कहने लगे कि यह तो हिंदुओं को मुस्लिमों के ऊपर लादने की साज़िश हो रही है… महानन्दी अय्यर ने अपनी ‘गलती’ की तुरंत क्षमा मांगी…..*
गांधी जी ने कहा था कि किसी भी हालत में खिलाफत तहरीक को सफल बनाना है…..
*सयाने अल्लाहबख्श ने कहा कि हिन्दू अगर सच्चा हिन्दू है, गांधी और खिलाफत तहरीर के लिए दिल से साथ है तो खिलाफत तहरीर के लिए ‘धन और अन्य संसाधन’ हिंदुओं को देने होंगे, क्योकि केरल के मोपला मुसलमान बहुत गरीब हैं ,*
सभा मे उपस्थित सभी हिंदुओं ने करतल ध्वनि से इस प्रस्ताव का स्वागत किया,
*महानन्दी अय्यर ने कहा की बेशक हिंदुओं को अपनी पत्नियों के ज़ेबर बेचने पड़ जाएं मगर खिलाफत तहरीर के लिए हिन्दू धन की कमीं नहीं होने देंगे ….. मगर चंदे की देखरेख के लिए कोई हिन्दू रखा जाता तो खिलाफत तहरीर में हिंदुओं की सहभागिता और दिखती ….. सभा में मौजूद सभी मुस्लिम क्रोध में आ गये…..*
*खिलाफत तहरीर पर पैसों की ताकत से हिन्दू कब्ज़ा करना चाहते हैं…. एक मौलाना खड़े होकर बोलने लगा…..*
*हिन्दू होने के नाते तुम्हारा हमे जज़िया देने का फर्ज बनता है ! हम इत्तेहाद दिखा रहे हैं तो तुम हिन्दू काफिर हमसे चालबाज़ी दिखा रहे हो….* तुम्हारे गांधी की वजह से हमने हिंदूओ को इस तहरीर में शामिल कर लिया है……
महानन्दी अय्यर फिर खड़े हुए उन्होंने अपनी ‘भारी गलती’ के लिए क्षमायाचना की…..
और तुरंत ही कालीकट के हिंदुओं की तरफ से दस हज़ार रु की रकम मुस्लिमों के हवाले की ….
मौलवी अल्लाहबख्श ने कहा कि महानन्दी सच्चे हिन्दू हैं और आला दर्जे के महापुरुष हैं……
“कुछ दिनों बाद ही महानदी अय्यर सहित हज़ारों हिंदुओं बेरहमी से काट दिये गए, हज़ारों हिन्दू महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या हुई, हज़ारों का धर्म परिवर्तन हुआ…….”
देश मे खिलाफत आंदोलन की वजह से ‘हिन्दू-मुसलमान एकता’ कायम हुई..
*”सुन्नी/वहाबी इस्लामी खलीफा साम्राज्य” को खिलाफत कहा जाता है !!*
भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कहीं विस्तार से नहीं बताया गया कि खिलाफत आन्दोलन वस्तुत: भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था ,, खिलाफत आन्दोलन दूर स्थित देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था । *तुर्की की “इस्लामिक” जनता ने बर्बर व रूढिवादी इस्लामी कानूनों से तंग आकर एकजुटता से मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की के खलीफा को देश निकला दे दिया था, और भारत में मोहम्मद अली जौहर व शौकत अली जौहर दो भाई खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे..!!*
गांधी चाहते थे कि भारत की ‘आजादी के आंदोलन’ में मुसलमान भी किसी तरह जुड़ जाएं। अत: उन्होंने 1921 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी से जुडकर ‘खिलाफत आंदोलन’ की घोषणा कर दी, यद्यपि इस आंदोलन की पहली मांग खलीफा पद की पुनर्स्थापना थी ।
“पर मुसलमान सुन्नी इस्लामी उम्मत और खलीफा खिलाफत के आगे कुछ नहीं सोचते थे , उन्हे तो बस 786 साल से हिंदुस्तान पर की गई तथा कथित हूकूमत का टिमटिमाहट वाला बुझता दिया इस्लामी रोशनी के साये में उम्मीद जगाने हेतु मिल गया था।”
*इस खिलाफत आंदोलन के दौरान ही मोहम्मद अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया इसी बीच तुर्की के खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद सपरिवार (13 पत्नियों के साथ) माल्टा चले गये ।”
*आधुनिक विचारों के समर्थक मुस्तफा कमाल पाशा नये शासक बने भारत आकर मोहम्मद अली जौहर ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि जहाँ काफिर का शासन है) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी पर वहां उनके ही तथाकथित मजहबी भाइयों / इस्लामी उम्मा ने ही उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली, वापस लौटते हुए उन्होंने देश भर में दंगे और लूटपाट की, केरल में तो 20,000 हिन्दू धर्मांतरित किये गये, इसे ही ‘मोपला कांड भी कहा जाता है …*
उन दिनों कांग्रेस के अधिवेशन वंदेमातरम के गायन से प्रारम्भ होते थे, 1923 का अधिवेशन आंध्र प्रदेश में काकीनाड़ा नामक स्थान पर था, मोहम्मद अली जौहर उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे, जब प्रख्यात गायक विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने वन्देमातरम गीत प्रारम्भ किया, तो मोहम्मद अली जौहर ने इसे इस्लाम विरोधी बताकर रोकना चाहा इस पर श्री पलुस्कर ने कहा कि यह कांग्रेस का मंच है, कोर्इ मस्जिद नहीं और उन्होंने पूरे मनोयोग से वन्दे मातरम गाया। इस पर जौहर विरोधस्वरूप मंच से उतर गया था।
मोहनदास करमचंद गाँधी ने बिना विचार किये ही इस आन्दोलन को अपना समर्थन दे दिया जबकि इससे हमारे देश का कुछ भी लेना-देना नहीं था जब यह आन्दोलन असफल हो गया, जो कि होना ही था, तो *केरल के मुस्लिम बहुल मोपला क्षेत्र में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अमानुषिक अत्याचार किये गए, माता-बहनों का शील भंग किया गया और हत्याएं की गयीं मूर्खता की हद तो यह है कि गाँधी ने इन दंगों की कभी आलोचना नहीं की और दंगाइयों की गुंडागर्दी को यह कहकर उचित ठहराया कि वे तो अपने धर्म का पालन कर रहे थे सिर्फ मोपला ही नहीं अपितु पूरे तत्कालीन ब्रिटिश भारत में अमानवीय मुस्लिम दंगे, लूटपाट और हिंदू हत्याऐं हुई थी पर गांधी ने उन पर कभी किसी हिंदू हेतु संज्ञान नहीं लिया , उलटे हिंदुओं को ही ईश्वर अल्ला तेरो नाम का गीत सुनाते रहे । *गाँधी जी को गुंडे-बदमाशों के धर्म की तो गहरी समझ थी पर हिन्दू माताओं-बहनों के धर्मशीलता को भ्रष्ट करने का ज्ञान नहीं था ।*
मुसलमानों के प्रति गाँधी के पक्षपात का यह अकेला उदाहरण नहीं है, ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे ।

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