Wednesday 1 August 2018

patr Vishesh



असम ही एक मात्र राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। असम + में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से थोड़ा अलग है। प्रदेश में 1985 से लागू असम समझौते के अनुसार, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्‍य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय
नागरिक माना जाएगा।
बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर राजीव गांधी ने एजीपी से किया था समझौता
असम में 1980 में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हावी था। पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने के बाद से असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का अवैध प्रवेश चल रहा था। घुसपैठ के मुद्दे ने राज्य की राजनीति में भी जोर पकड़ा और सिटिजनशिप रजिस्टर अपडेट करने को लेकर आंदोलन खड़ा हो गया। इसका इसका नेतृत्व अखिल असम छात्र संघ (आसू) और असम गण परिषद ने किया था। आंदोलन की आंच राष्ट्रीय राजनीति तक भी पहुंच गई और 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ।
राजीव ने अवैध बांग्लादेशियों को बाहर करने का आश्वासन दिया था ....
असम गण परिषद और अन्य आंदोलनकारी नेताओं के बीच असम समझौता हुआ। राजीव गांधी ने अवैध बांग्लादेशियों को प्रदेश से बाहर करने का आश्वासन दिया था। इस समझौते में कहा गया कि 25 मार्च 1971 तक असम में आकर बसे बांग्लादेशियों को नागरिकता दी जाएगी। इस तय समय के बाद आए बाकी लोगों को राज्य से डिपोर्ट किया जाएगा।
एनआरसी पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। असम के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था। 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह काम शुरू हुआ और 2018 जुलाई में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने, जिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, उन पर किसी तरह की सख्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है।
पवन अवस्थी
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40 लाख अवैध अप्रवासी ,...एक भी नही जाएगा लिखवा लो आज ! 
अंध चमचो जो कि पार्टी भक्ति को ही हिंदुत्व का नाम देते हैं !उलझने से कुछ नही होने वाला क्योकि सच्चाई यही है!
 एक घटना का स्मरण हो रहा है जैसा कि मेरे बड़े भैया ने बताया!
बात 1998 की है महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना सरकार की थी मुम्बई कोर्ट के अलग अलग आदेशों के अनुसार 96 लोग अवैध बांग्लादेशी इमिग्रेंट साबित हुए !
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को इस विषय मे सूचना डाल कर सभी अवैध प्रवासियों को कुर्ला एक्सप्रेस में एक डिब्बा रिज़र्व कर अपने सशस्त्र पुलिस बल संख्या 14 के साथ बांग्लादेश बॉर्डर के लिए रवाना कर दिया ताकि पुलिस देख रेख में इन्हें अपने देश बांग्लादेश वापिस भेजा जा सके!
परन्तु हावड़ा स्टेशन पहुंचने से पहले जिस स्टेशन पर गाड़ी रुकी वहां 9000 हथियारबंद मुस्लिम शांतिदूत स्वागत के लिए तैयार खड़े थे ! वहां उन्होंने सीधा उसी डिब्बे पर हमला किया जहां वो अवैध बांग्लादेशी deport करने के लिए ले जाये जा रहे थे!
14 पुलिस वालों को अपनी सुरक्षा के लिए हवाई फायरिंग करनी पड़ी अगर रेलवे पुलिस बल उनको ना निकालता तो उनकी मृत्यु mob lynching के तहत तय थी!
यह सब Cpi की सरकार के MP की देख रेख में हुआ 2,4 दिन बाद उस Mp हारून मुल्ला ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि "बंगाली बोलने वालों को बांग्लादेशी करार देने वाली महाराष्ट्र सरकार निरीह मुसलमानों पर जुल्म कर रही है यह बर्बर सरकार है!
हालांकि सर्वविदित सत्य यह है कि महाराष्ट्र सरकार सिर्फ कोर्ट के आदेशों का पालन कर रही थी , तत्कालीन वामपंथी सरकार के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने भी इन अवैध प्रवासियों के हक में बयान दिया!
1980 से 1991 तक महाराष्ट्र सरकार ने 8113 बांग्लादेशियों को deport करने के लिए पश्चिमी बंगाल में भेजा पर बंगाल बॉर्डर पार करते ही उन्हें छुड़वा लिया गया!
कामरेडिओं का राज गया पर बंगाल में अवैध बांग्लादेशियों की संख्या इतनी है कि वो जो चाहें वही होगा ,इसी संविधानिक कमज़ोरी को मोमता ने भुनाया ! मोमता का कोर वोटर अवैध बांग्लादेशी हैं इसीलिए आसाम से 40 लाख अवैध घोषित हुए बांग्लादेशियों के हक में नागिन फुंकार रही है!
अब उन अति उत्साहित भक्तजनों को कुछ कहना चाहता हूं यारों 40 लाख लोग जो 1975 से पहले की नागरिकता साबित नही कर पाए क्या उनका परिवार नही है?
1975 से अब तक 44 साल बीत चुके जिस हिसाब से इन  का प्रजनन है उस हिसाब से तो 75 में जन्म लेने वाला कम से कम 5 बच्चे और 20 दोहते पोतों वाला तो होगा ही तो प्रश्न यह है कि अगर यह अवैध हैं तो इनको किधर भेजोगे?
भारत सरकार अगर यह कहेगी कि ये अवैध बांग्लादेशी या अवैध म्यांमार के नागरिक हैं तो क्या वो सरकारें मान लेंगी?
और अगर ज़बरदस्ती इन्हें सीमा के पास खड़ा कर दिया और उधर देश की govt यह कह दे कि ये हमारे नही तो क्या कर लेगी इंडियन govt?
उधर इनको गोली मारने का आदेश होगा कि जो भी बॉर्डर क्रॉस करे उसे गोली मार दो!
और फिर क्यों भूल जाते हो कि ये जो 4 साढ़े 4 साल से बिना हड्डी के तड़फ रहे कुत्ते जो ngo ,मीडिया वगैरह हैं वो एक क्षण भी नही लगाएंगे वहां पहुंचने में और फिर अंतराष्ट्रीय दवाब, मानवाधिकार संगठन, जेनेवा समझौता, कुल मिला कर 40 लाख औऱ उनकी औलादों को अगर वो देश ना लेना चाहें तो क्या कर लोगे?
एक भी नही जाएगा लिखवा लो आज ! अंध चमचो उलझने से कुछ नही होने वाला क्योकि सच्चाई यही है!
अरून शुक्ला  .................box.................👇कार्यवाही तो जरूर करनी पड़ेगी.
1..उन्हें वोट देने का कोई अधिकार न हो.चुनाव आयोग ने भी कहा अभी प्रारम्भिक रिपोर्ट है.अंतिम रिपोर्ट आने के बाद ही मतदाता सूची से नाम निकाला जा सकेगा.
2..इन्हें भारत मे कोई अचल सम्पति न खरीदने दी जाय.यदि कोई उनकी सम्पति है तो उसे शत्रू सम्पति मानकर उसे जप्त किया जाय.
3..उन्हें सरकारी नौकरी, प्राइवेट नौकरी तथा अन्य सरकारी लाभ से वंचित कर दिया जाय.
4..भविष्य में अन्य प्रदेशों में भी NRC की कवायद होनी चाहिए खासकर पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में. इसमे तो शीघ्र से शीघ्र कार्य प्रारंभ कर दिया जाना चाहिए...............box......................



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 भारत के हर जिले में हिन्दू युवक युवतियों को मिल कर एक हिन्दू क्वीक रिस्पॉन्स टीम बनाना चाहिए 
जो दो स्तर पर काम करेगा।
1. किसी हिन्दू (व्यक्तिगत, परिवार या समाज) को किसी तरह की आवश्यकता या सहायता का जरूरत हो तो ये टीम तुरंत उनके पास पहुंच के वस्तुस्थिति को समझते हुए सहायता के लिए उचित निर्णय ले। इसमें लव जिहाद, दुसरे समुदाय के लोगों द्वारा धमकाने मारने इत्यादि जैसे केस में कानूनी, आर्थिक और अन्य प्रकार से सहायता पहुचाया जा सकता है।
2. जहां जरूरत हो हिन्दूओ से जुडे स्थानीय मुद्दों पर पुलिस प्रशासन, तथा सरकर पर दबाव बनाने का काम कर सकता है।
कोई संगठन नही कोई तामझाम नही। बस वॉलंटियर के जैसा। नंबर का आदान-प्रदान और सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर एक वेबसाइट में सभी का फोन नंबर और जरूरी सुचना उपलब्ध हो। जहां जरूरत हो लोग आपस में बात कर तुरंत पहुंचें।
इस प्रस्ताव पर अपना मत जरूर दें। मेरा ये सुझाव होगा कि इस टीम में किसी राजनीतिक पार्टी के लोग ना रहे तो अच्छा होगा। साथ ही संघ और उससे जुड़े संगठनों के लोगों से भी दूरी रखना ठीक रहेगा। आप सब के विचार आमंत्रित है।
नीरज सिन्हा

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