Wednesday, 11 July 2018


विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति होगी
‘गरुड़ विष्णु केनकाना’!


संपूर्ण विश्व के हिन्दुओं के लिए गर्व और हर्ष व्यक्त करने का महान अवसर आ रहा है। इंडोनेशिया में पिछले 25 साल से बन रही गरुड़-विष्णु की मूर्ति स्थापित होने जा रही है। इसके बाद विश्व के सबसे ऊँचे धार्मिक प्रतीकों में हिंदुत्व का प्रतीक दूसरे नंबर पर आसीन हो जाएगा। 393 फ़ीट ऊँची ये मूर्ति स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी से 90 फ़ीट ऊँची होगी। विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति चीन में है। बुद्ध की ये मूर्ति 420 फ़ीट ऊँची है।

1979 में इंडोनेशिया के मूर्तिकार ने एक स्वप्न देखा था। मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता इंडोनेशिया में हिन्दू प्रतीक की विशालकाय मूर्ति बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले कम्पनी स्थापित की। मूर्ति की डिजाइन पर अथक परिश्रम किया। धन जुटाने के लिए देशभर की यात्रा की। मूर्ति तांबा और पीतल की बनाई जानी थी इसलिए धन की बहुत आवश्यकता थी। 1994 में काम शुरू हुआ। कई बार धन की कमी के कारण काम बीच-बीच में महीनों रुका रहता लेकिन न्यूमन की इच्छाशक्ति बड़ी प्रबल थी। वे नहीं रुके। लगभग एक दशक बाद दुनिया न्यूमन और उनके इस स्वप्न को बिसरा चुकी थी।

विष्णु की मूर्ति स्थापित करने के पीछे विचार ये था कि इंडोनेशिया के सबसे प्राचीन धर्म और संस्कृति को वहां के शिल्प में ढाला जाए। इंडोनेशिया में यूँ तो बुद्धिज्म और इस्लाम धर्म के अनुयायी भी रहते हैं लेकिन हिन्दू धर्म तो प्राचीन काल से यहाँ प्रचलित रहा है। जिस बाली द्वीप में इस मूर्ति को स्थापित किया जा रहा है, वहां की 83 प्रतिशत जनसँख्या हिन्दू धर्म का पालन कर रही है। इस मूर्ति को लेकर वहां की सरकार बहुत उत्साहित है। जाहिर है मूर्ति स्थापित होने के बाद विश्वभर के पर्यटक कला के इस नायाब नमूने को देखने आया करेंगे और विदेशी आय में भी बढ़ोतरी होगी। गरुड़ विष्णु केनकाना मूर्ति को इंडोनेशिया सरकार ने देश की प्रतिनिधि कृति का दर्जा दे दिया है।

गरुड़ विष्णु केनकाना कल्चरल पार्क में इस मूर्ति को स्थापित किया जा रहा है। इस पर पिछले पच्चीस साल में लगभग सौ मिलियन डॉलर खर्च हो चुके हैं। पहले गरुड़ की मूर्ति बनाई गई। मूर्ति के ऊपर विष्णु को विराजित करने के लिए एक आसन बनाया जा रहा है। साठ मीटर चौड़े इस आसन पर विष्णु विराजमान होंगे। लिबर्टी की मूर्ति के मुकाबले ये मूर्ति अधिक चौड़ी है। गरुड़ के पंख ही साठ मीटर के बनाए गए हैं। इसे इस तरह बनाया गया है कि अगले सौ साल में भी इसकी चमक और मजबूती बरक़रार रह सके। इसके अलावा एक ‘विंड टनल टेस्ट’ भी करवाया गया। इससे पता चला कि तूफानी हवाओं को ये मूर्ति झेल सकेगी या नहीं।मूर्ति बनाने के लिए चार हज़ार टन तांबा, पीतल और स्टील का उपयोग किया गया है। इसे मजबूती देने के लिए कांक्रीट की परत लगाई गई है। मूर्ति जावा में तैयार की गई और उसे एक हज़ार किमी दूर ट्रकों पर लादकर ले जाया गया था। इस समय मूर्ति की स्थापना का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। बारिश व्यवधान डाल रही है लेकिन स्थापना का काम अपने निर्णायक चरण में पहुँच गया है।

बप्पा न्यूमन नुआर्ता को उनके इस महान कार्य के लिए भले ही विश्व के किसी और देश ने नहीं सराहा हो लेकिन भारत ने उनके पच्चीस साल के परिश्रम के लिए उनका सम्मान किया है। इस साल जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पुरस्कार वितरित कर रहे थे तो एक नाम न्यूमन का भी था। उन्हें भारत के गरिमामयी सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाज़ा गया। भारत ने उनके इस कार्य के लिए उन्हें पहले ही सम्मानित कर दिया है।हमारे स्वाधीनता दिवस के ठीक दो दिन बाद इंडोनेशिया का स्वाधीनता दिवस आएगा। नब्बे प्रतिशत सम्भावना है कि 17 अगस्त को विष्णु अपने गरुड़ पर आसीन हो जाएंगे। इंडोनेशिया का आजादी दिवस भारत के लिए भी गर्व और प्रसन्नता के पल लेकर आ रहा है। बप्पा न्यूमन नुआर्ता का पच्चीस साल पुराना सपना सच होने जा रहा है। हम भारतीय हिन्दू इस पर ख़ुशी जताने के साथ ये सोच सकते हैं कि एक छोटा सा देश आर्थिक आघात और विश्वव्यापी मंदी झेलते हुए विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति बना लेता है। और उस मूर्ति के द्वारा वह विष्णु को हिन्दू प्रतीक के रूप में स्थापित करता है। क्या इस प्रयास को सराहा नहीं जाना चाहिए।
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सेना के लिए जो काम आजकल सेटेलाइट/ यूएवी चालक रहित विमान से लिया जा रहा है कुछ वैसा ही काम द्वीतिय विश्व युद्ध मे योरोप के जर्मनी और ब्रिटेन की सेना कबूतरों से लिया करते थी.
वे कबूतरों के गले मे छोटे कैमरे बांध कर उनसे प्राप्त चित्रो कर आधार पर टैंको के जमावड़े, इंफेंट्री सेना की स्थिति इत्यादि ज्ञात कर लिया करते थे.




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