Tuesday, 17 July 2018

हनुमान जी...aadivasi hi the ///

झारखण्ड के गुमला शहर से मात्र 20 किमी दूर आंजन गांव है, जो जंगल व पहाड़ों से घिरा है। आंजन एक अति प्राचीन धार्मिक स्थल है।
यहीं पहाड़ की चोटी स्थित गुफा में माता अंजनी के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ था। जहां अंजनी माता की प्रस्तर मूर्ति विद्यमान है।अंजनी माता जिस गुफा में रहा करती थीं, उसका प्रवेश द्वार एक विशाल पत्थर की चट्टान से बंद है।
अंजनी माता के भक्त द्वार के एक छोटे छिद्र से अक्षत व पुष्प अंदर चढ़ाते हैं। गुफा के द्वार के समीप, जहां अंजनी की मूर्ति है, पताकाएं लहराती हैं।कहा जाता है कि गुफा की लंबाई 1500 फीट से अधिक है। इसी गुफा से माता अंजनी खटवा नदी तक जाती थीं और स्नान कर लौट आती थीं।खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो आंजन गुफा तक ले जाती है। किंतु आज इस सुरंग में अंदर जाने का साहस कोई नहीं कर पाता क्योंकि
गुफा के रास्ते में खूंखार जानवर व विषैले जीव जंतु घर बनाए हुए हैं।एक जनश्रुति के अनुसार एक बार आदिवासियों ने माता अंजनी को प्रसन्न करने के मकसद से अंजनी की गुफा के समक्ष बकरे की बलि दे दी। इससे माता अप्रसन्न हो गईं और गुफा के द्वार को हमेशा के लिए चट्टान से बंद कर लिया।
गुमला जिले के लोग आज भी अपने आपको हनुमान का वंशज कहते हैं। इसमें सच्चाई भी है। रामनवमी पर्व में यहां की पूजा पद्धति सभी से भिन्न होती है।पूर्वजों के जमाने से चली आ रही परंपरा के अनुसार गांव के बैगा, पहान व पुजार सबसे पहले पूजा करते हैं। गांव में एक अखाड़ा है।जहां महावीरी झंडा गाड़ा जाता है। जिस प्रकार हनुमान कमर में लंगोटा बांधते थे। उसी प्रकार बैगा, पहान व पुजार सफेद रंग के धोती पहनकर अखाड़े में आते हैं। उनके ऊपर का शरीर पूरी तरह खुला रहता है।परंपरा के अनुसार तीन दिनों तक ऐतिहासिक मेला लगता है। चाकडीपा में रात दो बजे तक अस्त्र शस्त्र चालन प्रतियोगिता होती है।इसमें हरेक गांव के लोग पारंपरिक हथियार के साथ से भाग लेते हैं।
आंजन गुफा से सटी एक पहाड़ी है, जिसे धमधमिया पहाड़ कहा जाता है। इस पहाड़ का आकार बैल की तरह है। इसमें चलने से एक स्थान पर धमधम की आवाज होती है। कहा जाता है कि माता अंजनी का यह कोषागार था, जहां बहुमूल्य वस्तुएं माता रखती थीं।आंजन पहाड़ पर रामायण युगीन ऋषि-मुनिने जन कोलाहल से दूर शांति की खोज में आए थे। यहां ऋषि मुनियों ने सप्त जनाश्रम स्थापित किया था।यहां सभी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध थीं। यहां सात जनजातियां निवास करतीं थीं। इनमें शबर, वानर, निषाद्, गृद्धख् नाग, किन्नर व राक्षस थे।आश्रम के प्रभारी को कुलपति कहा जाता था। कुलपतियों में अगस्त्य, अगस्त्यभ्राता, सुतीक्ष्ण, मांडकणि, अत्रि, शरभंग व मतंग थे।
छोटानागपुर में दो स्थानों पर आश्रम है। इनमें एक आंजन व दूसरा टांगीनाथ धाम है।आंजन में शिव की पूजा की परंपरा प्राचीन है। अंजनी माता प्रत्येक दिन एक तालाब में स्नान कर शिवलिंग की पूजा करती थीं।
यहां 360 शिवलिंग व उतने ही तालाब होने की संभावना है। अभी भी उस जमाने के 100 से अधिक शिवलिंग उपलब्ध है।आंजन पहाड़ी पर स्थित चक्रधारी मंदिर में आठ शिवलिंग दो पंक्तियों में स्थापित है। जिन्हें अष्टांभु कहा जाता है। अष्टांभु के निकट ब्राह्मी सांढ व बसाहा स्थापित है।आंजनधाम स्थिति मंदिर में स्थापित शिवलिंग के ऊपर चक्र है। चक्रधारी मंदिर संभवत: और कहीं नहीं है। यह चक्र एक भारी पत्थर का बना हुआ है। जो जाता की तरह प्रतीत होता है। चक्र के मध्य में जाता की तरह एक छेद है। चक्रधारी शिवलिंग के अति निकट एक त्रिशूल स्थापित है।चक्रधारी मंदिर में पत्थरों से निर्मित दो सुंदर मूर्तियां है, जिनमें एक भगवान विष्णु व दूसरी मूर्ति मां दुर्गा की है। दोनों प्रतिमाएं खंडित हंै।इसी मंदिर में मां काली का बड़ा चित्र लटका दिया गया है। मंदिर में एक साथ शिवलिंग, विष्णु, दुर्गा व मां काली की पूजा होती है।'आदिवासी भी विष्णु की पूजा राम के रूप में करते हैं। चक्रधारी महादेव की पूजा आदिवासी व गैर-आदिवासी सभी समान रूप से करते हैं।

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