Friday, 31 March 2017

स्कूल भारत में छोटे छोटे से होते हैं | ऐसा ही एक छोटा सा स्कूल पुणे के पिंपरी नाम के इलाके में है | पिंपरी, चिंचवाड जैसी जगहें पुणे की इंडस्ट्रियल जगहें होती हैं | शहर से थोड़ी बाहर की तरफ | यहाँ पीने के पानी, पौधों के लिए कोई नहीं पूछता | यहाँ “सिटी प्राइड स्कूल” बच्चों से पीने का पानी ले लेता है |

स्कूल के वाटर बोतल में भरा पानी, जो भी बचा हो वो बच्चों से एक ड्रम में जमा करवा लिया जाता है | फिर उनका इस्तेमाल इलाके के पेड़ों में पानी देने के लिए होता है | ये सराहनीय पहल है | इलाके के और स्कूल भी इसका अनुसरण शुरू कर रहे हैं मगर धीमे | हमारे आपके प्रयासों से ये तेज़ हो सकता है |

बच्चों को बोतल का बचा हुआ पानी किसी पेड़ में डालना सिखा दीजिये | ये देश का भविष्य है | कल को ये पेड़ हमारे काम आयेंगे | आपका छोटा सा प्रयास भारत की दिशा और दशा बदल सकता है | हिच्किचायिये मत |

एक छोटा सा प्रयास, 100% आपके बस का !
16 श्रृंगार का विशेष महत्व....

श्रृंगार भारतीय पंरपरा का वह हिस्सा है जो सदियों से चला आ रहा है। हिन्दु स्त्रियों के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। यहां जानिए इन चीजों से जुड़ी खास बातें…
बिंदी– स्त्रियों के लिए बिंदी लगाना अनिवार्य परम्परा है शास्त्रों के अनुसार बिंदी को घर-परिवार की सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। माथे पर बिंदी जहां लगाईं जाती है, वहां आज्ञा चक्र होता है, इसका संबंध मन से है। यहां बिंदी लगाने से मन की एकाग्रता बनी रहती है।
गज़रा– फूलों का गज़रा भी अनिवार्य श्रृंगार माना जाता है। इसे बालों में लगाया जाता है।
टीका– विवाहित स्त्रियां माथे पर मांग के बीच में जो आभूषण लगाती हैं, उसे टीका कहा जाता है। यह आभूषण सोने या चांदी का हो सकता है।
सिंदूर– विवाहित स्त्रियों के लिए सिंदूर को सुहाग की निशानी माना जाता है। मान्यता है कि सिंदूर लगाने से पति की आयु में वृद्धि होती है। सिर पर जहां मांग में सिंदूर भरा जाता है, वहां मस्तिष्क की महत्त्वपूर्ण ग्रंथि होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहा जाता है। यह ग्रंथि बहुत संवेदनशील होती है। इस स्थान पर सिंदूर लगाने से स्त्रियों को मानसिक शक्ति मिलती है। सिंदूर में पारा धातु होती है जो कि ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि की तरह है।
काजल– आँखों की सुंदरता बढ़ने के लिए काजल लगाया जाता है। काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र नहीं लगती हैं। साथ ही, आँखों से संबंधित कई रोगों से बचाव भी हो जाता है।
मेहंदी– किसी भी स्त्री के लिए मेहंदी भी अनिवार्य श्रृंगार माना गया है। किसी भी मांगलिक कार्यक्रम के दौरान स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है। ऐसा माना जाता है कि विवाह के बाद नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी अच्छी रचती है, उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करने वाला होता है। मेहंदी त्वचा से जुडी कई बीमारियों में औषधि का काम करती है।
मंगल सूत्र और हार– स्त्रियां गले में हार पहनती है। विवाह के बाद मंगल सूत्र भी अनिवार्य रूप से पहनने की परम्परा है। मंगलसूत्र के काले मोतियों से स्त्री पर बुरी नज़र का बुरा असर नहीं पड़ता हैं।
लाल रंग का कपडे– कन्या विवाह के समय जो ख़ास कपडें पहनती है, वह भी अनिवार्य श्रृंगार है। ये परिधान लाल रंग का होता है और इसमें ओढनी, चोली और घाघरा शामिल होता है।
बाजूबंद– सोने या चांदी के कडें स्त्रियां बाहों में धारण करती हैं, इन्हें बाजूबंद कहा जाता है। ये आभूषण स्त्रियों के शरीर से लगातार स्पर्श होते रहता है, जिससे धातु के गुण शरीर में प्रवेश करते हैं, ये स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।
नथ– स्त्रियों के लिए नथ भी अनिवार्य श्रृंगार है। इसे नाक में धारण किया जाता है। नथ धारण करने पर कन्या की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। नाक छिदवाने से स्त्रियों को एक्यूपंक्चर के लाभ मिलते हैं, जिनसे स्वास्थ्य ठीक रहता हैं।
कानों के कुंडल– कानो में पहने जाने वाले कुंडल भी श्रृंगार का अनिवार्य अंग है। यह भी सोने या चांदी की धातु के हो सकते हैं। कान छिदवाने से भी स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ मिलते है। ये भी एक्यूपंक्चर ही है।
चूड़ियां या कंगन– स्त्रियों के लिए चूड़ियां पहनना अनिवार्य है। विवाह के बाद चूड़ियां सुहाग की निशानी मानी जाती है। सोने या चांदी की चूड़ियां पहनने से ये त्वचा से लगातार संपर्क में रहती हैं, जिससे स्त्रियों को स्वर्ण और चांदी के गुण प्राप्त होते हैं जो कि स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
कमरबंद– कमर में धारण किए जाने वाला आभूषण है कमरबंद। पुराने समय में कमरबंद को विवाह के बाद स्त्रियां अनिवार्य रूप से धारण करती थी।
कमरबंद– कमर में धारण किए जाने वाला आभूषण है कमरबंद। पुराने समय में कमरबंद को विवाह के बाद स्त्रियां अनिवार्य रूप से धारण करती थी।
अंगूठी– उँगलियों में अंगूठी पहनने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसे भी सोलह श्रृंगार में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं।
पायल– पायल स्त्रियों के लिए महत्त्वपूर्ण आभूषण है। इसके घुंघरुओं की आवाज़ से घर का वातावरण सकारात्मक बनता है।
बिछुए – विवाह के बाद खासतौर पर पैरों की उँगलियों में पहने जाने वाला आभूषण है बिछुए। यह रिंग या छल्ले की तरह होता है।
गीता से हमें क्या-क्या सीख मिलती है।
  • मानसिक शांति और सौहार्द हासिल करने के लिए अपनी इच्छाओं को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
  • मौत से डरना बेकार है मौत का अर्थ सिर्फ आत्मा का भौतिक संसार से आध्यात्मिक संसार में जाना है।
  • कर्म अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमेशा परिणाम के बारे में चिंता किए बिना पूरे समर्पण के साथ कार्य करना चाहिए।
  • भगवान हमेशा हमारे साथ और हमारे आसपास होता है भले ही हम कहीं भी हो या कुछ भी कर रहे हो।
  • अन्य प्राणियों की ओर इंसान के मन में बुरी भावनाये इंसान के विनाश का कारण है। इनसे बचा जाना चाहिए।
साभार – गजबहिन्दी
हम लोग सिर्फ आतंकवादी ही नहीं बेवकूफ भी है।’
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतेह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो डालकर बुर्का प्रथा का फिर से मजाक उड़ाया है। ये वीडियो एक शादी का है, इसमें दुल्हन मंच पर बैठी है, और बुरके में कुछ महिलाएं डांस कर रही हैं। महिलाओं के साथ मंच पर बुर्के में एक छोटी बच्ची भी है। महिलाएं फिल्मी गाने पर जोरदार डांस कर रही हैं, इनको डांस करता देखकर दुल्हन जोर जोर से हंस रही है। नीचे कुछ बच्चे इस मजेदार डांस को देख रहे हैं। इस वीडियो के साथ तारेक फतेह ने लिखा है कि मुस्लिम अपनी हरकतों की वजह से दुनिया भर में मजाक के पात्र बन रहे हैं। तारेक फतेह ने अपने ट्विटर अकाउंट में लिखा, ‘मुसलमान दुनिया भर में मजाक का मात्र बनने के लिए क्या नहीं करते हैं, हम लोग सिर्फ आतंकवादी ही नहीं बेवकूफ भी है।’
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हिन्दुओं_की_कोई भी शोभा यात्रा हो या किसी भी और गैर अक़ीदे को मानने वाले गैर मुस्लिम की शोभा यात्रा हो, उसपर पत्थरबाजी होती ही है. लेकिन ऐसा क्यों होता है. इसका विशेष कारण है, बकौल इस्लामिक तालीम से।।।
यह तो आपने सुना ही होगा,
"अऊज़ बिल्लाहि मिन अल शैतान अल रजीम,
अर्थात् "मै अल्लाह की शरण में जाता हूँ, अल शैतान अल रजीम को छोड़ कर". यहाँ समझने वाली बात है "अल शैतान अल रजीम" (उच्चारण:- अश्शैतानिर्रजीमि ).

अल शैतान:- हर वह शक्ति जो अल्लाह के अतिरिक्त है.
अल रजीम:- पत्थर से मारा जाने वाला.
अब राम की शोभा यात्रा शैतान की शोभा यात्रा है जनाब पत्थर तो बरसने जायज है।।।बकौल कुरआन।।।
क़ुरआन पढ़ने से पहले 'अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम' (क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589) और 'बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम' पढ़ना (नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499) इनकी तालीम के अनुसार ये हमे रोज 5 वक्त गाली ही देते है।।। अल शैतान:- हर वह शक्ति जो अल्लाह के अतिरिक्त है.
अनिल आर्य।
बेटा-बहु
बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे। द्वार खुला होने के कारण उनकी आवाजें बाहर कमरे में बैठी
माँ को भी सुनाई दे रहीं थीं।
बेटा-" अपने नौकरी के कारण हम माँ का ध्यान नहीं रख पाएँगे, उनकी देखभाल कौन करेगा ? क्यूँ ना, उन्हें वृद्धाश्रम में दाखिल करा दें, वहाँ उनकी देखभाल भी होगी और हम भी
कभी कभी उनसे मिलते रहेंगे।
बेटे की बात पर बहु ने जो कहा, उसे सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए।
बहु--" पैसे कमाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है जी, लेकिन माँ का
आशीष जितना भी मिले, वो कम है। उनके लिए पैसों से ज्यादा हमारा संग-साथ जरूरी है। मैं अगर नौकरी ना करूँ तो कोई बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा।
मैं माँ के साथ रहूँगी
घर पर ट्यूशन पढ़ाऊँगी,
इससे माँ की देखभाल भी कर
पाऊँगी। याद करो, तुम्हारे बचपन में ही तुम्हारे पिता नहीं रहे और घरेलू काम धाम करके तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ाया
लिखाया, काबिल बनाया।
तब उन्होंने कभी भी पड़ोसन के पास तक नहीं छोड़ा, कारण तुम्हारी देखभाल कोई दूसरा अच्छी तरह नहीं करेगा, और तुम आज ऐंसा बोल रहे हो। तुम कुछ भी कहो, लेकिन माँ हमारे ही पास रहेंगी, हमेशा अंत तक।
बहु की उपरोक्त बातें सुन, माँ रोने लगती है और रोती हुई ही, पूजा घर में पहुँचती है। ईश्वर के सामने खड़े होकर माँ उनका आभार मानती है
और उनसे कहती है--" भगवान, तुमने मुझे बेटी नहीं दी, इस वजह से
कितनी ही बार मैं तुम्हे भला बुरा
कहती रहती थी, लेकिन ऐंसी भाग्यलक्ष्मी देने के लिए तुम्हारा आभार मैं किस तरह मानूँ...?
ऐंसी बहु पाकर, मेरा तो जीवन सफल हो गया, प्रभु।
मित्रो यह कहानी आज के परिवेश में बहुत महत्व रखती है कि आखिर हमारी संस्कृति को हम क्या आयाम दे रहे हैं। कृपया अधिक से अधिक शेयर करके अपने दोस्तों को भी पढ़वाएं।
अपनी बेटियों को जरूर ऐसे संस्कार दे

vyang

एक युवति एक साधू के पास गई और बोली : ''महाराज ! आपने एक प्रवचन में कहा था कि अहंकार ही सबसे बड़ा पाप है, पर जब मैं शीशा देखती हूं तो सोचती हूं कि मैं कितनी सुन्दर हूं तो मुझे बहुत अहंकार हो जाता है, महाराजजी क्या यह पाप है ?
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साधू ने कहा : ''नहीं बेटी, इसे पाप नहीं गलतफहमी कहते हैं।''
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कहते है इंसान का थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा तो होना आवश्यक है वरना वो किसी काम को सही से नहीं कर सकता।ऐसा ही कुछ आज बांग्लादेश के ढाका में हुआ।

ट्रम्प को सबक सिखाने के लिए ISIS ने अपने 4 आतंकवादियों को ढाका एयरपोर्ट भेजा ताकि वो अमेरिका से आने वाले प्लेन को हाइजेक करके ट्रम्प से अपनी बात मनवा सके।इन 4 आतंकवादियों को गफ्फूर रहमान नाम का बंदा लीड कर रहा था। सवेरे 9 बजे जो कि न्यूयॉर्क से ढाका की फ्लाइट का आगमन समय होता है,सभी आतंकी तैयार बैठे थे।लेकिन तकनिकी खामियों के कारण फ्लाइट को लेट हुई और तब ही लाहौर से ढाका की फ्लाइट वहाँ आ गयी।
गफ्फूर रहमान, जो की आतंकियों का लीडर था,अनपढ़ भी था…फ्लाइट कौन सी है..कहाँ से आयी है..ये सब बिना पता किए वो अपने साथियों को लेकर फ्लाइट में चढ़ गया और सभी यात्रियों को बंधक बना लिया।आश्चर्य तो उसे तब हुआ जब फ्लाइट में उसे खुद के भाई व भाभी जान दिखाई पड़ गए।थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ कि उसने अपने ही लोगो को बंधक बना लिया है।वो अपना सर पटकने लगा और सारे पैसेंजर लोटपोट होकर हंसने लगे। 20-25 मिनट की कार्रवाई के बाद सभी आतंकियों को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया गया जहां से वो चारो रात को भाग कर वापस ISIS पहुँच गए।खबर है ISIS प्रमुख ने पहले तो उन्हें जम के फटकार लगाई और कोड़ो से पीटा।भविष्य में ऐसी गलती नहीं करने का वादा करने के बाद उन्हें माफ़ किया गया और अब वो आतंकी गतिविधि के अलावा प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में जाकर पढ़ाई भी कर रहे है ताकि अगली बार सही प्लेन को हाइजेक कर ट्रम्प को सबक सीखा सके।

गंगा में विसर्जित अस्थियां आखिर जाती कहां हैं?

गंगा नदी इतनी पवित्र है की प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए लेकिन यह अस्थियां जाती कहां हैं?इसका उत्तर तो वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल पवित्र एवं पावन है। गंगा सागर तक खोज करने के बाद भी इस प्रश्न का पार नहीं पाया जा सका।सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियां सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं। जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे मरणोपरांत मुक्ति मिलती है। इन बातों से गंगा के प्रति हिन्दूओं की आस्था तो स्वभाविक है।वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा जल में पारा अर्थात (मर्करी) विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जल जन्तुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। वैज्ञानिक दृष्टि से हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण होता है।
इसके साथ-साथ यह दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं।
गुजरात में गौहत्या पर सख्त कानून, होगी उम्रकैद की सजा 
गौहत्या के लिए उम्रकैद की सजा का कानून बनाने वाला गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है। गुजरात सरकार के गौ रक्षा कानून में संशोधन के बाद ये नया कानून बना है।
गुजरात विधानसभा में गौहत्या और बीफ के ट्रांसपोर्ट को लेकर गौ हत्या संशोधन बिल पास हो गया है। जिसके तहत गाय की हत्या करने वालों को अब उम्रकैद की सजा तक होगी। गाय की तस्करी करनेवालों को दस साल की सजा का प्रावधान नए कानून में है। गौहत्या के लिए उम्रकैद की सजा का कानून बनाने वाला गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है। गुजरात सरकार के गौ रक्षा कानून में संशोधन के बाद ये नया कानून बना है।

Thursday, 30 March 2017

चींटी के दिशा ज्ञान से वैज्ञानिक चकराए

अरबों किलोमीटर दूर स्थित सूर्य के हिसाब से चींटियां धरती पर अपना रास्ता खोजती हैं. वे उल्टे कदम चलकर भी आराम से घर पहुंच सकती हैं.विज्ञान को छोटी सी चींटी ने हैरान कर दिया है. चींटी के दिशा ज्ञान को लेकर जब वैज्ञानिकों ने रिसर्च की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं. मसलन, चींटी हमेशा कंपास रूट का सहारा लेती है. आप चीटी को किसी भी दिशा में रख दीजिए वह रास्ता खोज लेगी. सरल भाषा में कहा जाए तो सोचिये कि आप उल्टा चलते हुए या फिर गोल गोल घूमते हुए भी अपने घर पहुंच जाएं. चींटियां ऐसा कर सकती हैं.
एडिनबरा यूनिवर्सिटी और CNRS पेरिस की शोधकर्ता डॉक्टर एंटॉनी विस्ट्रेच कहती हैं, "पूरी कीट प्रजाति में चींटियां दिशा ज्ञान के मामले में अनोखी हैं. बड़ी कॉलोनी बनाकर रहने वाली चीटियों को भोजन को खींचकर उल्टा भी चलना पड़ता है. नेवीगेशन का खास गुण इसमें उनकी मदद करता है."
वैज्ञानिकों के मुताबिक चींटी का सुई की नोक से भी छोटा मस्तिष्क बेहद प्रभावी होता है. वह प्रकाश, माहौल और स्मृति की मदद से हमेशा सही रास्ता खोज लेता है.
यूके और फ्रांस के वैज्ञानिकों ने रेगिस्तान में रहने वाली चींटियों पर शोध के बाद यह दावा किया है. एक्सपेरिमेंट के दौरान दर्पण के जरिये चींटियों को गुमराह करने की कोशिश भी की गई. वैज्ञानिकों ने सूर्य के प्रतिबिम्ब से चींटियों को ठगने की कोशिश की. लेकिन चींटियों ने अपना भोजन जमीन पर रखा, कुछ देर तक हालात का जायजा लिया और सही रास्ते को पहचान लिया.
वैज्ञानिक चींटियों के इस गुण का सहारा लेकर रोबोटों के लिए एल्गोरिदम तैयार करना चाहते हैं. अगर इसमें कामयाबी मिली तो रोबोट भी हर जगह से घर लौट सकेंगे. रिसर्च पेपर करंट बायोलॉजी पत्रिका में छपा है.

चींटियों के बारे में मजेदार तथ्य

ताकतवर जीव

दुनिया भर में चींटियों की 10,000 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. आकार में ये 2 से 7 मिलीमीटर के बीच होती हैं. सबसे बड़ी चींटी कार्पेंटर चींटी कहलाती है. उसका शरीर करीब 2 सेंटीमीटर बड़ा होता है. एक चींटी अपने वजन से 20 गुना ज्यादा भार ढो सकती है.

चींटियों के बारे में मजेदार तथ्य

ताकतवर जीव

दुनिया भर में चींटियों की 10,000 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. आकार में ये 2 से 7 मिलीमीटर के बीच होती हैं. सबसे बड़ी चींटी कार्पेंटर चींटी कहलाती है. उसका शरीर करीब 2 सेंटीमीटर बड़ा होता है. एक चींटी अपने वजन से 20 गुना ज्यादा भार ढो सकती है.

10TH पास मिस्त्री ने मारूति-800 से

 बना दिया हेलिकॉप्टर ..!

किसी भी इंसान के अंदर प्रतिभा की कमी नहीं होती बस उसे पहचानने की देरी होती है। यही हुआ जब सिर्फ 10वीं कक्षा तक पढ़े केरल के एक शिक्षक ने मारुति 800 कार के इंजन से हेलीकॉप्टर बना दिया।ये रोचक कारनामा करने वाले 54 साल के डी सदाशिवन को स्कूल के प्रिंसिपल ने सिर्फ एक मॉडल हेलीकॉप्टर बनाने को कहा था, ताकि बच्चों को सिखाया जा सके। 4 साल की मेहनत के बाद उन्होंने ऐसा हेलीकॉप्टर बना दिया, जो वास्तव में उड़ सकता है। इस हेलीकॉप्टर की टेस्ट फ्लाई एक महीने बाद होगी। महज 10वीं कक्षा तक पढ़े डी सदाशिवन केरल के कंजिरापल्ली एक इंजिनियरिंग की शॉप चलाते हैं।
उन्होंने इस हेलिकॉप्टर को खुद ही बनाया है। उनके मुताबिक, इसे बनाने में चार साल का समय लगा। उन्होंने इसके अंदर मारुति 800 का इंजन लगाया है, साथ ही गियर बॉक्स का भी प्रयोग किया है। बाकी पुर्जे उन्होंने अपने ही गैराज में बनाये हैं। इस हेलिकॉप्टर को एल्युमिनियम और लोहे की मदद से बनाया गया है।

लालकिले को शाहजहाँ ने नहीं 

 हिन्दू राजा ने बनवाया था ...

इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है, जिसे महाराज अनंगपाल द्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर को बसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद 1592 ईस्वी में हुआ है.
दरअसल शाहजहाँ नामक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश की थी ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके. लेकिन सच सामने आ ही जाता है.इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) की ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया.शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले ही 1398 ईस्वी में एक अन्य लंगड़ा जेहादी तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया हुआ है (जो कि शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है).
यहाँ तक कि लाल किले के एक खास महल मे सुअर (वराह) के मुँह वाले चार नल अभी भी लगे हुए हैं क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हिंदुत्व के प्रमाण?
साथ ही किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है क्योंकि राजपूत राजा गजो (हाथियों) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे जबकि इस्लाम जीवित प्राणी के मूर्ति का विरोध करता है.
साथ ही लालकिला के दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से एक कुंड भी बना हुआ है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है.
साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि केसर कुंड एक हिंदू शब्दावली है जो कि हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होती रही है.
मजेदार बात यह है कि मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई अस्तित्व तक नही है लालकिला के दीवानेखास और दीवानेआम मे.
इतना ही नहीं दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है जो अपनी प्रजा मे से 99 % भाग (हिन्दुओं) को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता. जबकि ब्राह्मणों द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसिद्द है.
दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 ईस्वी के अंबर के भीतरी महल (आमेर/पुराना जयपुर) से मिलती है जो कि राजपूताना शैली मे बना हुई है.साथ ही सनलिष्ट और घुमावदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के ही है. सोचने वाली बात है कि क्या शाहजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाए हम हिंदुओं के लिए हिन्दू शैली में मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता?
और फिर शाहजहाँ ने तो क्या एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन तक नही है.
“गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता” – अर्थात इस धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है.
केवल इस अनाम शिलालेख के आधार पर लालकिले को शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया करार दिया गया है.
जबकि किसी अनाम शिलालेख के आधार पर कभी भी किसी को किसी भवन का निर्माणकर्ता नहीं बताया जा सकता और ना ही ऐसे शिलालेख किसी के निर्माणकर्ता होने का सबूत ही देते हैं.
जबकि, लालकिले को एक हिन्दू प्रासाद साबित करने के लिए आज भी हजारों साक्ष्य मौजूद हैं. यहाँ तक कि लालकिले से सम्बंधित बहुत सारे साक्ष्य पृथ्वीराज रासो से मिलते है.
इसके सैकड़ों प्रमाण हैं कि लाल किला वैदिक नीती से बनी इमारत है और इस बात को लेकर कई बार हिन्दू साहित्य के व हिन्दू पक्ष के इतिहासकारों ने बहस भी की लेकिन यहाँ की सरकारों द्वारा सत्य को नकारा गया.

मीट और अण्डे से 

 ज्यादा शक्तिशाली है मूंगफली ...

 मूंगफली को सेहत का खजाना भी कहा जाता है। शायद आपको इस बार यकीन ना आए, लेकिन ये सच है कि मूंगफली मीट और अण्डे की तुलना में काफी शक्तिशाली होती है। आइए जानते हैं कि मूंगफली में ऐसे कौन से गुण हैं जिससे उसने मांस को भी पीछे छोड़ दिया है।
Peanuts-Benefits :-
– वानस्पति प्रोटीन का स्त्रोत है मूंगफली।
– मूंगफली में मांस की तुलना में 2.3 गुना और अण्डे की तुलना 2.5 गुना और फलों की तुलना में 7 गुना अधिक प्रोटीन होता है।
– 100 ग्राम कच्ची मूंगफली खाना, एक लीटर दूध पीने के बराबर होता है।
– मूंगफली खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है और हमारी पाचन क्रिया दुरस्त भी होती है।– 250 ग्राम भुनी हुई मूंगफली खाने से हमारे शरीर को जितने खनिज और विटामिन्स मिलते हैं उतने 250 ग्राम चिकन खाने से भी नहीं मिलते हैं।
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– मूंगफली में न्यट्रीशन्स, मिनिरल्स, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं।
– मूंगफली हमारे खराब कोलेस्ट्राल को अच्छे कोलेस्ट्राल में बदलती है।
– मूंगफली में जितना प्रोटीन और एनर्जी होती है उतनी अण्डे में भी नहीं होती है।
– मूंगफली में पाया जाने वाला प्रोटीन दूध से मिलता है और चिकनाई घी से मिलती है।
– अकेली मूंगफली दूध, घी और बादाम की कमी को पूरा कर देती है।
– इसे गरीब का बादाम कहा जाता है। मूंगफली खाने से शरीर गर्म रहता है और फेफड़ों को बल मिलता है।
– खाने के बाद इसका सेवन करने से पाचन तंत्र अच्छा होता है और मोटापा कमजोर इंसान हेल्दी होता है।
– श्वास के मरीजों के लिए भी मूंगफली खाना फायदेमंद होता है।
– मूंगफली गर्म होती है इसलिए जिन लोगों को गर्म चीज खाने से परेशानी होती है वो इसका कम सेवन करें।

यहां बैलों को दी जा रही है पेंशन...

लखनऊ। राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान करनाल के वैज्ञानिकों की टीम एक ऐसी परियोजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें अब गायें सिर्फ बछिया यानि मादा को ही जन्म देंगी। 55 करोड़ की इस परियोजना पर तेजी से काम हो रहा है। इस परियोजना को सेक्स सीमेन टेक्नोलॉजी का नाम दिया गया है। इसका मकसद है गायों की संख्या बढ़ाना, जिससे दुग्ध उत्पादन बढ़ सके। लेकिन इस परियोजना को लेकर लोगों का विरोध भी है। चिंता इस बात पर जताई जा रही है कि बैलों की संख्या इससे बहुत कम हो जाएगी और जो कृषि और परिस्थिति तंत्र के लिए भी ठीक नहीं होगा। ऐसे में बैलों की संख्या को बढ़ाने के लिए झारखंड की राजधानी रांची के नजदीक कस्बा पतरातू में बैलों को बचाने के लिए अनूठा प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें बैलों को पेंशन दी जा रही है।

तब कम होने लगी बैलों की संख्या

इस योजना को पहली बार सुनकर लोग अचरज में पड़ जाते हैं, मगर इस क्षेत्र में इस योजना ने बैलों की संख्या बढ़ाने के साथ ही कृषि कार्य के लिए उनको उपयोगी बनाने में एक क्रांति कर दी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े सिद्धनाथ सिंह रामगढ़ जिले के पतरातू में इस योजना को संचालित कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर कुछ दिनों तक एक स्टील कंपनी में काम करने वाले सिद्धनाथ सिंह ने बताया कि साल 1973 में मैंने पतरातू में अपना काम शुरू किया। इसमें मैंने देखा कि यहां के गावों में गाय से बछड़ा पैदा होने के बाद लोग इसका ठीक से पालन पोषण नहीं करते हैं। लोग उसे अनुपयोगी मानकर छोड़ देते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र से बैलों की संख्या कम हो गई और जिसका असर खेती पर भी पड़ा। क्योंकि झारखंड के अधिकतर क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर ट्रैक्टर या दूसरी मशीनों से खेती नहीं हो सकती।

और शुरू की बुल पेंशन स्कीम

ऐसे में सिद्धनाथ सिंह ने बुल पेंशन स्कीम शुरू की। जिसमें उनके गौशाला में जब कोई गाय बछड़ा देती है तो उसे गांव वालों को दिया जाता। जिस किसान को बछड़ा दिया जाता है, उससे 8,000 रूपए सिक्योरिटी का लिया जाता है और साथ ही उसके साथ एक एमओयू भी साइन कराया जाता है कि वह बछड़े को बेच नहीं सकता। 12 साल का जब बैल हो जाता है तो किसान को ब्याज के साथ पैसा वापस दिया जाता है। जिससे बैल की अच्छे से देखभाल हो जाती है। साथ ही बैलों को कृषि के लिए कैसे उपयोगी बनाया जाए, इसके लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है। इस योजना का यहां के आसपास के किसान काफी लाभ ले रहे हैं।

क्या कहते हैं गाँव के किसान

पतरातू का हफुआ गांव की ज्यादातर आबादी मुसलिम है। इस गांव के किसान मोहम्मद कु्ददुस अंसारी ने बताया कि हमारे गांव में बैलों की संख्या बिल्कुल कम हो गई थी। ऐसे में मुझे बैल पेंशन योजना के बारे में पता चला और मैंने सिद्धनाथ सिंह से संपर्क किया। वहां मैंने दो बैल पेंशन योजना के तहत ले लिया। कुछ साल में एक तरफ जहां हमारा पैसा दोगुना हो जाएगा, वहीं इस पैसे से हम अपने बैल की अच्छे से देखभाल भी कर पाएंगे।

मध्य प्रदेश, गुजरात और कनार्टक में भी चल रही ऐसी योजना

जबसे परंपरागत खेती की जगह नई खेती ने ली है, उसके बाद से किसान, खेत और बैल का रिश्ता टूट गया है। पहले खेतों की जुताई, रहट से सिंचाई, खेत-खलिहान से फसलों और अनाज की ढुलाई में बैलगाड़ियों में बैल की ही जरुरत पड़ती रही। लेकिन जब से ट्रैक्टर का उपयोग बढ़ा, बैल बिना काम के हो गए। मगर डीजल के बढ़ते दाम, ग्लोबल वार्मिंग और जैविक खेती के साथ ही पारंपरिक खेती के बढ़ते प्रचलन ने एक बार फिर से बैलों की जरुरत महसूस की जा रही है। ऐसे में बैलों को बचाने और कृषि कार्य के लिए उन्हें उपयोगी बनाने के लिए मध्यपद्रेश के मोहाड़, कनार्टक के इडाकाडू और गुजरात के कथाड़ा में बैलों को बचाने की ऐसी ही योजना चल रही है। जहां पर बैलों को पेंशन देने के साथ ही बैल किसान के लिए कैसे अधिक से अधिक उपयोगी बन सके, इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है।

बिना खर्च का है बैल पालन

रासायनिक खादों का कृषि पर अब दिख रहा दुष्प्रभाव कृषि वैज्ञानिकों के साथ ही देश की राज्य और प्रदेश की सरकारों को चिंता में डाल दिया है। ऐसे में अब परंपरागत खेती को लेकर जागरूकता पैदा की जा रही है। जिसमें किसानों को बताया जा रहा है कि कैसे बैले उनके लिए उपयोगी है। उनके पालन-पोषण में अलग से खर्च की जररुत नहीं पड़ती है। खेतों में पैदा होनी वाली फसलों ठंडल, भूसा, पुआल, और खेतों की घासों से बैल का चारा बन जाता है, जो उनका पेट भरने के लिए काफी है। खेतों में पैदा होने वाली हरी सब्जियों को ऐसा भाग जिसे किसान फेंक देते हैं उसको भी इनको खिलाया जा सकता है। बैल पालन से देसी खाद भी अच्छी मात्रा में बन जाती है। जिससे खेतों में रासायिनक खादों की जरुरत नहीं पड़ती है। ऐसे में खेत, किसान और बैल का रिश्ता बना रहता है।
पशु शक्ति के बारे में वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि यह सबसे सस्ता और व्यवहारिक स्रोत है। मशीनीकरण से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सबको चिंता में डाल दिया है। ऐसे में बैलों से खेती करने को बढ़ावा दिया जा रहा है।
सिद्धनाथ सिंह, कृषि एवं पशुपालन मामलों के जानकार।

Wednesday, 29 March 2017

Bihar : 90 हजार किसानों ने छोड़ी यूरिया

 दही को बनाया विकल्प ...

-फसल उत्पादन में 30 फीसदी तक किसानों ने की बढ़ोतरी
-40 दिनों तक फसलों को मिलता है नाइट्रोजन व फास्फोरस
-देशी गाय के दूध से तैयार दहीवाले मिश्रण से होते हैं अधिक फायदे
-जिले के साथ दिल्ली व पंजाब के कृषि फार्म में हुए फायदे
-सकरा के किसान दिनेश ने थाइलैंड में ली थी ट्रेनिंग

मुजफ्फरपुर.
 रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक से होनेवाले नुकसान के प्रति किसान सजग हो रहे हैं. जैविक तकनीक की बदौलत उत्तर बिहार के करीब 90 हजार किसानों ने यूरिया से तोबा कर ली है. इसके बदले दही का प्रयोग कर किसानों ने अनाज, फल, सब्जी के उत्पादन में 25 से 30 फीसदी बढ़ोतरी भी की है. 25 किलो यूरिया का मुकाबला दो किलो दही ही कर रहा है. यूरिया की तुलना में दही मिश्रण का छिड़काव ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है. किसानों की माने, तो यूरिया से फसल में करीब 25 दिन तक व दही के प्रयोग से फसलों में 40 दिनों तक हरियाली रहती है.

सकरा के मछही की किरण कुमारी, चांदनी देवी, नूतन देवी, पवन देवी, धर्मशीला देवी बताती हैं कि इस प्रयोग से सब्जी, फल व अनाज की मात्रा व गुणवत्ता में सुधार हुआ है. केशोपुर के अरविंद प्रसाद, ओम प्रकाश, राजा राम सिंह, रमेश सिंह, रघुनाथ राम, वीरचंद्र पासवान आदि बताते हैं कि आम, लीची, गेहूं, धान व गन्ना में प्रयोग सफल हुआ है. फसल को पर्याप्त मात्रा में लंबे समय तक नाइट्रोजन व फॉस्फोरस की आपूर्ति होती रहती है. केरमा के किसान संतोष कुमार बताते हैं कि वे करीब दो वर्षों से इसका प्रयोग कर रहे हैं. काफी फायदेमंद साबित हुआ है.

लीची व आम का होता है अधिक उत्पादन
 इस मिश्रण का प्रयोग आम व लीची में मंजर आने से करीब 15-20 दिनों पूर्व इसका प्रयोग करें. एक लीटर पानी में 30 मिलीलीटर दही के मिश्रण डाल कर घोल तैयार बना लें. इससे पौधों की पत्तियों को भीगों दें. 15 दिन बाद दोबारा यही प्रयोग करना है. इससे लीची व आम के पेड़ों को फॉस्फोरस व नाइट्रोजन की सही मात्रा मिलती है. मंजर को तेजी से बाहर निकलने में मदद मिलती है. सभी फल समान आकार के होते हैं. फलों का झड़ना भी इस प्रयोग से कम हो जाता है
एेसे तैयार होता दही का मिश्रण 
देशी गाय के दो लीटर दूध का मिट्टी के बरतन में दही तैयार करें. तैयार दही में पीतल या तांबे का चम्मच, कलछी या कटोरा डुबो कर रख दें. इसे ढंक कर आठ से 10 दिनों तक छोड़ देना है. इसमें हरे रंग की तूतिया निकलेगी. फिर बरतन को बाहर निकाल अच्छी तरह धो लें. बरतन धोने के दौरान निकले पानी को दही में मिला मिश्रण तैयार कर लें. दो किलो दही में तीन लीटर पानी मिला कर पांच लीटर मिश्रण बनेगा. इस दौरान इसमें से मक्खन के रूप में कीट नियंत्रक पदार्थ निकलेगा. इसे बाहर निकाल कर इसमें वर्मी कंपोस्ट मिला कर पेड़-पौधों की जड़ों में डाल दें. ध्यान रहे इसके संपर्क में कोई बच्चा न जाये. इसके प्रयोग से पेड़-पौधों से तना बेधक  (गराड़)और दीमक समाप्त हो जायेंगे. पौधा निरोग बनेगा. जरूरत के अनुसार से दही के पांच किलो मिश्रण में पानी मिला कर एक एकड़ फसल में छिड़काव होगा. इसके प्रयोग से फसलों में हरियाली के साथ-साथ लाही नियंत्रण होता है. फसलों को भरपूर मात्रा में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस मिलता होता है. इससे पौधे अंतिम समय तक स्वस्थ रहते हैं.

आइसीएआर में भी प्रयोग सफल
इसका प्रयोग मुजफ्फरपुर के सकरा, मुरौल, कुढ़नी, मीनापुर, पारू, सरैया व बंदरा में काफी तेजी से बढ़ रहा है. वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय व दरभंगा के दक्षिणी इलाके में काफी संख्या में किसानों ने इसे अपनाया है. यहां के किसानों ने दिल्ली के बुरारी रोड, नत्थूपूरम, इब्राहीमपुर, उत्तमनगर, नागलोई, गुड़गांव, नजफगढ़, रोहिनी समेत कृषि फार्म में इसके प्रयोग से उत्पादन में सुधार हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नयी दिल्ली में भी इसके सफल प्रयोग से जैविक अनाज, फल व सब्जी का उत्पादन हुआ है. यहां के दिनेश कुमार को दिल्ली स्थित आइसीएआर में दो केंद्रीय मंत्रियों ने इसके लिए सम्मानित किया.

बोले किसान
सकरा के इनोवेटिव किसान सम्मान विजेता दिनेश कुमार ने बताया, मक्का, गन्ना, केला, सब्जी, आम-लीची सहित सभी फसलों में यह प्रयोग सफल हुआ है. आत्मा हितकारिणी समूह के  90 हजार किसान यह प्रयोग कर रहे हैं. इसके बाद  मुजफ्फरपुर, वैशाली के साथ-साथ दिल्ली की धरती पर इसे उतारा है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मार्च 2017 में इनोवेटिव किसान सम्मान से सम्मानित किया.
 

मुजफ्फरपुर के किसान भूषण सम्मान प्राप्त सतीश कुमार द्विवेदी कहते हैं, जिन खेतों में कार्बनिक तत्व मौजूद होते हैं, उनमें इस प्रयोग से फसलों का उत्पाद 30 फीसदी अधिक होता है. इस मिश्रण में मेथी का पेस्ट या नीम का तेल मिला कर छिड़काव करने से फसलों पर फंगस नहीं लगता है. इसके प्रयोग से नाइट्रोजन की आपूर्ति, शत्रु कीट से फसलों की सुरक्षा व मित्र कीटों की रक्षा एक साथ होती है. 

अफ़ग़ानों को पंजाब कि धरती से धुल चटाने वाला हिन्दू योधा – महान सिंह बाली

 महान सिंह बाली रणजीत सिंह की सेना के दूसरा प्रमुख सेनापति थे। हरी सिंह नलुआ के बाद उन्हें आधुनिक पंजाब का सबसे सफल जरनैल माना जाता है। इनके पिता का नाम दाता राम था जो की गुजरात के सुलतान की कचहरी में काम करते थे। महान सिंह बाली ने अपने कार्यकाल में पेशावर, नौशेरा ,हरिपुर को जीता और रणजीत सिंह सनसिवाल के साम्राज्य में मिलवाया। इसीलिये रणजीत सिंह ने उन्हें राजा की उपाधि दी।उनकी बहादुरी के चलते लोग उन्हें “मनशेरा” कह कर पुकारते थे। हरि सिंह नलुवा की मौत के बाद महान सिंह बाली को हरी सिंह की बीवी ने गोद लिया और उनकी शादी एक मोहन ब्राह्मण (मोहयाल) परिवार में हिन्दू रीती रिवाज से की। उस समय रणजीत सिंह की सेना में सबसे अधिक संख्या में मोहयाल ब्राह्मण थे । उसके कई बड़े सिपहसलार ब्राह्मण ही थे। महान सिंह बाली की रणजीत सिंह से मुलाकात उस समय हुई जब वो काम की तलाश मे पंजाब में थे। महान सिंह बाली युद्ब कला में निपुण थे। इतिहासकार कहते हैं कि एक बार रणजीत सिंह ने महान सिंह बाली को अकेले अपनी तलवार से चीते को मारते देखा। वो उनकी बहादुरी का कायल हो गया और इन्हें अपनी सेना में रख लिया। महान सिंह बाली ने पेशावर के अलावा कश्मीर की लड़ाइयों में बड़ा योगदान दिया।मुल्तान के युद्ध के वो बुरी तरह जख्मी हुए पर लड़ते रहे और विजयी हुए। जब अप्रैल 1837 में अफ़ग़ानों ने जमरूद किले पर धावा बोल दिया तब उस युद्ध में हरी सिंह नलवा मारा गया। यह जानकारी मिलने के बाद महान सिंह बाली ने खुद मोर्चा संभाला और हरी सिंह नलवा की मौत की खबर सेना को नहीं लगने दी । उन्होंने बहुत कुशल से सेना का नेतृत्व किया और लाहौर (पंजाब की राजधानी) से फौजी मदद आने तक अपनी छोटी से सेना लेकर किले की रक्षा की और अंततः विजय पाई। रणजीत सिंह ने उन्हें अपना प्रमुख सेनापति बना दिया। सन 1844 में सेना में विद्रोह के समय उनके अपने ही सैनिकों ने उनकी हत्या कर दी। उम्मीद करता हूँ की टीवी पर जो महाराजा रणजीत सिंह पर serial शुरू हुआ है उसमें उस समय की फ़ौज में ब्राह्मणों का योगदान और महान सिंह बाली का चरित्र सही से पेश किया जायेगा।
हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं के कारण हिन्दू धर्म में कई ऐसी अंतरविरोधी और विरोधाभाषी विचारधाराओं का समावेश हो चला है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा की देन है। लेकिन उन सभी विचारधाराओं का सम्मान करना भी जरूरी है, क्योंकि धर्म का किसी तरह की विचारधारा से संबंध नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ ‘ब्रह्म ज्ञान’ से संबंध है। ब्रह्म ज्ञान अनुसार प्राणीमात्र सत्य है। सत्य का अर्थ ‘यह भी’ और ‘वह भी’ दोनों ही सत्य है। सत् और तत् मिलकर बना है सत्य।यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि जो व्यक्ति जिस भी धर्म में जन्मा है, वह उसी धर्म को सबसे प्राचीन और महान मानेगा। सत्य को जानने का प्रयास कम ही लोग करते हैं। हजारों वर्ष की लंबी परंपरा के कारण हिन्दू धर्म में कई तरह के भ्रम फैल गए हैं। इन भ्रमों के चलते सनातन हिन्दू धर्म पर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। ऐसे ही भ्रमों में एक भ्रम पशु बलि प्रथा है। हम आपको बताएंगे कि पशु बलि प्रथा भ्रम क्या हैं और आखिर उनमें कितनी सच्चाई है।

क्या हिन्दू धर्म में पशु बलि प्रथा है?
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि का प्रयोग किया जाता है। बलि प्रथा के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि दिए जाने का प्रचलन है। सवाल यह उठता है कि क्या बलि प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा है?

”मा नो गोषु मा नो अश्वेसु रीरिष:।”- ऋग्वेद 1/114/8

अर्थ : हमारी गायों और घोड़ों को मत मार।

विद्वान मानते हैं कि हिन्दू धर्म में लोक परंपरा की धाराएं भी जुड़ती गईं और उन्हें हिन्दू धर्म का हिस्सा माना जाने लगा। जैसे वट वर्ष से असंख्य लताएं लिपटकर अपना ‍अस्तित्व बना लेती हैं लेकिन वे लताएं वक्ष नहीं होतीं उसी तरह वैदिक आर्य धर्म की छत्रछाया में अन्य परंपराओं ने भी जड़ फैला ली। इन्हें कभी रोकने की कोशिश नहीं की गई।बलि प्रथा का प्रचलन हिंदुओं के शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदाय में ही देखने को मिलता है लेकिन इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है। बहुत से समाजों में लड़के के जन्म होने या उसकी मान उतारने के नाम पर बलि दी जाती है तो कुछ समाज में विवाह आदि समारोह में बलि दी जाती है जो कि अनुचित मानी गई है। वेदों में किसी भी प्रकार की बलि प्रथा कि इजाजत नहीं दी गई है।

”इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्।
त्वष्टु: प्रजानां प्रथमं जानिन्नमग्ने मा हिश्सी परमे व्योम।।”

अर्थ : ”उन जैसे बालों वाले बकरी, ऊंट आदि चौपायों और पक्षियों आदि दो पगों वालों को मत मार।।” -यजु. 13/50  ..पशुबलि की यह प्रथा कब और कैसे प्रारंभ हुई, कहना कठिन है। कुछ लोग तर्क देते हैं कि वैदिक काल में यज्ञ में पशुओं की बलि दी जाती है। ऐसा तर्क देने वाले लोग वैदिक शब्दों का गलत अर्थ निकालने वाले हैं। वेदों में पांच प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। पशु बलि प्रथा के संबंध में पंडित श्रीराम शर्मा की शोधपरक किताब ‘पशुबलि : हिन्दू धर्म और मानव सभ्यता पर एक कलंक’ पढ़ना चाहिए।
” न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। मन्त्रश्रुत्यं चरामसि।।’- सामवेद-2/7

अर्थ : ”देवों! हम हिंसा नहीं करते और न ही ऐसा अनुष्ठान करते हैं, वेद मंत्र के आदेशानुसार आचरण करते हैं।”वेदों में ऐसे सैकड़ों मंत्र और ऋचाएं हैं जिससे यह सिद्ध किया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में बलि प्रथा निषेध है और यह प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं है। जो बलि प्रथा का समर्थन करता है वह धर्मविरुद्ध दानवी आचरण करता है। ऐसे व्यक्ति के लिए सजा का प्रावधान है। मृत्यु के बाद उसे ही जवाब देना के लिए हाजिर होना होगा।

Tuesday, 28 March 2017

ऐसा राजा जिसे इतिहास ने भूला दिया, 
बनाया था भारत को सोने की चिड़िया।।
संम्राट विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत चल रहा है और २०७३ पूर्ण होकर २८ मार्च २०१७ से २०७४ विक्रम संवत का वर्ष शुरू हो रहा है 

*बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमदित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था*

उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य… बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।

*आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमदित्य के कारण अस्तित्व में है*
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे। रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे,
महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया। विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या
हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे, उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया ,

*वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है*

महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है। विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे ,आप गूगल इमेज कर विक्रमदित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।

*हिन्दू कैलंडर भी विक्रमदित्य का स्थापित किया हुआ है*

आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार ,तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे , विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था।

विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी
पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है,

कृपया आप शेयर तो करें ताकि देश जान सके कि सोने की चिड़िया वाला देश का राजा कौन था ?

Monday, 27 March 2017

रामायणकाल और महाभारत काल में विमान होते थे...
 पुष्पक विमान के बारे में भी हम सबने पढ़ा है।…लेकिन हाल ही में एक सनसनीखेज जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक अफगानिस्तान में एक 5000 साल पुराना विमान मिला है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह महाभारतवायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने एक विमान को हाल ही में अफ‍गानिस्तान की एक गुफा में पाया गया है। कहा जाता है कि यह विमान एक ‘टाइम वेल’ में फंसा हुआ है अथवा इसके कारण सुरक्षित बना हुआ है। यहां इस बात का उल्लेख करना समुचित होगा कि ‘टाइम वेल’ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्‍स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है।
कहा जा रहा है कि यह विमान महाभारत काल का है और इसके आकार-प्रकार का विवरण महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में‍ किया गया है। इस कारण से इसे गुफा से निकालने की कोशिश करने वाले कई सील कमांडो गायब हो गए हैं या फिर मारे गए हैं।
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज (एसवीआर) का कहना है कि यह महाभारत कालीन विमान है और जब इसका इंजन शुरू होता है तो इससे बहुत सारा प्रकाश ‍निकलता है। इस एजेंसी ने 21 दिसंबर 2010 को इस आशय की रिपोर्ट अपनी सरकार को पेश की थी।कालीन हो सकता है।
घातक हथियार भी लगे हैं इस विमान में…
रूसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस विमान में चार मजबूत पहिए लगे हुए हैं और यह प्रज्जवलन हथियारों से सुसज्जित है। इसके द्वारा अन्य घातक हथियारों का भी इस्तेमाल किया जाता है और जब इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित कर प्रक्षेपित किया जाता है तो ये अपनी शक्ति के साथ लक्ष्य को भस्म कर देते हैं।ऐसा माना जा रहा है कि यह प्रागेतिहासिक मिसाइलों से संबंधित विवरण है। अमेरिकी सेना के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जब सेना के कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तभी इसका टाइम वेल सक्रिय हो गया और इसके सक्रिय होते ही आठ सील कमांडो गायब हैं।
न सिपाही बचे और न ही कुत्ते…
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टाइम वेल सर्पिलाकार में आकाशगंगा की तरह होता है और इसके सम्पर्क में आते ही सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व इस तरह समाप्त हो जाता है मानो कि वे मौके पर मौजूद ही नहीं रहे हों।
एसवीआर रिपोर्ट का कहना है कि यह क्षेत्र 5 अगस्त को पुन: एक बार सक्रिय हो गया था और इसके परिणामस्वरूप 40 सिपाही और प्रशिक्षित जर्मन शेफर्ड डॉग्स इसकी चपेट में आ गए थे। संस्कृत भाषा में विमान केवल उड़ने वाला वाहन ही नहीं होता है वरन इसके कई अर्थ हो सकते हैं, यह किसी मंदिर या महल के आकार में भी हो सकता है।
 
चीन को भी तलाश है भारत के प्राचीन ज्ञान की…
 
ऐसा भी दावा किया जाता है कि कुछेक वर्ष पहले ही चीनियों ने ल्हासा, ति‍ब्बत में संस्कृत में लिखे कुछ दस्तावेजों का पता लगाया था और बाद में इन्हें ट्रांसलेशन के लिए चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में भेजा गया था।
यूनिवर्सिटी की डॉ. रूथ रैना ने हाल ही इस बारे में जानकारी दी थी कि ये दस्तावेज ऐसे निर्देश थे जो कि अंतरातारकीय अंतरिक्ष विमानों (इंटरस्टेलर स्पेसशिप्स) को बनाने से संबंधित थे।
हालांकि इन बातों में कुछ बातें अतरंजित भी हो सकती हैं कि अगर यह वास्तविकता के धरातल पर सही ठहरती हैं तो प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान और तकनीक के बारे में ऐसी जानकारी सामने आ सकती है जो कि आज के जमाने में कल्पनातीत भी हो सकती है। 
साभार – विभिन्न हिन्दी स्रोत
महायोगी गुरु गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष योगी थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने ही नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। महान चमत्कारिक और रहस्यमयी गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इनके नाम पर ही गोरखपुर शहर का नाम पड़ा और गोरखा जाती भी इन्ही के नाम पर विकसित हुई। गोरखपुर में ही गुरु गोरखनाथ समाधि स्थल है। यहां दुनियाभर के नाथ संप्रदाय और गुरु गोरखनाथ जी के भक्त उनकी समाधि पर माथा टेकने आते हैं। वर्तमान समय में इस समाधि मंदिर के महंत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी है।
क्या शिव जी के अवतार थे गुरु गोरखनाथ?
गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गुरु गोरखनाथ समाधि में इतने लीन हो गए की इनको गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चैरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है। इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
देवीपाटन शक्तिपीठ में की थी गुरु गोरखनाथ ने तपस्या-
गुरु गोरखनाथ जी ने नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपातन में घोर तपस्या की थी। उसी स्थल पर पाटेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई। भारत के गोरखपुर में गोरखनाथ का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को यवनों और मुगलों ने कई बार ध्वस्त किया लेकिन इसका हर बार पु‍नर्निर्माण कराया गया। 9वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार किया गया था लेकिन इसे 13वीं सदी में फिर मुस्लिम आक्रांताओं ने ढहा दिया था। बाद में फिर इस मंदिर को पुन: स्थापित कर साधुओं का एक सैन्यबल बनाकर इसकी रक्षा करने का कार्य किया गया।
इस मंदिर के उपपीठ बांग्लादेश और नेपाल में भी स्थित है। संपूर्ण भारतभर के नाथ संप्रदाय के साधुओं के प्रमुख महंत हैं योगी आदित्यनाथ। कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता है कि योगी आदित्यनाथ के पीछे कितना भारी जन समर्थन है। सभी दसनामी और नाथ संप्रदाय के लोगों के लिए गोरखनाथ का यह मंदिर बहुत महत्व रखता है।
गुरु गोरखनाथ का जन्म-
गुरु गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। गुरु गोरखनाथ के जन्म के विषय में प्रचलित है कि एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ किसी गांव में गए। किसी एक घर में भिक्षा के लिए आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद स्वरूप पुत्र की याचना की। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध पुरुष तो थे ही।
अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उन्होंने एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि इसका सेवन करने के बाद यथासमय वे माता बनेंगी। उनके गर्भ से एक महा तेजस्वी पुत्र का जन्म होगा जिसकी ख्याति चारों और फैलेगी।
गृह स्वामिनी को आशीर्वाद देने के उपरांत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने भ्रमण क्रम में आगे बढ़ गए। बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उसी ग्राम में पुनः आए। कुछ भी नहीं बदला था। गांव वैसा ही था। गुरु का भिक्षाटन का क्रम अब अब भी जारी था। जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था, उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया। उन्होंने घर में आवाज लगाई। वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिए प्रस्तुत हुई। गुरु ने बालक के विषय में पूछा।
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के पूछने पर पहले तो गृहस्वामिनी कुछ देर चुप रही, लेकिन उसने पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा उपाय न था। उसने थोड़े संकोच के साथ सब कुछ सच सच बतला दिया। उसने कहा कि आप से भभूत लेने के बाद पास-पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिए उसकी खूब खिल्ली उड़ाई। उनकी बातों में आकर मैंने वह भभूत को पास के गोबर से भरे गड्डे में फेंक दिया था।
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यानबल से देखा और वे तुरंत ही गोबर के गड्डे के पास गए और उन्होंने बालक को पुकारा। उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गए। यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जानिए क्या है नाथ सम्प्रदाय का रहस्य?
नाथ संप्रदाय के कुछ संतो का मानना है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले उनका संप्रदाय अस्तित्व में था। इस मान्यता के अनुसार संसार की उत्पत्ति होते समय जब विष्णु कमल से प्रकट हुए थे, तब गोरक्षनाथ जी पटल में थे। भगवान विष्णु जम के विनाश से भयभीत हुए और पटल पर गये और गोरक्षनाथ जी से सहायता मांगी।
गुरु गोरक्षनाथ जी ने कृपा की और अपनी धूनी में से मुट्ठी भर भभूत देते हुए कहा कि जल के ऊपर इस भभूति का छिड़काव करें, इससे वह संसार की रचना करने में समर्थ होंगे। गोरक्षनाथ जी ने जैसा कहा, वैस ही हुआ और इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश गुरु गोरखनाथ जी के प्रथम शिष्य बने।
गोरक्षनाथ के करीबी माने जाने वाले मत्स्येंद्रनाथ में मनुष्यों की दिलचस्पी ज्यादा रही हैं। उन्हें नेपाल के शासकों का अधिष्ठाता कुल गुरू माना जाता हैं। उन्हें बौद्ध संत (भिक्षु) भी माना गया है, जिन्होनें आर्यावलिकिटेश्वर के नाम से पदमपाणि का अवतार लिया। उनके कुछ लीला स्थल नेपाल राज्य से बाहर के भी है और कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के निर्देश पर वो नेपाल आये थे।
ऐसा माना जाता है कि आर्यावलिकटेश्वर पद्मपाणि बोधिसत्व ने शिव को योग की शिक्षा दी थी। उनकी आज्ञानुसार घर वापस लौटते समय समुद्र के तट पर शिव पार्वती को इसका ज्ञान दिया था। शिव के कथन के बीच पार्वती को नींद आ गयी, परन्तु मछली (मत्स्य) रूप धारण किये हुये लोकेश्वर ने इसे सुना। बाद में वहीं मत्स्येंद्रनाथ के नाम से जाने गये।
एक अन्य मान्यता के अनुसार श्री गोरक्षनाथ के द्वारा आरोपित बारह वर्ष से चले आ रहे सूखे से नेपाल की रक्षा करने के लिये मत्स्येंद्रनाथ को असम के कपोतल पर्वत से बुलाया गया था।
नाथ सम्प्रदाय के गुरु मत्स्येंद्रनाथ को हिंदू परंपरा का अंग माना गया है। सतयुग में उधोधर नामक एक परम सात्विक राजा थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका दाह संस्कार किया गया परंतु उनकी नाभि अक्षत रही। उनके शरीर के उस अनजले अंग को नदी में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे एक मछली ने अपना आहार बना लिया। तदोपरांत उसी मछ्ली के उदर से मत्स्येंद्रनाथ का जन्म हुआ। अपने पूर्व जन्म के पुण्य के फल के अनुसार वो इस जन्म में एक महान संत बने।
एक और मान्यता के अनुसार एक बार मत्स्येंद्रनाथ लंका गये और वहां की महारानी के प्रति आसक्त हो गये। जब गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु के इस अधोपतन के बारे में सुना तो वह उनकी तलाश मे लंका पहुँचे। उन्होंने मत्स्येंद्रनाथ को राज दरबार में पाया और उनसे जवाब मांगा । मत्स्येंद्रनाथ ने रानी को त्याग दिया,परंतु रानी से उत्पन्न अपने दोनों पुत्रों को साथ ले लिया। वही पुत्र आगे चलकर पारसनाथ और नीमनाथ के नाम से जाने गये, जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की।
जानिए कौन थे गुरु मत्स्येन्द्रनाथ?
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ का नाम नाथ संप्रदाय में आदिनाथ और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम है, जो मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से भी लोकप्रिय हुए। कौल ज्ञान निर्णय के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ ही कौलमार्ग के प्रथम प्रवर्तक थे। कुल का अर्थ है शक्ति और अकुल का अर्थ शिव। मत्स्येन्द्र के गुरु दत्तात्रेय थे।
मत्स्येन्द्रनाथ हठयोग के परम गुरु माने गए हैं जिन्हें मच्छरनाथ भी कहते हैं। इनकी समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि मछिंद्रनाथ की समाधि मछीन्द्रगढ़ में है, जो महाराष्ट्र के जिला सावरगाव के ग्राम मायंबा गांव के निकट है। इतिहासकार गुरु मत्स्येन्द्र नाथ का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी मानते हैं।
सुप्रसिद्ध कश्मीरी आचार्य अभिनव गुप्त ने अपने तंत्रालोक में मच्छंद विभु को नमस्कार किया है। ये ‘मच्छंद विभु’ मत्स्येंद्रनाथ ही हैं, यह भी निश्चचित है। अभिनव गुप्त का समय निश्चित रूप से ज्ञात है। उन्होंने ईश्वर प्रत्याभिज्ञा की बृहती वृत्ति सन् 1015 ई० में लिखी थी और क्रम स्त्रोत की रचना सन् 991 ई० में की थी। इस प्रकार अभिनव गुप्त सन् ईसवी की दसवीं शताब्दी के अंत में और ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में वर्तमान थे। मत्स्येंद्रनाथ इससे पूर्व ही आविभूर्त हुए होंगे। जिस आदर और गौरव के साथ आचार्य अभिनव गुप्तपाद ने उनका स्मरण किया है उससे अनुमान किया जा सकता है कि उनके पर्याप्त पूर्ववर्ती होंगे।


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