Thursday, 14 April 2016

पांच अरब की शराब गटक जाते हैं बुंदेलखंड के लोग

बुंदेलखंड भयानक सूखे के दौर से गुजर रहा है। अकाल जैसे हालात हैं। बूंद-बूंद पानी के लिए मारामारी मची है। लेकिन यहां मदिरा की कोई कमी नहीं है।

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चित्र का इस्तेमाल सिर्फ प्रतीक के तौर पर किया गया है।
जो बुंदेलखंड बूंद-बूंद पानी को तरस रहा हो, वहां के लोग पांच अरब से अधिक कीमत की शराब गटक जाते हैं। सुनने में जरूर आश्चर्यजनक लग रहा होगा। लेकिन सागर संभाग के पांच जिलों के शराब ठेकों की नीलामी पांच अरब को छू गई है। यह तो सरकारी बोली का आंकड़ा है। अगर इसमें नंबर दो यानी ब्लैक में बिकने वाली दारू का आंकड़ा जोड़ दिया जाए तो यह राशि दस अरब के लगभग पहुंच जाती है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि मध्यप्रदेश में अब कोई भी नई शराब की दुकान नहीं खुलेगी, यह सुनने में जरूर रामराज्य की कल्पना परिलक्षित करने जैसा लगता है। दूसरी ओर, शराब ठेकों से बढ़ते राजस्व से ये घोषणाएं बेमानी-सी लगती हैं।
बुंदेलखंड भयानक सूखे के दौर से गुजर रहा है। अकाल जैसे हालात हैं। बूंद-बूंद पानी के लिए मारामारी मची है। लेकिन यहां मदिरा की कोई कमी नहीं है। बारिश और शराब ठेकों की नीलामी से प्राप्त राजस्व आय की समान तुलना की जाए तो जहां पानी नहीं, वहीं शराब की बहार है। सागर संभागीय मुख्यालय में इस बार सरकार ने 35 मदिरा समूह का आरक्षित मूल्य 2 अरब 1 करोड़ 1 लाख 52 हजार 355 रुपए तय किया था, जिसे लगभग पूरा कर लिया गया। 35 मदिरा समूह में से 14 समूहों से ही पहले चरण की नीलामी में ही सरकार को 87 करोड़ 37 लाख 31654 रुपए प्राप्त हो गए थे। जबकि कुल 35 मदिरा समूह हेतु आरक्षित मूल्य 2 करोड़ एक लाख 52355 रुपए था। दमोह जिले में 41 देशी और 17 विदेशी मदिरा की दुकाने हैं।
याद करें 2010 में मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश बचाओ यात्रा में शराबबंदी की वकालत की थी। दूसरी ओर नई शराब की दुकाने खुलती रहीं। जनसंख्या के आधार पर औसतन हर 12 हजार की जनसंख्या पर एक शराब की दुकान खुली हुई है। खासकर मलिन, दलित और कमजोर तबके जिन मोहल्लों में रहते हैं, उस इलाके में देशी शराब का ठेका जरूर संचालित मिल जाएगा। सरकार की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की कोशिश और शराब दुकानों का इन बस्तियों में बिक्री कराने के पीछे क्या मंशा है, यह स्वत: ही समझा जा सकता है। शराब की उपलब्धता जहां होम डिलीवरी जैसी है, वहीं पानी की एक बूंद पाने के लिए आमलोग तरस रहे हैं। सरकार इस नैसर्गिक आवश्यकता को पूरा करने में शराब की उपलब्धता जैसी ही योजना बनाती तो आज पानी के लिए सिरफुटव्वल जैसी नौबत नहीं आती। फिलहाल पानी न मिले, पर शराब अवश्य उपलब्ध है।

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