Friday 19 May 2017


भारत ने स्वदेशी तकनीक से बने 10 नए परमाणु रिएक्टर लगाने का फैसला किया है. 
इससे बिजली की जरूरत पूरी होगी औऱ कार्बन डाय ऑक्साइड की समस्या से भी निबटा जा सकेगा क्योंकि भारत में इस्तेमाल होने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा कोयले से आता है जो कार्बन डाय ऑक्साइड /कार्बन मोनो आक्साइड का उत्सर्जन करता है। भारी पानी वाले इन नए परमाणु रिएक्टरों के बनने से सात हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी।
नई परियोजनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में परमाणु ऊर्जा से बिजली पैदा करने को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी तकनीक से बने दस नए रिएक्टर लगाने को हरी झंडी दिखाई गई है. इनमें से हर रिएक्टर की क्षमता सात सौ मेगावाट की होगी. यानी इनके पूरा होने पर सात हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी. फिलहाल देश में 6,780 मेगावाट बिजली परमाणु ऊर्जा से पैदा करने की परियोजना पर काम चल रहा है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल बताते हैं, "ऐसी तमाम परियोजनाएं वर्ष 2021-22 तक पूरी हो जाएंगी. बिजली पैदा करने की यह तकनीक दूसरी तकनीकों के मुकाबले सस्ती और पर्यावरण-सम्मत हैं."
प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की तकनीक को लगातार बढ़ावा दिया है. केंद्र का लक्ष्य अगले एक दशक के दौरान इस क्षमता को तीनगुना बढ़ाने का है. अगले पांच वर्षों के दौरान इसे बढ़ा कर 10 हजार मेगावाट से ज्यादा करने का लक्ष्य तय किया गया है. फिलहाल देश के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का हिस्सा महज साढ़े तीन फीसदी है. विशेषज्ञों का कहना है कि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के सरकार के फैसले से भविष्य में बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी.
बिजली को तरसती आबादी
अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में बिजली का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के बावजूद अभी भी देश की 23.7 करोड़ यानी लगभग 19 फीसदी आबादी बिजली के लिए तरस रही है क्योंकि पिछली कांग्रेस सरकारों ने इस दिशा में कोई ठोश काम नही किया था। देश में बिजली की कमी पूरा करने के लिए सरकार अब अक्षय ऊर्जा के संसाधनों के दोहन को भी बढ़ावा दे रही है. इसकी एक प्रमुख वजह देश में कार्बन उत्सर्जन बढ़ना भी है. ऐसे में देश में बिजली की भावी जरूरतों को पूरा करने में परमाणु ऊर्जा से बनी बिजली की भूमिका अहम रहने की उम्मीद है। वर्ष 2020 तक देश में इस तकनीक से 14.6 गीगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य तय किया गया है जिसे 2032 तक बढ़ा कर 27.5 गीगावाट किया जाएगा. केंद्र की योजना वर्ष 2050 तक देश की कुल बिजली का एक चौथाई इसी तकनीक से पैदा करने की है.
केंद्र सरकार परमाणु ऊर्जा के अलावा अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्रोतों को भी बढ़ावा दे रही है. उसकी योजना वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जा से एक लाख मेगावाट बिजली पैदा करने की है. इंटनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईइए) का अनुमान है कि वर्ष 2040 तक भारत में पैदा होने वाली बिजली में अक्षय़ उर्जा का हिस्सा 43 फीसदी तक पहुंच जाएगा।
देश में यूरेनियम का घरेलू भंडार कम होने की वजह से पहले इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुआ. तब रूस से ही परमाणु इंधन का आयात होता था. लेकिन कर्नाटक के टुम्मालपाले में यूरेनियम का बड़ा भंडार मिलने के बाद इस क्षेत्र में तेजी आई है. इसके साथ ही विभिन्न देशों के साथ हुए समझौतों से भी इस क्षेत्र को प्रोत्साहन मिला है।

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