भोलेनाथ ने गणेशजी के लगाया हाथी का सिर, क्या थी वह तकनीक
क्या कोई जानता है कि विघ्न विनाशक लम्बोदर अर्थात भगवान गणेश का हाथी के सिर व सूंड वाला स्वरूप चमत्कारिक शक्ति का नहीं बल्कि वैद्य (चिकित्सक) पिता भगवान शंकर की पुरातन खोज माइक्रो सर्जरी का कमाल है।
भगवान शंकर का एक नाम वैद्यनाथ भी है और उन्हें कापालिक (शमशान में रहने वाला) कहा ही इसलिए जाता है कि वे मृत मानव शरीरों पर परीक्षण करके चिकित्सा विज्ञान को हर समय अधुनातन बनाने में जुटे रहते हैं। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला को शमशान घोषित करके अनजान लोगों के प्रवेश पर रोक लगा रखी थी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति, देव, गंधर्व, मानव शमशान में मजबूरी में ही जाता है, अन्यथा वह दूर ही रहता है।
परीक्षण के लिए गणेश ने दिया था सिर
पुराणों के अनुसार पिता के यहां अग्नि कुण्ड में सती के आत्मदाह कर लेने के बाद शिव के अंगरक्षकों ने सती के पिता का सिर काट दिया था। सती की मां के अनुरोध पर भगवान विष्णु व ब्रह्मा ने उनके कटे हुए सिर के स्थान पर बकरे का सिर सर्जरी के जरिए फिट करके उन्हें जीवित तो कर दिया, लेकिन वे सामान्य शरीरधारी जैसा आचरण व खानपान अंगीकार नहीं कर सके। क्रोध शांत होने पर शिव ने माइक्रोसर्जरी तकनीक ईजाद कर युद्धों में सिर गंवाने वाले योद्धाओं को जीवित करने के लिए माइक्रो सर्जरी तकनीक ईजाद करने के प्रयोग किए। प्रयोग सफल होने पर वास्तविक परीक्षण के लिए वैद्यनाथ (भगवान शिव) को सिर काटकर माइक्रो सर्जरी तकनीक का वास्तविक परीक्षण करने के लिए एक जीवित शरीर की आवश्यकता पड़ी, लेकिन कोई भी अपना सिर कटाने को तैयार नहीं हुआ तो पुत्र गणेश ने पिता को स्वयं का शरीर समर्पित कर तकनीक परीक्षण के लिए सौंप दिया। समस्त संसार के भले के लिए शिव ने अपने ही पुत्र का सिर युद्ध की तरह त्रिशूल से बेढ़ब तरीके से काट दिया।
क्यों मंगाया हाथी का सिर
आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी हाथी और मानव के बीच काफी हद तक साम्य पाया है। वैद्यनाथ ने अपने प्रयोगों के जरिए पहले ही यह पता लगा रखा था कि हाथी का सिर आसानी से मानव शरीर पर जोड़ा जा सकता है। उन्होंने पहले से सुरक्षित रखे हाथी के सिर को गणेश के सिर पर फिट करके माइक्रो सर्जरी से सिल दिया और कुछ ही घंटों में मृत गणेश में प्राण फूंक दिए।
प्रसिद्ध है गणेश की बुद्धिमानी
इस सर्जरी के बाद ही गणेश बुद्धि के दाता बने हैं, क्योंकि दुनिया में मानव के बाद हाथी ही सर्वाधिक बुद्धिमान है। मानव शरीर तथा हाथी के दिमाग के साथ गणेश की बुद्धिमानी असीमित होने के साथ-साथ उनका बल अपराजेय हो गया और इसी वजह से वे प्रथम पूज्य कहलाते हैं।
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क्या कोई जानता है कि विघ्न विनाशक लम्बोदर अर्थात भगवान गणेश का हाथी के सिर व सूंड वाला स्वरूप चमत्कारिक शक्ति का नहीं बल्कि वैद्य (चिकित्सक) पिता भगवान शंकर की पुरातन खोज माइक्रो सर्जरी का कमाल है।
भगवान शंकर का एक नाम वैद्यनाथ भी है और उन्हें कापालिक (शमशान में रहने वाला) कहा ही इसलिए जाता है कि वे मृत मानव शरीरों पर परीक्षण करके चिकित्सा विज्ञान को हर समय अधुनातन बनाने में जुटे रहते हैं। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला को शमशान घोषित करके अनजान लोगों के प्रवेश पर रोक लगा रखी थी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति, देव, गंधर्व, मानव शमशान में मजबूरी में ही जाता है, अन्यथा वह दूर ही रहता है।
परीक्षण के लिए गणेश ने दिया था सिर
पुराणों के अनुसार पिता के यहां अग्नि कुण्ड में सती के आत्मदाह कर लेने के बाद शिव के अंगरक्षकों ने सती के पिता का सिर काट दिया था। सती की मां के अनुरोध पर भगवान विष्णु व ब्रह्मा ने उनके कटे हुए सिर के स्थान पर बकरे का सिर सर्जरी के जरिए फिट करके उन्हें जीवित तो कर दिया, लेकिन वे सामान्य शरीरधारी जैसा आचरण व खानपान अंगीकार नहीं कर सके। क्रोध शांत होने पर शिव ने माइक्रोसर्जरी तकनीक ईजाद कर युद्धों में सिर गंवाने वाले योद्धाओं को जीवित करने के लिए माइक्रो सर्जरी तकनीक ईजाद करने के प्रयोग किए। प्रयोग सफल होने पर वास्तविक परीक्षण के लिए वैद्यनाथ (भगवान शिव) को सिर काटकर माइक्रो सर्जरी तकनीक का वास्तविक परीक्षण करने के लिए एक जीवित शरीर की आवश्यकता पड़ी, लेकिन कोई भी अपना सिर कटाने को तैयार नहीं हुआ तो पुत्र गणेश ने पिता को स्वयं का शरीर समर्पित कर तकनीक परीक्षण के लिए सौंप दिया। समस्त संसार के भले के लिए शिव ने अपने ही पुत्र का सिर युद्ध की तरह त्रिशूल से बेढ़ब तरीके से काट दिया।
क्यों मंगाया हाथी का सिर
आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी हाथी और मानव के बीच काफी हद तक साम्य पाया है। वैद्यनाथ ने अपने प्रयोगों के जरिए पहले ही यह पता लगा रखा था कि हाथी का सिर आसानी से मानव शरीर पर जोड़ा जा सकता है। उन्होंने पहले से सुरक्षित रखे हाथी के सिर को गणेश के सिर पर फिट करके माइक्रो सर्जरी से सिल दिया और कुछ ही घंटों में मृत गणेश में प्राण फूंक दिए।
प्रसिद्ध है गणेश की बुद्धिमानी
इस सर्जरी के बाद ही गणेश बुद्धि के दाता बने हैं, क्योंकि दुनिया में मानव के बाद हाथी ही सर्वाधिक बुद्धिमान है। मानव शरीर तथा हाथी के दिमाग के साथ गणेश की बुद्धिमानी असीमित होने के साथ-साथ उनका बल अपराजेय हो गया और इसी वजह से वे प्रथम पूज्य कहलाते हैं।
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धानुक जाती में पैदा हुई हिमा दास ने जीता 400 मीटर दौड़ में जीता गोल्ड मैडल। किया भारत का नाम किया रौशन
हिमा दास, असम के छोटे से गांव की 18 साल की मासूम सी लड़की जिसने आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर देश का गौरव बढाया है ।
इस इवेंट में देश को पहली बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ है। हिमा ने महिला, पुरुष, जूनियर, सीनियर सभी वर्गों में पहली बार वर्ल्ड ट्रैक इवेन्ट में गोल्ड जीता है वो भी 51.46 सेकेण्ड के रिकॉर्ड समय में।
जो काम अब तक कोई भारतीय नहीं कर पाया वो हिमा ने किया है।
हिमा असम के नगाँव जिले के धींग के पास कंधूलिमरी गाँव से हैं। उसके पिता रोंजीत दास और मां जोमालि चावल की खेती करते हैं। बेहद गरीब परिवार से आने वाली हिमा 6 बहन-भाइयों में सबसे बड़ी है। तमाम मुश्किलों को हराते हुए हिमा ने ये क़ामयाबी हासिल की है।
हिमा दास, असम के छोटे से गांव की 18 साल की मासूम सी लड़की जिसने आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर देश का गौरव बढाया है ।
इस इवेंट में देश को पहली बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ है। हिमा ने महिला, पुरुष, जूनियर, सीनियर सभी वर्गों में पहली बार वर्ल्ड ट्रैक इवेन्ट में गोल्ड जीता है वो भी 51.46 सेकेण्ड के रिकॉर्ड समय में।
जो काम अब तक कोई भारतीय नहीं कर पाया वो हिमा ने किया है।
हिमा असम के नगाँव जिले के धींग के पास कंधूलिमरी गाँव से हैं। उसके पिता रोंजीत दास और मां जोमालि चावल की खेती करते हैं। बेहद गरीब परिवार से आने वाली हिमा 6 बहन-भाइयों में सबसे बड़ी है। तमाम मुश्किलों को हराते हुए हिमा ने ये क़ामयाबी हासिल की है।
शाबाश हिमा! तुमने हर आम लड़की के सपने को हिम्मत दी है ।
अब कुछ और लडकियां जिनके सपने आखों में ही मार दिये जाते हैं ऐसे सपने साकार करने के लिए आगे आयेंगी।
अब कुछ और लडकियां जिनके सपने आखों में ही मार दिये जाते हैं ऐसे सपने साकार करने के लिए आगे आयेंगी।
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