अपने नेतृत्व पर विश्वास कीजिये...
उनमे कमी निकालनी बन्द कीजिये...
इतिहास सिर्फ पढ़ना या जानना ही काफी नही है बल्कि उससे कुछ सीख लेने की आवश्यकता है। मरते दम तक जिन्ना हर लिहाज से #काफ़िर रहा।सुअर वो खाता था।सिगार वो पीता था।बकरा दाढ़ी उसने कभी रखी नही।मस्जिद कभी गया नही।पहनावा हमेशा फिरंगियों का नम्बर एक दारूबाज और तो और अपने बंगले पर खुलेआम दारू और सुअर के मांस ,, डांस पार्टी वो अक्सर करता रहता था।
उनमे कमी निकालनी बन्द कीजिये...
इतिहास सिर्फ पढ़ना या जानना ही काफी नही है बल्कि उससे कुछ सीख लेने की आवश्यकता है। मरते दम तक जिन्ना हर लिहाज से #काफ़िर रहा।सुअर वो खाता था।सिगार वो पीता था।बकरा दाढ़ी उसने कभी रखी नही।मस्जिद कभी गया नही।पहनावा हमेशा फिरंगियों का नम्बर एक दारूबाज और तो और अपने बंगले पर खुलेआम दारू और सुअर के मांस ,, डांस पार्टी वो अक्सर करता रहता था।
मगर उसकी एक सबसे बड़ी खासियत थी कि उस समय वो अपनी कौम का सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा शख्स था और उसकी बातें ना तो #कांग्रेस और ना ही #अंग्रेज़ अनदेखी कर सकते थे।जब उसने नकली सिकुलर #कांग्रेस का साथ छोड़ #मुस्लिम लीग का दामन थामा तो उसकी कौम के हर शख्स ,,मौलवियों समेत ने उसकी हर #काफ़िर / गैर इस्लामी आदतों को नज़रंदाज़ करके उसे अपना #रहनुमा बना लिया। #कौम ने उसकी एक ही खूबी की वजह से उस पर अंधविश्वास कर लिया।
नतीजा ये हुआ कि #जिन्ना अब अपनी कौम की बातें पूरे जोर शोर रखने लगे। पूरी कौम से कोई भी विरोध का स्वर नही उठा और वो एक नए मुल्क का जन्म करने में सफल रहा।
मुल्क का नाम रखा #पाकिस्तान - पवित्र स्थान,, जहां सिर्फ #शरीयत का राज हो। । मगर #जिन्ना ने फिर भी अपना रहन सहन नही बदला। उसने #सिगार ,,#स्कॉच व #सुअर को नही छोड़ा। मगर कौम ने फिर भी उन्हें #कायदे आज़म बना दिया।
सवाल ये उठता है कि मुस्लिम इतने कट्टर होते हुए भी क्यों #जिन्ना की हर #गैर मुस्लिम हरकतों को नज़रंदाज़ करके ,,उन्हें कायदे आज़म बना गए ??
#जवाब है कि मुस्लिमो को अपने लक्ष्य का ही ध्यान था। उन्हें एक नए मुल्क की जरूरत थी। वो जो कोई भी दिलाये ,,वही उनका खुदा था।
दूसरी तरफ हिन्दुओ को देख लो।
हिन्दू उस इंसान में कोई ना कोई गलती निकाल रहे हैं जो 12 बरस तक उस राज्य का मुख्यमंत्री रहा जहां हर बरस दंगे होते थे। उसने बड़े सलीके से जिहादियों को उन्होंने उनकी औकात दिखा दी जिससे वे 16 बरस से दुबके बैठे हैं।
ये वही इंसान है जिसने कभी भी अपने पद का दुरुपयोग अपने सगो के लिये नही किया। जिस का पूरा जीवन बेदाग रहा है।
उसी इंसान को कुछ हिन्दू धर्म द्रोही साबित करने पर तुले है। उन पर वोट की खातिर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हैं। बार बार उनकी खिल्ली उड़ाते हैं ये कहकर कि शांतिदूत उन्हें कभी वोट नही देंगे,, जितने चाहे तलवे चाट लो।
इतना भी नही सोचते ये भोंपू कि 3 चुनाव उसने cm के जीते हैं। उसे पता है कि शांतिदूत उसे वोट नही देते/देंगे।
इतना भी नही सोचते ये भोंपू कि 3 चुनाव उसने cm के जीते हैं। उसे पता है कि शांतिदूत उसे वोट नही देते/देंगे।
अगर तुष्टिकरण की ही बात होती तो योगीजी को,, सोनवाल को और विप्लव को कभी भी मुख्यमंत्री नही बनाते। किन्ही वसुंधरा,, सुषमा,, राजनाथ जैसे सेकुलर को बना सकते थे।
2019 ज्यादा दूर नही है। अपने नेतृत्व पर विश्वास कीजिये। उसे मजबूत कीजिये।
उनमे कमी निकालनी बन्द कीजिये।
जो कमी निकाल रहे हैं वे 2 प्रकार के हैं -
1. ये सोचते हैं कि उनसे ज्यादा बुद्धिमान कोई है ही नही। अपने को भीड़ से अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
2. जो तोगड़िया जी व आडवाणी जी के समर्थक हैं। इन्हें लगता है तोगड़िया जी से बड़े हिन्दू रक्षक धरा पर नही। ये भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति को कभी ना कभी रिटायर होना पड़ता है। आडवाणी जी को 2009 में pm कैंडिटेट घोषित किया था। जीती जिताई बाज़ी हार गए। तोगड़िया जी को भी बहुत मौके मिल चुके सेवा करने के। अब नई पीढियां आ चुकी हैं जो इनसे अपने को रिलेट ही नही कर पा रही। इसलिये इन्हें स्वयं ही रिटायर हो जाना चाहिये ।
2. जो तोगड़िया जी व आडवाणी जी के समर्थक हैं। इन्हें लगता है तोगड़िया जी से बड़े हिन्दू रक्षक धरा पर नही। ये भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति को कभी ना कभी रिटायर होना पड़ता है। आडवाणी जी को 2009 में pm कैंडिटेट घोषित किया था। जीती जिताई बाज़ी हार गए। तोगड़िया जी को भी बहुत मौके मिल चुके सेवा करने के। अब नई पीढियां आ चुकी हैं जो इनसे अपने को रिलेट ही नही कर पा रही। इसलिये इन्हें स्वयं ही रिटायर हो जाना चाहिये ।
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