Friday, 13 July 2018

आखिर क्यों करते हैं मंत्रोच्चार?
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वैदिक ऋषियों ने ब्रह्मांड की सूक्ष्म से सूक्ष्म और विराट से विराट ध्वनियों को सुना और समझा। इसे सुनकर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की।
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सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।।
शास्त्रकार कहते हैं- 'मननात् त्रायते इति मंत्र:' अर्थात मनन करने पर जो त्राण दे या रक्षा करे वही मंत्र है। धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं। तंत्रानुसार देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं।
दिव्य-शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द शक्ति को 'मंत्र' कहते हैं। अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहते हैं। और अंत में इस प्रकार गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।
हजारों वर्ष पूर्व मंत्र शक्ति के रहस्य को प्राचीनकाल में वैदिक ऋषियों ने ढूंढ निकाला था। उन्होंने उनकी शक्तियों को जानकर ही वेद मंत्रों की रचना की। वैदिक ऋषियों ने ब्रह्मांड की सूक्ष्म से सूक्ष्म और विराट से विराट ध्वनियों को सुना और समझा। इसे सुनकर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की। उन्होंने जिन मंत्रों का उच्चारण किया, उन मंत्रों को बाद में संस्कृत की लिपि मिली और इस तरह संपूर्ण संस्कृत भाषा ही मंत्र बन गई। संस्कृत की वर्णमाला का निर्माण बहुत ही सूक्ष्म ध्वनियों को सुनकर ‍किया गया।
मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। 'मंत्र' का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है, तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।

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