Sunday, 14 May 2017

अनुपम खेर ने किया सुप्रीम कोर्ट से तीखा सवाल:- मीलॉर्ड आप कुरान का लिखा मानोगे,

 लेकिन पुराण का लिखा क्यों नही ..?

11 मई से तीन तलाक पेपर सुनवाई के  सुप्रीम कोर्ट की 5 जजो की बेच बैठी है, सुनवाई के पहले ही दिन कोर्ट ने कहा अगर तीन तलाक का मामला आदर इस्माल धर्म का हुआ तो हम उसमे दखल नही देगें।

देश में किस प्रकार विशेष धर्म के लोगों ने आतंक फैला रखा है,और लोग इनके आतंक से डरते है, इस बात का पता इसी बात से पता चलता है देश की शीर्ष अदालत भी अपने फैसले सुनाने से पहले उनके धार्मिक मामलों में दखल नही देना नहीं चाहता है।

ठीक है मीलॉर्ड आप धर्म के मम्मले में दखल नही देना चहाते, जलीकट्टू,दही हांडी, गोहत्या,राममन्दिर,हिन्दूओ के धर्म मामले नही है क्या जो आप उसमे तुरंत दखल दे देते हो,आपको ये धर्म के मामले नही दिखाई देते हैं क्या? या फिर मीलॉर्ड को मुसलमानों की धमकी से डर लगता है। हमें ये भी बताइये, पूरा देश ये जानना चाहाता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा,”कुरान में 3 तलाक होगा तो उसे मानेंगे.., तो रामायण में साफ़ लिखा है कि प्रभु श्रीराम अयोध्या में जन्मे थे, उसे क्यों नहीं मानते? – सुरेश चव्हाण

मित्रों ,तीन तलाक की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है , सुप्रीम कोर्ट में बार बार दलील दी जा रही है कि तीनतलाक इस्लामी मज़हब का अंग है .. जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि -“यदि तीन तलाक आपकेमज़हब का अंग हुई और वो कुरान में लिखी होगी तो सुप्रीम कोर्ट उसे मान लेगा “..
मैं सुरेश चव्हाणके माननीय न्यायालय को श्रीरामचरितमानस और रामायण से वो सारे अंश दिखाने औरसप्रमाण देने को भी तैयार हूँ जिसमे अयोध्या हमारे प्रभु श्रीराम की है और बना दिया गया विवादित स्थलहमारे आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि .. क्या क़ुरान पर दिखाई जा रही आस्था माननीय न्यायालय रामायण और श्रीरामचरितमानस पर भी दिखाएगा ? यदि धर्म मे छेड़छाड़बर्दाश्त नहीं है तो हमारे राम के जन्मस्थान की सुनवाई निचली अदालत से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक क्यों करवाई गई ?
क्या सुप्रीम कोर्ट क़ुरान के समकक्ष रामायण या श्रीरामचरितमानस को नहीं मानता ??मैं जनता जनार्दन से निवेदन करता हूँ कि वो मेरीआवाज बनें .. यदि सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक पर क़ुरान को मानने के लिए तैयार है तो श्रीरामजन्मभूमि के विषय मे रामायण औरश्रीरामचरित मानस को क्यों नहीं??
निश्चित रूप से मेरे इस प्रश्न का उत्तर कानून मंत्रालय से ले कर उच्चतम न्यायालय को देना ही पड़ेगा ….




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