Thursday 12 July 2018

 एक बार ठान लीजिए तो सफलता आपके कदम अवश्य चूमेगी
पहली महिला मैराथन धाविका कैथरीन........
पत्रकारिता की छात्र कैथरीन मैराथन रेस में भाग लेना चाहती थी। वह इसके लिए पुरूषों के क्रास कंट्री टीम के साथ अभ्यास करने लगी। दिन के दौड़ उसे पर्याप्त नहीं लगी। उसने रात को भी दौड़ लगाने की सोची। रात की दौड़ एक लड़की के लिए निरापद नहीं होती, इसलिए उसने एक 50 वर्षीय पुरूष धावक अर्नी व्रिग्स से मदद की दरख्वास्त की। अर्नी व्रिग्स उसकी लगन व तपस्या के कायल हो गये। अब कैथरीन उनकी देख रेख में रोज रात को भी 16 किमी. की दौड़ लगाने लगी। बाद में वह 48 किमी.तक की लम्बी दौड़ लगाने लगी थी।
अम्मेच्योर एथलीट यूनियन के दफ्तर ने कैथरीन को रजिस्ट्रेशन हेतु फॉर्म देने से मना कर दिया। कारण कि वह महिला थी। उन दिनों महिलाएं मैराथन रेस में भाग नहीं लेतीं थीं। कैथरीन ने जब अधिकारियों से यह कहा कि फॉर्म में तो स्त्री /पुरूष का कोई कॉलम नहीं है। फिर क्यों वे उसे रोका जा रहा है ? अधिकारियों को उसे फार्म देना पड़ा। यह अघोषित नियम उस दिन टूट गया।
19 अप्रैल सन् 1967 को दौड़ शुरू हुई। कैथरीन की जर्सी न. 261 था। दौड़ने वालों में कैथरीन एकमात्र महिला थी। सैकड़ों पुरूष पीछे छूटने लगे
यह देख पुरूषों का अहम सिर चढ़कर बोलने लगा
वे कैथरीन की दौड़ में बाधा उत्पन्न करने लगे
हद तब हुई जब कुछेक ने उसकी जर्सी खींचनी शुरू की, जैसा कि चित्र से स्पष्ट है ,पर बहती नदी को रोकने की कूवत सब में नहीं होती। हम वो दरिया हैं ,हमें अपना हुनर मालूम है ,चल पड़ेंगे, जिधर वो रास्ता हो जाएगा " की तर्ज पर कैथरीन आगे बढ़ती रही।
कैथरीन को मैराथन रेस पूरी करने वाली पहली महिला का खिताब मिला। जब एक बार रास्ता बन जाता है तो उस पर चलने वालों की कमी नहीं रहती है। मैराथन में एक बार कैथरीन को प्रवेश क्या मिला, मैराथन में भाग लेने की इच्छुक महिलाओं की बन आई। वे मैराथन रेस में भाग लेने लगीं। पुरूषों का वर्चस्व खत्म हो गया। कोई भी काम मुश्किल नहीं होगा, जब आप उसे कड़ी मेहनत व लगन से करेंगे। एक बार ठान लीजिए तो सफलता आपके कदम अवश्य चूमेगी। फिल्म उमरांव जान में शहरयार ने इसी कथन को प्रतिपादित किया है....
कहिए तो आसमां को जमीं पर उतार लाएं,
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए!!
साभार- SD Ojha

No comments:

Post a Comment