"प्रत्येक दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने वर्त्तमान में जीवन की सरलता, सुविधा व् एक बेहतर भविष्य की सुनिश्चितता के लिए ही प्रयासरत रहता है, पर फिर भी, राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रयास मनवांछित परिणाम प्राप्त करने में असफल रहे हैं ; आखिर एक राष्ट्र के रूप में हम अब तब विकसित व् संपन्न क्यों नहीं हो सके, कभी सोचा है क्यों ?
ऐसा इसलिए क्योंकि प्रयास की सततता होते हुए भी चूँकि प्रयास न ही समन्वित, सुनियोजित व् संगठित है बल्कि एक लक्ष्य पर केंद्रित भी नहीं, सभी अपने अपने विवेक के स्तर के अनुपात में अपने परिवार की परिधि और प्रयास की व्यापकता पहले ही जो निर्धारित कर लेते हैं ; न ही समाज में स्व की समझ स्पष्ट है और न ही राष्ट्र की समझ परिपक्व , तभी, आज व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्र हित पर हावी है।
राष्ट्र की समृद्धि, सम्पन्नता और सुरक्षा का अर्थ सारे समाज की प्रगति और लाभ होगा पर जब प्रयास स्वार्थ, लोभ और लाभ द्वारा शाषित हो तो व्यक्तिगत सफलता की ऐसी ही आकांक्षा ही राष्ट्र के विकास के मार्ग की सबसी बड़ी समस्या बन जाती है।
सामाजिक जीवन की कोई भी इकाई अपने आप में व्यवस्था परिवर्तन कर पाने में न ही परिपूर्ण है और न ही सक्षम, पर व्यवस्था परिवर्तन की प्रक्रिया में सामाजिक जीवन के सभी इकाइयों की अपनी विशिष्ट भूमिका है और यही उनका महत्व, जो प्रक्रिया की परिपूर्णता के लिए ही नहीं बल्कि परिणाम की सफलता के लिए भी निर्णायक आधार है।
सभी को अपने अपने हिस्से के दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा से करना होगा, फिर कार्यक्षेत्र चाहे जो हो। जब तक समाज के लोग अपने सामाजिक कर्त्तव्य के प्रति जागरूक नहीं होंगे, वो भ्रष्ट सामाजिक व्यवस्था के ही पात्र होंगे।
सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों को किये जाने वाले प्रयासों को राष्ट्र नव निर्माण के उद्देश्य पर केंद्रित कर , उनमें समन्वय एवं संतुलन स्थापित कर परिणाम की सफलता सुनिश्चित करना ही सामाजिक नेतृत्व की भूमिका है जो नेता के पात्र को समाज अथवा राष्ट्र के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बनाता है।
ऐसे में, समाज अपने नेतृत्व के लिए कैसे पात्र का चयन किन आधार पर करता है यह तात्कालीन सामाजिक स्थिति और समाज के नियति के दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जैसा समाज का वैचारिक स्तर होगा वह अपने लिए वैसे ही नेता का चयन करेगा और समाज अपने लिए जिस स्तर का नेता चुनेगा वह नेता अपने प्रयास से समाज के वैचारिक स्तर पर वैसा ही प्रभाव डालेगा , ऐसे में, सामाजिक जीवन में 'व्यवहारिकता' के स्तर के सुधार के लिए नेतृत्व परिवर्तन सरल और सहज विकल्प होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर समाज के व्यवहार, सीख और आचरण से समस्या है तो सामाजिक जीवन में अनुसरण के लिए प्रस्तुत उदाहरण के स्तर को सुधारकर ही वर्त्तमान की दिशा और भविष्य की सीख सही की जा सकती है।
व्यक्तिगत स्तर पर किये जाने वाले प्रयास की परिधि भले ही मानवीय कारणों द्वारा सीमित हो पर उसके उद्देश्य को विस्तृत कर सभी अपने प्रयास के प्रभाव को व्यापक बनाने में सक्षम है ; आज यही करने की आवश्यकता है।
पर यह तभी संभव है जब देश को योग्य व् उचित नेतृत्व प्राप्त हो;
प्रवाह की निरंतरता के लिए स्त्रोत की शीर्षता आवश्यक है पर जब शीर्ष पर स्थापित स्त्रोत ही संक्रमित हो तो प्रवाह के प्रदुषण को नियंत्रित करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता, फिर बात सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में ही क्यों न करें।
हम जैसे विचारों, व्यवहारों और आचरणों को आज प्रेरित और प्रोत्साहित करेंगे, वैसे ही भविष्य के संस्कार होंगे, जिसका सतत अभ्यास उसे हमारी संस्कृति में रूपांतरित कर देगा , और इसलिए, अगर हम भविष्य से अपने लिए आदर और सम्मान चाहते हैं तो हमें अपने कृत से उसे कमाना होगा ;उसके लिए बस यही निर्णय करना है की हम अपना भविष्य कैसा देखना चाहते हैं।
आज समय हमारे लिए वही अवसर लेकर आयी है जहाँ हम अपने निर्णय मात्र से अपने लिए महत्व अर्जित कर सकें और यही सही अर्थों में हमारे जीवन की उपलब्धि होगी; पर यह तभी संभव है जब आज क्या हो रहा है और आज क्या होना चाहिए इसका अंतर स्पष्ट हो, अन्यथा, जो भी हो रहा है उसी को सही सिद्ध करने में समय, शब्द, श्रम और अवसर व्यर्थ होगा, क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?"
ऐसा इसलिए क्योंकि प्रयास की सततता होते हुए भी चूँकि प्रयास न ही समन्वित, सुनियोजित व् संगठित है बल्कि एक लक्ष्य पर केंद्रित भी नहीं, सभी अपने अपने विवेक के स्तर के अनुपात में अपने परिवार की परिधि और प्रयास की व्यापकता पहले ही जो निर्धारित कर लेते हैं ; न ही समाज में स्व की समझ स्पष्ट है और न ही राष्ट्र की समझ परिपक्व , तभी, आज व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्र हित पर हावी है।
राष्ट्र की समृद्धि, सम्पन्नता और सुरक्षा का अर्थ सारे समाज की प्रगति और लाभ होगा पर जब प्रयास स्वार्थ, लोभ और लाभ द्वारा शाषित हो तो व्यक्तिगत सफलता की ऐसी ही आकांक्षा ही राष्ट्र के विकास के मार्ग की सबसी बड़ी समस्या बन जाती है।
सामाजिक जीवन की कोई भी इकाई अपने आप में व्यवस्था परिवर्तन कर पाने में न ही परिपूर्ण है और न ही सक्षम, पर व्यवस्था परिवर्तन की प्रक्रिया में सामाजिक जीवन के सभी इकाइयों की अपनी विशिष्ट भूमिका है और यही उनका महत्व, जो प्रक्रिया की परिपूर्णता के लिए ही नहीं बल्कि परिणाम की सफलता के लिए भी निर्णायक आधार है।
सभी को अपने अपने हिस्से के दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा से करना होगा, फिर कार्यक्षेत्र चाहे जो हो। जब तक समाज के लोग अपने सामाजिक कर्त्तव्य के प्रति जागरूक नहीं होंगे, वो भ्रष्ट सामाजिक व्यवस्था के ही पात्र होंगे।
सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों को किये जाने वाले प्रयासों को राष्ट्र नव निर्माण के उद्देश्य पर केंद्रित कर , उनमें समन्वय एवं संतुलन स्थापित कर परिणाम की सफलता सुनिश्चित करना ही सामाजिक नेतृत्व की भूमिका है जो नेता के पात्र को समाज अथवा राष्ट्र के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बनाता है।
ऐसे में, समाज अपने नेतृत्व के लिए कैसे पात्र का चयन किन आधार पर करता है यह तात्कालीन सामाजिक स्थिति और समाज के नियति के दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जैसा समाज का वैचारिक स्तर होगा वह अपने लिए वैसे ही नेता का चयन करेगा और समाज अपने लिए जिस स्तर का नेता चुनेगा वह नेता अपने प्रयास से समाज के वैचारिक स्तर पर वैसा ही प्रभाव डालेगा , ऐसे में, सामाजिक जीवन में 'व्यवहारिकता' के स्तर के सुधार के लिए नेतृत्व परिवर्तन सरल और सहज विकल्प होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर समाज के व्यवहार, सीख और आचरण से समस्या है तो सामाजिक जीवन में अनुसरण के लिए प्रस्तुत उदाहरण के स्तर को सुधारकर ही वर्त्तमान की दिशा और भविष्य की सीख सही की जा सकती है।
व्यक्तिगत स्तर पर किये जाने वाले प्रयास की परिधि भले ही मानवीय कारणों द्वारा सीमित हो पर उसके उद्देश्य को विस्तृत कर सभी अपने प्रयास के प्रभाव को व्यापक बनाने में सक्षम है ; आज यही करने की आवश्यकता है।
पर यह तभी संभव है जब देश को योग्य व् उचित नेतृत्व प्राप्त हो;
प्रवाह की निरंतरता के लिए स्त्रोत की शीर्षता आवश्यक है पर जब शीर्ष पर स्थापित स्त्रोत ही संक्रमित हो तो प्रवाह के प्रदुषण को नियंत्रित करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता, फिर बात सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में ही क्यों न करें।
हम जैसे विचारों, व्यवहारों और आचरणों को आज प्रेरित और प्रोत्साहित करेंगे, वैसे ही भविष्य के संस्कार होंगे, जिसका सतत अभ्यास उसे हमारी संस्कृति में रूपांतरित कर देगा , और इसलिए, अगर हम भविष्य से अपने लिए आदर और सम्मान चाहते हैं तो हमें अपने कृत से उसे कमाना होगा ;उसके लिए बस यही निर्णय करना है की हम अपना भविष्य कैसा देखना चाहते हैं।
आज समय हमारे लिए वही अवसर लेकर आयी है जहाँ हम अपने निर्णय मात्र से अपने लिए महत्व अर्जित कर सकें और यही सही अर्थों में हमारे जीवन की उपलब्धि होगी; पर यह तभी संभव है जब आज क्या हो रहा है और आज क्या होना चाहिए इसका अंतर स्पष्ट हो, अन्यथा, जो भी हो रहा है उसी को सही सिद्ध करने में समय, शब्द, श्रम और अवसर व्यर्थ होगा, क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?"
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