Monday, 23 July 2018

  वो गद्दार है  ..   जिसने आज़ाद की मुखबिरी की थी 
चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस १- गोखले मार्ग मे रखी है ..उस फ़ाइल को नेहरु ने सार्वजनिक करने से मना कर दिया , नेहरु ने यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को उस फ़ाइल को नष्ट करने का आदेश दिया था .. लेकिन चूँकि पन्त जी खुद एक महान क्रांतिकारी रहे थे इसलिए उन्होंने नेहरु को झूठी सूचना दी की उस फ़ाइल को नष्ट कर दिया गया है ..
क्या है उस फ़ाइल मे ?
उस फ़ाइल मे इलाहाबाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर के बयान दर्ज है जिसकी अगुवाई मे ही पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आज़ाद शहीद हुए।
नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि ” मै खाना खा रहा था तभी नेहरु का एक संदेशवाहक आया उसने कहा कि नेहरु जी ने एक संदेश दिया है कि आपका शिकार अल्फ्रेड पार्क मे है और तीन बजे तक रहेगा .. मै कुछ समझा नही फिर मैं तुरंत आनंद भवन भागा और नेहरु ने बताया कि अभी आज़ाद अपने साथियो के साथ आया था वो रूस भागने के लिए बारह सौ रूपये मांग रहा था मैंने उसे अल्फ्रेड पार्क मे बैठने को कहा है ”
फिर मै बिना देरी किये पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारो ओर घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर हमारे एक इंस्पेक्टर को मार दिया फिर मैंने भी गोली चलाने का हुकम दिया .. पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी।”
आजाद नेहरु से मिलने क्यों गए थे ? इसके दो कारण है
१- भगत सिंह की फांसी की सजा माफ़ करवाना
महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद जिनके नाम से ही अंग्रेज अफसरों की पेंट गीली हो जाती थी,  27 फरवरी 1931 को  आजाद की मौत हुयी थी। इस दिन सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवाने के लिए मिलने गये थे, क्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ”सम्बन्ध” थे, 
पर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी, दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी, आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये। इसी पार्क में नाट बाबर के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हुए थे। अब आप अंदाजा लगा लीजिये कि उनकी मुखबरी किसने की? आजाद के  इलाहाबाद में होने की जानकारी सिर्फ नेहरु को थी। अंग्रेजो को उनके बारे में जानकारी किसने दी ? जिसे अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका, तलाश नही सका था, उसे अंग्रेजो ने 40 मिनट में तलाश कर, अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया। वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तैयारी के साथ ?
२- लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए रूस जाकर स्टालिन की मदद लेने की योजना
 आज़ाद पहले कानपुर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ कि स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था। सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी। जो उनके पास नही थे इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगे जाये? लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा।
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहाबाद रवाना हो गए और आनंद भवन गए उनको सामने देखकर नेहरु चौक उठा।
आजाद ने उसे बताया कि हम सब स्टालिन के पास रूस जाना चाहते है क्योकि उन्होंने हमे बुलाया है और मदद करने का प्रस्ताव भेजा है। पहले तो नेहरु काफी गुस्सा हुआ फिर तुरंत ही मान गया और कहा कि तुम अल्फ्रेड पार्क बैठो मेरा आदमी तीन बजे तुम्हे वहाँ ही पैसे दे देगा।
 वो गद्दार है जिसने आज़ाद की मुखबिरी की थी 

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