Wednesday, 10 May 2017

राज्याभिषेक से पहले संवाद :-
चाणक्य : ये क्या सुन रहा हूँ मैं ?
चन्द्रगुप्त : नहीं बनना मुझे मगद का सम्राट !
चाणक्य : क्यों ?
चन्द्रगुप्त : जब से यहाँ आया हूँ , अपनी इच्छा से सांस तक नहीं ले सका हूँ। आपने मुझे स्वपन दिया था चक्रवती सम्राट का, लेकिन यहाँ आने के बाद पता चला कि सम्राट एक नौकर से बढकर कुछ नहीं।
चाणक्य : सम्राट एक 'नौकर (सेवक)' ही होता है ।
चन्द्रगुप्त : तो रखिये अपना साम्राज्य , मुझे नहीं बनना सम्राट, क्या सम्राटों को सुखी नहीं होना चाहिए ?
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चाणक्य : "मूर्ख! जब तक तेरे साम्रज्य में एक भी व्यक्ति भूखा है , तो क्या तू सुखी रह पायेगा। सुख शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता। भूल गया तू ? मैंने तुझे साम्राज्य देने का वचन दिया था, सुख देने का नहीं। भूल गया तू के प्रजा के हित में ही राजा का हित है। प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है, सुख चाहता है तो पहले प्रजा को सुखी बना। तूने साम्राज्य अर्जित किया है सुख अर्जित करने का मार्ग तेरे आगे खुला है।"
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चन्द्रगुप्त अपने जीवन के अन्तकाल में 40 दिनों तक भूखा रहता है क्योंकि उस समय भयंकर अकाल पडा था।
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इसे कहते है, "राजधर्म" .. !

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