क्या सोचा था! पांच गांव लेकर ‘वे’ शांत हो जाएंगे… कोई कैराना नहीं होगा?
वे पहले छिप कर आते हैं, फिर अपने नाखून और पंजे दिखाते हैं.
पहले थोड़ी सा लिहाज़, थोड़ा सा परदा था… अब वो परदा भी सरकने लगा है.
वे जब मालदा में चढ़ बैठे, तो आप चुप थे.टोंक में उनके बवाल काटने पर आपने अपनी आंखें फेर लीं.
इंदौर से लेकर जयपुर तक, पूर्णिया से हरिद्वार तक जब वे सड़कों पर उतरे, आपने शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन गाड़ ली.
मुंबई के मैदान में उन्होंने शहीद-स्मारक को तोड़ा, क्योंकि म्यांमार में कुछ शांतिप्रिय लोगों के साथ बुरा हुआ… आप चुप ही रहे.
क्या सोचा था, वे रुक जाएंगे, चुप हो जाएंगे, मामला खत्म हो जाएगा?
क्या सोचा था, पांच गांव लेकर वे शांत हो जाएंगे, पाकिस्तान बना देने से मामला ख़त्म हो जाएगा, कश्मीर लेकर वे मान जाएंगे… कोई कैराना नहीं होगा.
आप चुप रहे, क्योंकि आपके पास 1200 वर्षों की चुप्पी का इतिहास है. बस, अब इस चुप्पी को आध्यात्मिकता बनाने का कायराना और बेवकूफाना काम न कीजिए.
धारा 370 से लेकर 1990 में कश्मीर के नरसंहार तक, आप चुप ही रहे.
आपको दीवार से सटाया गया, लगातार…
आपकी देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें कला के नाम पर दर्ज की गयीं, Aletrnate Discourse के नाम पर आपको लगातार पीड़ित-अपमानित किया गया, आप चुप रहे. आपके देवी-देवताओं को कभी डोरमैट तो कभी अंडरवियर तक पर छाप दिया गया.
लेकिनsssss… और, यह बड़ा लेकिन है…
लज्जा से लेकर सैटेनिक वर्सेज़ तक को प्रतिबंधित कर दिया गया, उनके पीछे से सरकार तक ने हाथ हटा लिया, आपके कानून तो सरकार ने बनाए, उनके पर्सनल लॉ जस के तस ही रहे.
मलयालम अखबार हों, मराठी पत्रिका या हिंदी ‘किरांतिकारी’, मुसलमानों के खिलाफ तो छोड़िए, उनकी खांटी सच्चाई ही छाप कर कोई दिखा दे. है कोई माई का लाल…
यह इसलिए कि वे कुछ मामलों पर कोई समझौता नहीं करते. आप अपनी आस्था और श्रद्धा के प्रश्नों पर भी बहस की दुकान खोल लेते हैं, वे नारा-ए-तकबीर बोलते हुए हमला कर देते हैं… आप सेकुलर हैं, वे धार्मिक हैं.
कैराना तो बस शुरुआत है, बुद्धि का अजीर्ण मत कीजिए. अपने नाखून और दांत पैने कीजिए, हमलावर बनिए…
ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार, मंडल, यादव आदि-इत्यादि बहुत बन लिए. एक बार हिंदू बनकर तो देखिए… बहुत अच्छा लगेगा.
और हां, सेकुलरिज्म और गंगा-जमनी तहज़ीब कहीं मिले, तो मुझे भी बताइएगा. मुझे भी 250 ग्राम खरीदना है…
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