Monday 16 July 2018

 
“सिर जाए तां जाए, मेरा सिखी सिदक ना जाए”...
 भाई तारू सिंह’
गुरबानी का यह कथन सिख धर्म में अपने गुरु ‘केश’ (बालों) की रक्षा करने की सीख देता है। एक ऐसा धर्म जिसमें उसूल ही सब कुछ है। अपने गुरु की मर्यादाओं पर चलना, उन्हें प्रेम भाव से समझना और हर एक नियम का दिल से आदर एवं सम्मान करना सिख धर्म की पहचान है।
इन्हीं नियमों को मरकर भी मरने ना देने की कसम खाई थी ‘भाई तारू सिंह’ ने। एक ऐसा सिख जिनका नाम सिख धर्म के इतिहास में गर्व से लिया जाता है।कोई भी भूल नहीं सकता, अपने धर्म का निरादर ना होने देने का वचन उन्होंने आखिरी सांस तक निभाया।
यह तब की बात है जब  पंजाब के अमृतसर में मुगलों का राज हो गया था। वे अपनी इच्छानुसार हर किसी धर्म के व्यक्ति को इस्लाम में शामिल कर अपनी ताकत बढ़ाना चाहते थे, लेकिन भाई तारू सिंह को शायद यह मंजूर ना था।और भाई तारु सिंह जी ने मुगलिया जोर जबर का विरोध करना शुरू कर दिया हिन्दू बहु बेटियों को मुगलों के चंगुल से छुड़ाने लगे
 यह बात जब मुगलिया सरदार ‘ज़कारिया खान’ तक पहुंची ज़कारिया खान गुस्से से आग बबूला हो गया, उसने फ़ौरन अपने सैनिकों से कहकर तारू सिंह को गिरफ्तार कर पकड़कर लाने को कहा।मुगल फौज भाई तारु सिंह जी को गिरफ्तार कर जकारिया खान के पास ले आई सिक्ख कैदी देख ज़कारिया खान बहुत खुश हुआ। उसने कई बार सिख बहादुरों के किस्से सुने थे। सिख कभी किसी से डरते नहीं हैं यह बात वह अच्छी तरह से जानता था
 उसने सोचा यदि किसी तरह से वह तारू सिंह को इस्लाम कबूल करने के लिए राज़ी कर ले तो शायद उसकी तरह ही अन्य धर्म को मानने वाले लोग भी इस्लाम की ओर अपना झुकाव बढ़ा दें।लेकिन भाई तारु सिंह जी टस से मस नही हुए आखिरकार ज़कारिया खान ने तारू सिंह के सिख धर्म से जुड़े कट्टर विश्वास को तोड़ने के लिए उसके बाल ही काट देने का फैसला किया। लेकिन ऐसा कोई भी नाई नहीं था जो तारू सिंह के बालों को काटने की हिम्मत रखता हो।
जब यह खबर ज़कारिया खान तक पहुंची तो उसने गुस्से में आकर तारू सिंह की खोपड़ी ही उसके सिर से अलग कर देने का फैसला किया। ताकि ना खोपड़ी रहेगी और न ही उसके बाल रहेंगे और ना ही कभी दोबारा आएंगे।
एक जल्लाद के द्वारा तारू सिंह जी की खोपड़ी के ऊपर का हिस्सा अलग कर दिया गया और उसे महल के बाहर खाई में फेंक दिया गया। कहते हैं कि जब तारू सिंह पर यह दर्दनाक प्रहार किया जा रहा था तब भी वो चुप थे और मन ही मन सिख धर्म के पहले गुरु नानक देवजी द्वारा रचा गया ‘जपुजी साहिब’ का पाठ कर रहा थे।
सतनाम वाहेगुरु जी

No comments:

Post a Comment