Sunday, 15 July 2018


योग केवल शारिरिक व्यायाम या श्वास क्रिया नहीं ,समग्र जीवन का आधार है। पढ़िये उदाहरण
जब थाईलैंड की पानी से भरी गुफा के अंधेरों में फुटबॉल प्रशिक्षक इक्कापोल ने उजाले की एक नई दुनिया रच दी थी।
ध्यान व योग का सफल परीक्षण रोमांचित करता है|
वे अंधेरी व पानी से भरी गुफा में फंसे 12 बच्चों को 18 दिन तक ध्यान का अभ्यास कराते रहे। इक्कपोल ने बच्चों को ध्यान की वे विधियां सिखाई, जिनसे वे अपने शरीर की ऊर्जा बचाए रख सकें, खुद को शांत और खुश बनाए रखें। 
उनकी विधियों ने जादुई असर दिखाया और ये सारे बच्चे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी सहज बने रहे, हताश नहीं हुए। जो पहला संदेश उन्होंने भीतर से भेजा, उसमें भी यही लिखा कि चिंता मत कीजिए, हम बहादुर बच्चे हैं। उनके हौसले का यह झरना इक्कापोल की वजह से ही फूट रहा था और परिणाम सारे के सारे 12 बच्चे जिजीविषा के साथ 18 दिन तक गुफा में रहे और अंततः जांबाज गोताखोरों ने अपने प्राणों की परवाह किये बिना इन सभी को गुफा से बाहर सुरक्षित निकाल लिया ।
ध्यान, योग , समन्वय व जिजीविषा की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती हैऔर  योग ,ध्यान , प्राणायाम का हम विश्व में ढिंढोरा तो बहुत पीटते हैं लेकिन हमारे बच्चे ही इनसे वंचित हैं । हमारे यहाँ बचपन से ही बच्चे के हाथ मोबाइल व सामने tv रख हम किंतने निश्चिंत हो गए हैं । 
वास्तव में हमारी कथनी व करनी में बहुत अंतर है । हम किसी विचार व विधा को लागू करने से पहले उसका ढिंढोरा पीटना और नारेबाजी में परिवर्तित करना हमारी आदत बन गया है । क्रियान्वयन तो बहुत ही सीमित किन्तु थोथा प्रदर्शन व नारेबाजी ज्यादा होती है जिसका परिणाम हम देख ही रहे हैं की नतीजा शून्य ही हाथ आता है । हमारे चारों ओर बचपन से ही नैराश्य व हताशा के भाव प्रबल हैं । नकारात्मक वातावरण समाज को बोझिल किये जा रहा है ।
दैनिक समाचार पत्र किशोर अवस्था में की गई आत्महत्याओ के समाचारों से भरे पड़े हैं । चारित्रिक पतन चरम पर है । कैसे निजात पाएं ? अभी भी समय है हम अपने नॉनिहाल बच्चों को संस्कारित करें , मोबाइल व tv से दूर कर ध्यान , प्राणायाम व योग की दिशा में मोड़ने का भरसक प्रयास करें ताकि हमारी भावी पीढ़ी को एक सकारात्मक वातावरण तो मिल सकें व विषम से विषम परिस्थियों में भी उनका मनोबल अक्षुण बना रहे ।

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