बैलाडीला की पहाड़ी श्रृंखलाओं में से एक ढोलकल नामक पहाड़ी है। इसके शिखर पर विराजमान गणेश जी की सैकड़ों वर्ष पुरानी दुर्लभ प्रतिमा प्राचीन संस्कृति का परिचायक है। पहाड़ी ढोल के स्वरूप में होने से इसका नाम ढोलकल पड़ा, लेकिन ऊंची चोटी पर मूर्ति कब, किसने और कैसे स्थापित की, यह अब भी रहस्य है।
लगभग 2 हजार 5 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थापित गणेश जी तक पहुंचने केवल पंगडंडी का सहारा है। रास्ते में बरसाती नाले को पार करने के साथ जंगल से होकर गुजरना पड़ता है।
पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि इसे छिंदक नागवंशीय राजाओं ने स्थापित करवाया था। लगभग तीन फीट ऊंची यह प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पुरानी बताई गई है।
ढोलकल से जुड़ी किंवदंतियों में से एक यह है कि इस पहाड़ी पर परशुराम और गणेशजी के मध्य युद्घ हुआ था। परशुराम से ही फरसपाल का नाम पड़ा था। इससे जुड़ी कुछ और लोक कथा भी प्रचलित है।
लगभग 2 हजार 5 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थापित गणेश जी तक पहुंचने केवल पंगडंडी का सहारा है। रास्ते में बरसाती नाले को पार करने के साथ जंगल से होकर गुजरना पड़ता है।
पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि इसे छिंदक नागवंशीय राजाओं ने स्थापित करवाया था। लगभग तीन फीट ऊंची यह प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पुरानी बताई गई है।
ढोलकल से जुड़ी किंवदंतियों में से एक यह है कि इस पहाड़ी पर परशुराम और गणेशजी के मध्य युद्घ हुआ था। परशुराम से ही फरसपाल का नाम पड़ा था। इससे जुड़ी कुछ और लोक कथा भी प्रचलित है।
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