Wednesday, 11 July 2018


लखनऊ में लक्ष्मण टीले पर मन्दिर विध्वंस कर बनी मस्जिद पर
कुछ तथ्य
धैर्य के साथ पढ़े...
लखनऊ में गोमती किनारे स्थित टीले वाली मस्ज़िद के नज़दीक वाले चौराहे पर लखनऊ नगर निगम ने वीरवर लक्ष्मण की मूर्ति लगवाने की घोषणा की है… बस इसी पर अभी रमज़ान में गंगा-जमनी संगम में मंदिरों में इफ्तारी खा रहा लखनऊ का इस्लाम ख़तरे में पड़ गया… तमाम सुन्नी मौलानाओं ने मूर्ति लगने का विरोध यह कहकर शुरू कर दिया है कि मस्ज़िद के सामने वाले चौराहे पर मूर्ति लग जाने से मस्ज़िद में पढ़ी जाने वाली नमाज़ वाज़िब नहीं होगी… अव्वल तो वो चौराहा जहाँ मूर्ति लगाने के बात हुई है, वहाँ से मस्ज़िद की मुख्य इमारत एक फर्लांग दूर अहाते में अंदर टीले पर है…
इसके बावज़ूद क़ाबिल मौलानाओं से कुछ यक्ष प्रश्न ज़रूर हैं… 1. जब नमाज़ के लिए मस्ज़िद ज़रूरी नहीं है, यह कहीं भी पढ़ी जा सकती है तो मस्ज़िद से एक फ़र्लांग की दूरी पर सार्वजनिक चौराहे पर लगने वाली मूर्ति से दिक्क़त क्यूँ…?
2. जब काशी और मथुरा समेत पूरे भारत में हज़ारों कब्ज़ाई जगहों पर मूर्ति वाले मंदिरों से सटाकर बनाई गई मस्ज़िदों में नमाज़ कैसे वाज़िब होती है…?
3. रमज़ान के महीने में टीले वाली मस्ज़िद से कुछ किमी दूर मनकामेश्वर मंदिर में हज़ारों रोज़ेदारों द्वारा अदा की गई नमाज़ और इफ़्तारी कैसे वाज़िब थी…? सनद रहे कि पूरे भारत मे सैकड़ों मंदिरों-गुरुद्वारों में रमज़ान में रोज़ेदारों के लिए हिंदुओं और सिखों ने नमाज़ और इफ़्तार का सहृदय प्रबंध किया…
4. अतिव्यस्त रेलवे प्लेटफ़ार्मों, भीड़भरी ट्रेनों, भरे हुए फुटपाथों, सार्वजनिक पार्कों, भीड़भरी सड़कों, मूर्तियां लगे चौराहों, मूर्तियां लगे स्मारकों पर हरेक जुमा को अदा की जाने वाली नमाज़ कैसे वाज़िब होती है…?
5. ग़ैरमुस्लिम राष्ट्रपति, पीएम, सीएम, मंत्रियों, विधायकों, राजनीतिक अलम्बरदारों, राजदूतों वग़ैरह के कार्यालयों या आवासों पर अदा की गई नमाज़ और इफ़्तारी कैसे वाज़िब होती है…?
6. तमाम प्राचीन हिन्दू-बौद्ध-जैन मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे और भग्नावशेषों पर तामीर मस्ज़िदों में अदा की गई नमाज़ कैसे वाज़िब होती है…?
7. मज़ार और ताखे भी सांकेतिक बुत होते हैं… तो हज़ारों अर्जी-फर्ज़ी पीरों-बाबाओं की मज़ारों, दरगाहों, ताखों पर अदा की जाने वाली नमाज़ कैसे वाज़िब होती है…?
8. एक नमाज़ी नमाज़ अदा करते वक़्त ख़ुदा पर ध्यान लगाता है या एक फ़र्लांग दूर लगी किसी मूर्ति पर…?
दरअसल भारत का इस्लाम अब अरबी वहाबी इस्लाम के रास्ते चल चुका है जिसमे सच्चे और कट्टर मोमिन मुल्क के अच्छे और उदार मुसलमानों पर हावी होते जा रहे हैं… और इस कार्य मे वामी, काँग्रेस, समाजवादी, लिबरल-सेक्युलर समेत तमाम सत्ता लोलुप क्षेत्रीय राजनीतिक दल इनके सहयोगी हैं…
भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता-संस्कृति है और सनातन वैदिक धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म जो उत्तर भारत मे गंगा-यमुना और इसकी सहायक नदियों के किनारे हज़ारों वर्षों (पौराणिक तौर पर लाखों वर्षों) में पुष्पित पल्लवित हुआ… सनातन धर्म के दो मुख्य अवतार राम और कृष्ण उत्तर भारत मे अवतरित हुए… शिव की काशी भी यहीं है… भगवान बुद्ध और भगवान महावीर की कर्मस्थली भी मुख्यतः यहीं रही… अयोध्या, हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, गांधार, मिथिला, मगध समेत भारत के प्राचीनतम शक्तिशाली राज्य उत्तर भारत मे ही स्थित हैं… लेकिन उत्तर भारत में एक भी प्राचीन सनातन मंदिर का नाम कभी याद करके बताइये जो आज भी सकुशल मौजूद हो… अयोध्या, काशी, मथुरा समेत लगभग सभी धार्मिक स्थलों को छः सौ वर्षों के मुस्लिम शासन में चुन-चुनकर लूट और धूलधूसरित करके मस्जिदें तामीर कर दी गईं… आर्यों की प्रमुख कर्मभूमि अब ज़िहादी अफगानिस्तान और पाकिस्तान बन गए… सोमनाथ मंदिर समेत पूरे भारत के प्राचीनतम सनातन मंदिरों का यही हश्र हुआ… बेरहम लूट और नृशंष क़त्लेआम के साथ इस्लाम के नाम पर काफ़िरों के तीर्थस्थलों को आज़ादी मिलने तक नेस्तनाबूद किया गया... किन्हीं कारणों से जगन्नाथ पुरी, कोणार्क और दक्षिण भारत के कुछ मन्दिर काफ़ी कुछ बच गए…
यही नहीं इस सनातन हिन्दू देश के तमाम शहरों को अब मुस्लिम आक्रांताओं के नाम या उनकी पहचानों से जाना जाता है… जैसे लखनऊ की पहचान नवाब, इमामबाड़ा और बिरयानी से है… आगरा की पहचान ताजमहल से है… अज़मेर की पहचान चिश्ती की दरग़ाह से है… अहमदाबाद की पहचान हिलती मीनारों से है… हैदराबाद की पहचान निज़ामशाही, चारमीनार और बिरयानी से है… दिल्ली की पहचान भी तमाम मुग़ल इमारतों से है… फतेहपुर सीकरी की पहचान अकबर के किले से है… गोआ की पहचान चर्च से है… मुम्बई की पहचान हाज़ी अली दरग़ाह और अंग्रेजों के इण्डिया गेट से है… बाराबंकी की पहचान पारिजात वृक्ष से नहीं अपितु देवां शरीफ़ से है... पूरे भारत मे छोटे-बड़े शहरों और कस्बों की कमोबेश यही स्थिति है… पूरा कश्मीर सनातन धर्म के अनुयायियों और स्थलों से विहीन होकर दारुल इस्लाम बन चुका है… मणिपुर, नगालैण्ड, मेघालय, केरल में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं… असम, बिहार, तमिलनाडु, गोवा, त्रिपुरा, बंगाल की स्थिति भी धर्म के आधार पर नाज़ुक है… यशस्वी सनातन धर्मी राजाओं के नाम पर शायद ही कोई नगर, कस्बा, सड़क, इमारत, संस्थान, पार्क या सार्वजनिक स्थल ढूंढे से भी नहीं मिलेगा... लेकिन अय्याश, लुटेरे, बदचलन कट्टर मुस्लिम बादशाहों, नवाबों, राजाओं, जमींदारों, ओहदेदारों, पीरों के नाम पर पूरे भारत में नगर, कस्बे, गांव, मोहल्ले, सड़क, इमारतें, किले, पार्क, मक़बरे, स्मारक और सार्वजनिक स्थल मिलेंगे... प्राचीन मंदिर भले न ढूंढे मिले लेकिन हर शहर, कस्बे में भव्य मस्जिदें, जामा मस्जिदें, ईदगाह ज़रूर मिलेंगे... श्मशान भले न मिलें लेकिन विशाल कब्रिस्तान ज़रूर मिलेंगे...
वो चाहे झुककर आये चाहे अकड़कर आये, हमने स्वागत में पलक पाँवड़े बिछा दिए या जौहर करके प्राण न्योछावर कर दिए… वो हमें डराते सिकोड़ते गए, हम डरते सिकुड़ते गए… अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश भी उन्होंने दबंगई से ले लिया और फिर कश्मीर से भी हमें योजनाबद्ध ढंग से काँग्रेस के सहयोग से भगा दिया… लाखों बर्बर क़त्लेआम आम और अरबों की संपत्ति के साथ पाकिस्तान देने के बाद भी एक उससे बड़ा पाकिस्तान आज हम सिर पर ढो रहे हैं... वो मनमानी करते रहे और हम उनके एक वोट की ख़ातिर सेक्युलरिज़्म का झण्डा लेकर गंगा-जमनी कौमी एकता के तराने गाते रह गए… हिन्दू कोड बिल हम पर थोप दिया गया… यूनिफॉर्म सिविल कोड तो छोड़िए उन्हें मुस्लिम कोड बिल भी नामंजूर है… हम संविधान से चलना चाहते हैं, वो 1400 सौ साल पुरानी कबायली शरीयत से… हम आधुनिक शिक्षा चाहते हैं, वो ज्यादा से ज्यादा मदरसे… हम कुरीतियों से पूरे भारतीय समाज को दूर करना चाहते हैं, वो ज्यादा से ज्यादा दकियानूसी बने रहना चाहते हैं… जिनको भारत माता की जय पर परहेज़ है उन्होंने अब जय भीम जय मीम का नारा देकर अनुसूचित जातियों और अन्य हिंदुओं में दरार डालनी भी शुरू कर दी…
सवाल यह है कि वो कब तक हमें दबाकर, धमकाकर, पसड़ मचाकर, फूट डालकर, राजनेताओं के गठजोड़ से हमें डराते दबाते सिकोड़ते जाएंगे और हम अपने ही सनातन मुल्क में दबते सिकुड़ते हुए पीड़ित-शोषित होकर भी भाईचारे में दांत चिहारते रहेंगे… मूर्तियां तो बसपा ने भी ढेरों लगवाईं और तमाम राज्यों में तमाम सरकारों ने… तो फिर लक्ष्मण की मूर्ति पर विवाद क्यूँ…? विशेषकर उस टीले वाली मस्ज़िद के लोगों द्वारा जो मस्ज़िद लक्ष्मण मन्दिर के भग्नावशेषों से बने टीले पर ज़बरन तामीर हुई हो… धर्म स्वयं अपाहिज होता है उसे धारण करके आगे बढ़ाना होता है… धर्मो रक्षति रक्षितः… हम धर्म की रक्षा कर पाएंगे तभी धर्म हमारी रक्षा कर पायेगा… और धर्म की पहचान में उसकी समूची संस्कृति भी शामिल है और उसके धार्मिक रीतिरिवाज़ और स्मारक भी… इसलिए हमें समूची सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए प्राथमिकता के तौर पर मुख़र होना ही होगा… धर्म रक्षा के लिए टकराना भी धर्म ही है… कायरतापूर्ण समर्पण अधर्म है…
शठे शाठ्यम समाचरेत...
बहन स्तुति शर्मा की वाल से

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