Sunday, 26 March 2017

सरस्वती नदी और उसकी सभ्यता

हमें उस विदेशी धारणा को दूर करना होगा जो सभ्यता के पूरे कालखण्ड को महज
10 हजार साल के अन्दर समेट देती है।

जबकि आज वो खुद सभ्यता के काल को लाखों वर्ष पूर्व मानते हैं।

वैदिक साहित्य हजारों वर्षों से मानव मस्तिष्क पर मानों रिकार्ड किया जाता रहा हो
और इसे भारतीय मनीषा का चमत्कार ही कहा जायेगा कि आज भी वैदिक साहित्य
उसी रुप में सुरक्षित है।

भारत का भू-गर्भिक इतिहास एशिया महाद्वीप की संरचना से सम्बद्ध है जो अबसे
लगभग 12 करोड वर्ष पूर्व से प्रारम्भ होता है जब इस धरती पर मानव का अवतरण
हुआ था और इसे मनवन्तर का सिद्धान्त कहा जाता है जिसका विस्तृत वर्णन हमारे
ग्रन्थों में मिलता है।

‘‘हमारे पूर्वजों ने इतिहास की एक अक्षय निधि हमारे लिए विरासत में छोडी है जिसे
विदेशी शासकों ने क्षुद्र स्वार्थवश नकारकर एक विकलांग इतिहास सबके समक्ष रखा।

आइये हम अपने इतिहास को विश्व परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करके एक इतनी बड़ी रेखा
खींच दें कि पश्चिम का विकलांग इतिहास स्वतः प्रभावहीन हो जाय।’’

अंग्रेजी पुस्तक ‘‘द लास्ट रिवर सरस्वती’’ का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें वामपंथी
और विदेशी मानसिकता वाले इतिहासकारों से जबाब-सवाल करने की बजाय अपना
कार्य दृढ़ता से करते रहने की जरुरत है और यही कार्य उनके भ्रामक मान्यताओं को
ध्वस्त कर देंगे।

-----प्रो. टी. पी. वर्मा (सेवानिवृत्त उपाचार्य,प्रा.इ.एवं पुरातत्व विभाग,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी)।

"वैदिक सरस्वती नदी शोध-अभियान"

भारतीय-धर्मशास्त्रों और पुराणों में वर्णित विशाल एवं पवित्र सरस्वती नदी को
संसार के सभी प्रतिष्ठित विद्वान् स्वीकार करते हैं।

इसी पवित्र सरस्वती नदी के तट पर मंत्रद्रष्टा ऋषियों ने वेदमंत्रों का साक्षात्कार
किया था।

कालान्तर में सरस्वती नदी अंतःसलिला हो गयी।

ऋग्वेद के नदीसूक्त में भारत की दस नदियों का वर्णन है जिसमें सरस्वती सबसे
महत्त्वपूर्ण नदी के रूप में वर्णित है।

ऋग्वेद के अतिरिक्त यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद,वाल्मीकीयरामायण,महाभारत,
पुराण-ग्रन्थ,ब्राह्मण-ग्रन्थ,मनुस्मृति,मेघदूतम्,अवेस्ता आदि ग्रन्थों में सरस्वती
नदी का वर्णन प्राप्त होता है।

महाभारत के शल्यपर्व में सरस्वती के तटवर्ती सभी तीर्थों का विस्तारपूर्वक
वर्णन है।

वस्तुतः महाभारत युद्ध के समय की गई बलराम जी की तीर्थयात्रा,सरस्वती के
तट पर स्थित तीर्थों की ही यात्रा थी,जिसका विस्तार से वर्णन शल्यपर्व में
उपलब्ध होता है।

विगत कुछ वर्षों में हुए अनुसन्धानों से यह सिद्ध हुआ है कि वेदों में वर्णित
सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर के ‘आदिबद्री’ नामक स्थान से
निकलती थी जो शिवालिक पर्वत से निकलनेवाली सरस्वती नदी का
मुखद्वार था।

आज भी सरस्वती नदी के इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।

सरस्वती नदी का उद्गम स्थल बंदरपूंछ शिखर के पश्चिम में हर-की-दून
ग्लेशियर है।

सरस्वती नदी शिवालिक की आदिब्रदी से निकलकर हरियाणा,पंजाब,सिंध-प्रदेश,
राजस्थान एवं गुजरात होते हुए लगभग 1,600 किमी की दूरी तय करते हुए अरब
सागर में गिरती थी।

उपग्रह से लिए गए भूगर्भीय चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने सरस्वती के
प्रवाह-मार्ग का मानचित्रण किया है।

ये मानचित्र दर्शाते हैं कि यह नदी 8 किमी तक चौड़ी थी और यह पूरे प्रवाह के
साथ बहती थी।

उस समय सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदी थी।

इसके अतिरिक्त दो अन्य नदियाँ- दृष्द्वती (घाघरा) और हिरण्यवती भी सरस्वती
की सहायक नदियाँ थीं।

भूगर्भिक विद्वानों के अनुसन्धानों से यह बात सामने आई कि लगभग 5 हज़ार वर्ष
पूर्व भूगर्भिक परिवर्तनों के कारण शिवालिक-श्रेणियाँ 20-30 मीटर ऊपर उठ गयीं,
सरस्वती नदी का मुखद्वार अवरुद्ध हो गया और वह मार्ग बदलकर बहने लगी।

विवर्तनिक परिवर्तन होते रहे और कालान्तर में इसका जल यमुना ने अपहरण
कर लिया।
सरस्वती वर्षा-जल से बहनेवाली एक नदी बनकर रह गयी।

धीरे-धीरे राजस्थान-क्षेत्र में मौसम गर्म होता गया और वर्षा-जल भी न मिलने के
कारण सरस्वती सूखकर लुप्त हो गयी।

धीरे-धीरे यह क्षेत्र मरुस्थल में परिवर्तित हो गया।

जोधपुर के सूदूर-संवेदी उपग्रह-केन्द्र के अध्यक्ष डा॰ जे॰आर॰ शर्मा के अनुसार
सरस्वती नदी सम्भवतः एक भीषण भूकम्प के कारण उत्पन्न हुए भूगर्भीय
पहाड़ों के कारण सूख गयी।

अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना ने लुप्त सरस्वती नदी का व्यापक
सर्वेक्षण किया।

यह सर्वेक्षण ‘वैदिक सरस्वती नदी-शोध अभियान’नामक प्रकल्प के अंतर्गत किया
गया है।

निम्नांकित लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से यह प्रकल्प प्रारम्भ किया गया-

1. हमारे इतिहास की प्राचीनता की पुनस्र्थापना।

2. आर्यों के मूलस्थान के संबंध में भ्रमों और विवादों का निराकरण।

3. सर्वेक्षण के द्वारा पुरातात्त्विक सामग्री, साहित्यिक साक्ष्य तथा प्रलेखों को
प्राप्त करना। विदेशी-आक्रान्ताओं द्वारा हमारी ज्ञानराशि को नष्ट कर दिया गया है,
फलस्वरूप हमारे इतिहास के प्राचीन अध्याय नहीं मिलते।
उपर्युक्त सामग्री से हमारे इतिहास का पुनर्लेखन हो सकेगा।

4. ‘सरस्वती कोश’का प्रकाशन

उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्तिक शुक्ल अष्टमी, मंगलवार,
कलियुगाब्द 5087,तदनुसार 19 नवम्बर,1985 से मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी,
बृहस्पतिवार,कलियुगाब्द 508,तदनुसार 19 दिसम्बर,1985 तक मा॰ मोरोपन्त
पिंगळे एवं पद्मश्री डा॰ विष्णु श्रीधर वाकणकर के नेतृत्व में सरस्वती-नदी का
व्यापक सर्वेक्षण किया गया।

सर्वेक्षण में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के 16 विद्वान् थे।

आदिबद्री से सोमनाथ तक लगभग 4 हज़ार किमी की दूरी का सर्वेक्षण किया गया।

सर्वेक्षण के दौरान महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक सामग्री एकत्रित की गयी।
सर्वेक्षण की वीडियो- फि़ल्म भी तैयार की गयी।

इस सर्वेक्षण-यात्रा के उपरान्त डा॰ वाकणकर ने जो निष्कर्ष निकाले, उनमें से प्रमुख हैं-

1. वैदिक सरस्वती नदी हिमालय से निकलती है, वह आदिबद्री के पास समतल प्रदेश
में प्रकट होती है जिसकी चैड़ाई 6 से 8 किमी थी।

2. लगभग 10 हज़ार वर्ष पूर्व हिमालय के ऊपर उठने से इसका मुख्य स्रोत खण्डित
हो गया।

3. सरस्वती घाटी कृषि के लिए विख्यात थी और प्राक्-हड़प्पीय बस्तियाँ छा गई थीं।
सारस्वत क्षेत्र घनी आबादीवाला क्षेत्र था।

4. आद्यमानव ‘रामापिथिकस’का जन्म शिवालिक की श्रेणियों में सरस्वती की उ
पत्यिका में हुआ।

5. महाभारत-युद्ध इसके ही किनारे पर हुआ।
धीरे-धीरे सरस्वती नदी का मूल प्रवाह अवरुद्ध होने से वह सूखने लगी और इसका
प्रवाह ओझल हो गया।

6. वैदिक समाज के लोग इसी क्षेत्र में जन्मे और सरस्वती के अन्त:सलिला होने
के कारण विश्वभर में फैल गये।

विद्वानों की एक बड़ी शृंखला ने अपने शोध-कार्यों से प्राचीन सरस्वती नदी की
प्रामाणिकता सिद्ध की है।
प्राचीन जलधाराओं के उपग्रह-चित्रों, भूगर्भीय सर्वेक्षण और ज़मीन के ऊपर किए
गए जल-सर्वेक्षणों ने इस नदी को प्रमाणित किया है।

केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण के अध्यक्ष डा॰ डी॰के॰ चड्ढा ने जुलाई, 997 में राजस्थान
के जैसलमेर जि़ले के 8 क्षेत्रों में विस्तृत उपग्रहीय तथा अन्य सर्वेक्षणों पर आधारित
सरस्वती-परियोजना के बारे में बताया कि भूमि के नीचे 360 मीटर की गहराई में
सरस्वती नदी का पुराना जलमार्ग अभी भी विद्यमान है।

राजस्थान राज्य भूमिगत जलबोर्ड के अध्यक्ष के॰एस॰ श्रीवास्तव का मानना है कि
राजस्थान के प्राचीन जलमार्गों में से एक सरस्वती नदी हो सकती है।

उनका कहना है कि कार्बन डेटिंग से यह तथ्य सामने आया है कि इस इलाके के
प्राचीन जलमार्गों में उन्हें जो जल मिल रहा है, वह चार हज़ार वर्ष पुराना है।

केन्द्रीय भू-जल बोर्ड के पूर्व महानिदेशक के॰आर॰ श्रीनिवास ने अपनी एक रिपोर्ट
में बताया है कि सरस्वती नदी के जलमार्गों पर लगभग 10 लाख नलकूप खोदे
जा सकते हैं।

अभी तक हड़प्पा-सभ्यता को सिर्फ सिंधु-नदी की देन माना जा रहा था, किन्तु
अब नये शोधों से यह सिद्ध हो गया है कि यह सभ्यता सरस्वती नदी के तट पर
अवस्थित थी।

उल्लेखनीय है कि उत्खनन में प्राप्त हड़प्पा-सभ्यता की 2,600 बस्तियों में मात्र
265 बस्तियाँ ही,जो वर्तमान पाकिस्तान में हैं,सिंधु-नदी के तट पर मिलती हैं।
शेष सभी सरस्वती के तट पर हैं।

उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में और इस विषय पर देश-विदेश में हुए अद्यतम
अनुसन्धानों का समाहार करते हुए आधुनिक वैज्ञानिक-साधनों से और आगे
अनुसन्धान करने का भगीरथ प्रयत्न डा॰ एस॰ कल्याणरमण ने संभाला।

वर्षों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप अन्तःसलिला सरस्वती की
वैज्ञानिक-प्रामाणिकता के साथ सरस्वती की सर्वांगीण अध्ययन-सामग्री
को ‘सरस्वती’ शीर्षक से लगभग एक हज़ार पृष्ठों एवं 600 चित्रों सहित
सन् 2000 में प्रकाशित किया और सन् 2003 में इसके 7 खण्ड प्रकाशित
किये गए।

इसी दौरान अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ग्लेशियर-वैज्ञानिक डा॰ विजय मोहन
कुमार पुरी ने हिमालय के पावटा-दून ग्लेशियर-समूह में सरस्वती के स्रोत
की खोज कर ली।

इस महत्त्वपूर्ण शोध को योजना ने ‘डिस्कवरी आफ़ सोर्स आफ़ वैदिक सरस्वती
इन द हिमालयाज़’ शीर्षक पुस्तिका के रूप में कलियुगाब्द 5102 (2000 ई॰) में
प्रकाशित किया।

योजना के वैदिक सरस्वती नदी शोध-अभियान के कारण भारतीय-इतिहास की
प्राचीनता सिद्ध हो चुकी है और आर्य-आक्रमण सिद्धान्त का भी पर्दाफ़ास हो चुका है।

दूसरा चरण सरस्वती नदी को पुनर्प्रवाहित करने का है।

डा॰ एस॰ कल्याणरमण और डा॰ विजय मोहन कुमार पुरी ने सरस्वती को पुनः
प्रवाहित करने की योजना के तहत अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना के
तात्कालीन संगठन-सचिव मा॰ हरिभाऊ वझे जी के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति डा॰
ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम से भेंट की थी।

इन प्रयासों तथा डा॰ सुरेश चन्द्र वाजपेयी के सहयोग से भारत के तत्कालीन
पर्यटन-मंत्री श्री जगमोहन ने सरस्वती नदी को पुनर्प्रवाहित करने की योजना
को स्वीकृति दी थी।

प्रथम चरण में आदिब्रदी से हरियाणा के भगवानपुर गाँव तक के सरस्वती के
मार्ग का उत्खनन होगा और दूसरे चरण में उसके आगे का।

सरस्वती के पुराने घाटों, तीर्थस्थलों और मन्दिरों का जीर्णोद्धार प्रारम्भ हो गया है।
अब इस नदी पर शोध-कार्य भी हो रहे हैं।

सरस्वती नदी पर 14 भाषाओं में 1.प्राइमरी,2.जूनियर,3.हाईस्कूल$सीनियर
सेकेण्ड्री और 4. डिग्री- इन चार स्तर पर क्रमशः 50,100,150 एवं 200 पृष्ठों
की लगभग 1.5 लाख पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना है ।

फिलहाल 9 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

इन्हें देश के सारे विद्यालयों में भेजा जा रहा है।

साथ ही सरस्वती शोध-संस्थानों के द्वारा ओ॰एन्॰जी॰सी॰ के सहयोग से सैनिकों के
लिए सरस्वती का जल कुओं के माध्यम से उपलब्ध कराने की योजना है।

योजना के इस प्रकल्प का ही परिणाम है कि आज सरस्वती नदी पर जितना शोध
कार्य हो रहा है,उतना एक नदी पर संसार में कभी नहीं हुआ है।
-----अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना 

No comments:

Post a Comment