Saturday, 14 July 2018

Sandeep Deo
कांग्रेस हताश है! हताश कांग्रेस का अध्यक्ष राहुल गांधी अपने नाना और पिता के विभाजनकारी ऐतिहासिक डीएनए की ओर लौट चुके हैं। मुसलिमों में हिंदुओं का भय, डर, दंगा, संप्रदायिकता, मुसलिम कट्टरपन और तुष्टिकरण के कॉकटेल से बना है कांग्रेस के गांधी-नेहरू परिवार का विभाजनकारी डीएनए!
असल में कांग्रेस के इंटरनल सर्वे से लेकर उसके सभी ‘पेटिकोट मीडिया’ हाउस के सर्वे में यह स्पष्ट हो चुका है कि चार साल बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। यही नहीं, आम चुनाव-2019 को लेकर हिंदुओं के अंदर जाति की शिथिलता और धर्म के प्रति आग्रह है। यह भी लगभग तय जान पड़ता है कि अक्टूबर 2018 तक अयोध्या में भव्य राममंदिर के निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाएगा, जो हिंदुओं में एक नई चेतना का संचार कर सकता है। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी और उप्र के मुख्यमंत्री योगी सहित भाजपा को मिलेगा। ऐसे में कांग्रेस के पास अपने विभाजनकारी डीएनए में सिमटने के अलावा कुछ नहीं बचा है, इसलिए देश तोड़ने की दिशा में वह कदम बढ़ा चुकी है। अब कुछ गतिविधियों पर गौर कीजिए…
1) कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गुपचुप तरीके से मुसलिम बुद्धिजीवी यानी मुल्ले-मौलवियों-इमामों के साथ बैठक कर रहे हैं।
नोट- वैसे मुसलिम कौम में बुद्धिजीवी नहीं होता। ओसाबा बिन लादेन और अमेरिका का ट्वीन टावर उड़ाने वाला मोहम्मद अता भी खूब पढ़ा-लिखा मुसलिम बुद्धिजीवी ही था! समझ जाइए इसलाम में कैसे-कैसे बुद्धिजीवी होते हैं?
2) उर्दू अखबार इनकलाब के मुताबिक, इस बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस एक मुसलिम पार्टी है। मुसलमान इसे अपनी पार्टी मानें।
नोट- बात सच भी है। कांग्रेस का वास्तविक चरित्र ही मुसलमान पार्टी का है। भारत की जनता मूर्ख बनती रही है। मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर शेख अबदुल्ला तक को गांधी-नेहरू ने ही बढ़ाया और देश के विभाजन की बीज भी इनके मुसलिम तुष्टिकरणवादी नीति के कारण ही पड़ी।
3) मुसलिम पर्सनल बोर्ड अचानक से पूरे देश में शरिया अदालत के पक्ष में उतर आया है।
नोट- संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर संविधान में समान नागरिक संहिता चाहते थे। लेकिन नेहरू की जिद के कारण मुसलमानों का वासनमयी शरिया कानून लागू रहा और उनके नाती राजीव गांधी ने तो शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए मुसलमानों का 1400 पुराना शरिया लागू कर दिया।4) कांग्रेस और मुल्ले-मौलवियों ने एक सुर में कहना शुरु किया कि तीन तलाक, हलाला, बहुविवाह आदि पर अदालती हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होगा। जबकि संविधान में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने साफ-साफ समान नागरिक संहिता को लागू करने का उल्लेख किया है।
नोट- इसी के आधार पर कांग्रेस मुसलमानों को भय दिखाती रही है कि तुम्हारा यह इस्लामी नागरिक संहिता केवल हम लागू रख सकते हैं। भाजपा आते ही हटा देगी। कट्टरपंथी जमात इसी से खुश हो जाता है। उसे विकास से अधिक, ज्यादा बच्चे पैदा करने और ज्यादा स्त्री भोगने का अधिकार जो देगा, उसके लिए ही वह वोट करेगा-गणित साफ है।
5) कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद ने कश्मीर में सेना को नरसंहारी बता डाला।
नोट- कश्मीर में इसलामी जेहाद चल रहा है और इससे ज्यादातार मुसलमानों की सहानुभूति है। गुलामनबी आजाद ने भारतीय सेना पर हमला कर उसी जेहादी मानसिकता को सहलाया है।
6) कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने कश्मीर की आजादी की वकालत की और सरदार पटेल को कश्मीर की समस्या का कारण बता डाला। जबकि इतिहास गवाह है कि कश्मीर समस्या जवाहरलाल नेहरू की देन है।
नोट- नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का प्रधानमंत्री बना रखा था। उसका अलग झंडा था। कश्मीर का अलगाववाद नेहरू और शेख अब्दुल्ला के कम्युनिस्ट और इस्लामी सोच की उपज है।
7) 10 साल तक भारत के उपराष्ट्रपति पद पर विराजमान रहे कांग्रेसी मोहम्मद अंसारी ने अपने जेहादी चरित्र का खुलकर घोषणा करना शुरु कर दिया है। देश भर में शरिया अदालत स्थापना से लेकर जिन्ना की तस्वीर अलीगढ़ मुसलिम विवि में लगाए जाने के पक्ष में यह कट्टरपंथी मजहबी मुल्ला उतर आया है। हामिद अंसारी का कहना है कि कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल हो सकता है तो अलीगढ़ मुसलिम विश्विद्यालय में जिन्ना की तस्वीर क्यों नहीं?
नोट- अलीगढ़ मुसलिम विवि से निकले अंसारी के पूरे खानदान का कट्टरपंथी इतिहास है। यह वह लोग हैं, जिनके परिवार ने पाकिस्तान निर्माण की मांग की थी, लेकिन अपनी जमीन-जायदाद बचाने और अपने लाभ के लिए भारत में रुक गये थे
।8) कांग्रेसी वकील और सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पैरवीकार कपिल सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर पर सुनवाई 2019 के बाद हो।
नोट- कांग्रेस किसी भी हाल में 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण पर आने वाले फैसले को रोकने के प्रयास में जुटी है।
9) एक अन्य कांग्रेसी वकील और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धनव ने कहा कि बाबरी मसजिद हिंदू तालिबानियों ने तोड़ा।
नोट-हिंदुओं के साथ तालिबान जोड़ना, कांग्रेस की हिंदू विरोधी और मुसलिम कट्टरपंथ के पक्ष की मानसिकता को दर्शाता है।
10) कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि 2019 में यदि नरेंद्र मोदी फिर से जीते तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा।
नोट- थरूर अपनी बीबी की मर्डर में फंसा है। वह मोदी का विरोध करते करते हिंदुओं को गाली देने पर उतर आया है।
11) कश्मीर के मौलाना ने कहा कि हमें शरिया नहीं दे सकते तो हमें अलग देश दो।
नोट- यह विभाजनकारी मुसलिम जमात का वास्तविक सोच है।
इन सब में दो बातें कॉमन है। पहली, हिंदुओं का अपमान, उस पर हमला। दूसरा, मुसलिम तुष्टिकरण, मुसलमानों की कट्टरता को उभारना और एक अलग शरिया वाले देश के लिए भारत के एक और विभाजन का सपना उन्हें देना।
अब कांग्रेस की तकलीफ समझिए
सत्ता के बिना कांग्रेस निर्जीव है। यदि किसी राज्य में लगातार 10 साल कांग्रेस सत्ता से बाहर रही हो फिर वह इतिहास की वस्तु बनकर रह जाती है। यही 2019 में भी डर है। यदि इस बार कांग्रेस हार गयी तो हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। कांग्रेस ने सत्ता के लिए अपने अध्यक्ष राहुल गांधी को कोट पर जनेउ पहनाने से लेकर, मंदिर-मंदिर भटकाने, हिंदुओं को तोड़ने के लिए जातिवादी-दलितवादी आंदोलन भड़काने और लिंगायत के रूप में हिंदुओं को बांटने का सारा कुचक्र रचा, तब भी वह भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पा रही है। कहने को गुजरात में भाजपा की सीटें कम हुई और कर्नाटका में कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बना ली, लेकिन देखा जाए तो दोनों राज्यों में कांग्रेस की बड़ी हार हाथ लगी है। 22 साल की सत्ता के बावजूद कांग्रेस गुजरात से भाजपा को नहीं हटा पायी और लाख विभाजन का बीज बोने के बाद भी कर्नाटक में वह भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनने से नहीं रोक पायी।
राजनीतिक रूप से सबसे अधिक 80 सीटें देने वाली उप्र में कांग्रेस मरणासन्न है और 40 सीटों वाली बिहार में भी उसका वजूद समाप्त है। यही नहीं, बंगाल से लेकर आसाम तक और मप्र व राजस्थान से लेकर उड़ीसा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु तक वह कहीं नहीं है। 2019 के आम चुनाव में वह सीट लाएगी तो कहां से लाएगी?
राम मंदिर का कांग्रेस को भय
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि 2019 के आम चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरु हो जाएगा। परिस्थिति भी इसी ओर इशारा कर रही है। इतिहास में यह पहली बार है जब राममंदिर पर लगातार सुनवाई हो रही है। राममंदिर पर सुनवाई न हो इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के साथ षड़यंत्र करने से लेकर इसकी सुनवाई 2019 तक टालने का सारा प्रयास करके कांग्रेस देख चुकी है। अब तो इस जमीन विवाद को वह मुसलमानों की आस्था से जोड़ने और हिंदुओं को तालिबानी कहने तक का प्रपंच अदालत में रच चुकी है। लेकिन राममंदिर पर सुनवाई लगातार चल रही है। उम्मीद है कि अपने सेवानिवृत्ति यानी 2 अक्टूबर 2018 से पहले मुख्य न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई पूरी कर देंगे। यदि नहीं तो मोदी सरकार न्यायधीशों का कार्यकाल भी बढ़ा सकती है।
कांग्रेस को भय है कि अभी ही हिंदुओं का बड़ा वोट बैंक मोदी-योगी के कारण भाजपा की ओर है। ऐसे में जब राममंदिर पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला आ गया तो फिर हिंदुओं का पूरा उफान भाजपा की ओर हो जाएगा, इसलिए वह षड्यंत्र रचते-रचते अब हताश की ओर बढ़ चुकी है!
हताश कांग्रेस का पूरा दांव मुसलमानों पर
हताशा में कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी ने उसी राह को चुना है जो उनके पिता के नाना जवाहरलाल नेहरू और खुद उनके पिता राजीव गांधी ने चुना था। यही नहीं, सोनिया की मनमोहन सरकार ने भी मुसलिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार कर दी थी। देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलामनों का कहने से लेकर, सच्चर कमेटी, सांप्रदायिक लक्षित हिंसा विधेयक लाने का प्रयास, राम के वजूद को अदालत में नकारना, रामसेतु को तोड़ना, हिंदुओं को आतंकवादी कहना, भगवा आतंकवाद, आतंकवादी इशरत जहां, सोहराबुद्दीन, बाटला हाउस आदि के पक्ष में उतरने जैसे सारे कुकर्म मुसलमान वोट के लिए किया गया था।
कांग्रेस का प्रयास है कि हिंदुओं को जाति में तोड़कर जातिवादी-कुनबाई नेताओं की ओर ढकेला जाए और खुद मुसलमान पार्टी का वजूद बनाकर मुसलमान वोटों के लिए काम किया जाए। इस तरह मुसलमान और जाति का वोट मिलकर उसके लिए चुनावी कॉकटेल का निर्माण कर देगी, जिससे वह 2019 का चुनाव जीत जाएगी। खुद को मुसलमान पार्टी बनाने के लिए मुसलामनों में भाजपा व संघ का डर पैदा करना, उनके अंदर की विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देना और उन्हें 1400 साल पुराने मध्ययुगीन बर्बर कानून का झुनझुना थमाना, यही कांग्रेस की नीति रही है और अब राहुल गांधी ने उसी पर चलने का निर्णय किया है।
क्या अंसारी को आगे करेंगे राहुल?
राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर न तो ममता बनर्जी तैयार है, न मायावती तैयार है, न ही शरद पवार आदि उसके गुट के नेता तैयार हैं। ऐसे में कांग्रेस के तुरुप का पत्ता कट्रपंथी मजहबी जेहादी हामिद अंसारी है, जिसे देश के पहले मुसलमान प्रधानमंत्री के रूप में प्रमोट करने कांग्रेस खेलने का जोखिम लेने की ओर अग्रसर है। जब से देश में अलगाववादी मुसलिम मुद्दों को हवा दी जा रही है, तब से कांग्रेस ने हामिद अंसानी को मीडिया के सामने ठेल दिया है, जो साफ-साफ कांग्रेस का अंसारी जैसे कट्टरपंथी की आड़ में सत्ता की चाभी पाने का प्रयास दिखा रही है। कट्टरपंथी मजहबी अंसारी के लिए ममता, मायावती, लालू, अखिलेश, शरद पवार, शरद यादव, उमर अब्बदुल्ला, महबूबा मुफ्ती, ओवैसी, पीस पार्टी सहित सभी छोटे-बड़ी मुसलिम व जातिवादी पार्टी और तथाकथित सेक्यूलर नेता जमा हो जाएंगे। जो अंसारी का विरोध करेगा, उसे राहुल गांधी के ‘पीडी पत्रकार’ सेक्यूलरिज्म का विरोधी प्रचारित करेंगे। कांग्रेस को लगता है कि यह डर काम करेगा और अंसारी के नाम पर विपक्षी एकता बन जाएगी।
तो फिर क्या होगा 2019 का रोडमैप?
तो फिर 2019 का पूरा चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान पार्टी के बीच होगा। हिंदुओं की पार्टी भाजपा और मुसलमानों की पार्टी कांग्रेस। यह पूरा चुनाव राम बनाम मोहम्मद के नाम पर होगा। इससे बचा नहीं जा सकता है। इसलिए अच्छा है कि हिंदू इन संभावित खतरों को समझे और एक हो जाए। पिछले चार साल में इस देश के किसी बड़े शहर में न तो एक भी इसलामी आतंकवादी हमला हुआ है और न ही सांप्रदायिक दंगा ही हुआ है। कांग्रेस की हर योजना को मोदी सरकार नाकाम करती आ रही है। आतंकियों को बॉर्डर एरिया में रोक कर ही एनकाउंटर किया जा रहा है। अपराधियों को सड़क से लेकर जेल तक शूट किया जा रहा है। ऐसे में जनता को 2004-14 तक का वह कार्यकाल याद रखना है जब हर शहर में सीरियल ब्लास्ट हुआ करते थे, और तय मानिए यह सब कांग्रेस के डर की राजनीति की ही उपज थी। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस के सत्ता से हटते ही आतंकवादी शहर से ही गायब हो गये? सोचिए, क्योंकि सोचने पर ही सही रास्ता सूझता है।





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