Wednesday, 31 May 2017

कन्नूर कांड की स्ट्रेटजी समझ लीजिये ।
कन्नूर शहर मलाबार में आता है, मुस्लिमबहुल नहीं है लेकिन उनकी संख्या "क्रिटिकल मास" से ऊपर है ।
मोपला हत्याकांड मलाबार में ही हुआ था। ब्रिटिश तो कोई भगाये नहीं गए थे, हिन्दू ही मारे गए थे, बाकी परंपरा है कि हिंसक मुस्लिम अपने पास होनेवाले हर हथियार का ऐसे मौकों पर छूट से प्रयोग करता ही है, यहाँ भी इस इस्लामी परंपरा का कोई अपवाद नहीं था। सभी सच्चे मुसलमान थे। और अपने हर कांड को जायज ठहराने की भी इनकी परंपरा के मुताबिक इसे स्वतन्त्रता संग्राम बताने की भी कोशिश की गई, गांधी जी से सर्टिफिकेट पा कर । आज भी जारी है । कोई गाजी को 1947 में इस कांड में हिस्सा लेने के कारण सपरिवार स्वतन्त्रता सैनिक के फायदे दिये गए हो तो पता नहीं, अल्लाह से भी अपनी सरकरे बहुत दयालु होती हैं ।
कन्नूर के किसी हिन्दू से परिचय है तो अवश्य पूछिए वहाँ का सौहार्दपूर्ण माहौल कैसा है ।
अब कुछ और बातें जो प्रथम दृष्ट्या संबन्धित नहीं लगे ।
खिलाफत मूवमेंट की भारत में हिंसा - खलीफा तुर्की में थे, भारत से कोई संबंध नहीं था। हिंसा यहाँ हुई । शायद आज कोई सबूत उपलब्ध नहीं होंगे कि उस हिंसा के बहाने मुसलमानों ने हिंदुओं का क्या नुकसान किया और क्या छीना । अंग्रेजों का तो कोई नुकसान किया नहीं था।
सलमान रश्दी की किताब आने ही नहीं दी फिर भी यहाँ दंगे हुए। क्या कारण था ? बिगड़ी परिस्थिति के कारण अगर हिन्दुओने तब स्थलान्तर किया तो मुसलमानों का कितना फायदा और हिंदुओं का कितना नुकसान हुआ ?
बाबरी उत्तर प्रदेश में थी, दंगे भारत भर में करवाए गए । यहाँ भी बिगड़ी परिस्थिति के कारण अगर हिन्दुओने तब स्थलान्तर किया तो मुसलमानों का कितना फायदा और हिंदुओं का कितना नुकसान हुआ ?
म्यानमार में रोहिङ्ग्या मुसलमानोंपर किए गए कथित अत्याचारों के फर्जी विडियो की दुहाई देकर मुंबई में दंगे किए गए । कौम की दहशत कायम करने के लिए । दुसरा कोई सयुक्तिक कारण है भी तो बताएं।
यह इस्लाम की रणनीति रही है कि कहीं भी कुछ हुआ तो पूरी लोकतान्त्रिक दुनिया सकते में रहती है कि क्या हमारे बीच बसे मुसलमान कहीं इसपर दंगा तो नहीं करेंगे ? सब से दुख की बात यही रहती है कि हर कोई अलग अलग यही सोचता रहता है कि कहीं अपने एरिया में दंगा हो तो मैं या मेरे परिजन दंगे की चपेट में न आयें । मेरे दुकान या घर का नुकसान न हो ।
लेकिन सब मिलकर यह नहीं सोचते कि अपने शहर के मुसलमानों को यह समझाया जाये कि दंगा करना बेवकूफी और उनके लिए नुकसान का काम होगा। यह काम की बात कैसे समझाई जाये ये हर किसी की समझने की क्षमता पर निर्भर करता है । मिलने के लिए समय नहीं मिलता नौकरी के चलते।
वैसे यह मुस्लिम स्ट्रेटजी लोग समझ रहे हैं इसलिए उन्होने अपनी backup स्ट्रेटजी काम में लाई है । कोंग्रेसियों के हाथों कम्युनिस्टों के समर्थन से गोवध करवाया है । दिखने में तो सामने सभी नाम भारतीय है, कोई अरबी नाम नहीं । और इसी भरोसे बैठे हैं कि अपनी लश्कर ए मीडिया यही दिखाएगी कि ये तो केरल की हिन्दू जनता का रोष है, आक्रोश है ।
शेष भारत की जनता नहीं जानती कन्नूर की डेमोग्राफी क्या है, वातावरन कैसा है, उसके लिए तो वह केरल है । कन्नूर में 2011 की जनगणना मुताबिक मुस्लिम जनसंख्या 20% है । और Dr Peter Hammond की प्रसिद्ध किताब Slavery, Terrorism and Islam के मुताबिक उनकी संख्या 20% पार कर जाती है तो हमेशा छोटे से छोटे बहानों को लेकर दंगे करेंगे ताकि उनकी दहशत बनी रहे। https://goo.gl/fRCQJs
कोई यह सवाल नहीं पूछेगा कि यह अगर केरल की आम जनता का विरोध होता तो कन्नूर ही क्यों पसंद किया गया, क्योंकि वहाँ पिनरई विजयन जैसे मुख्यमंत्री की चलती है जो खुले मंच से मानता है कि बंगाल के कम्युनिस्टों की विरोधकों को खत्म करने की रीति हम से अच्छी थी ?
ढाल को सिपर कहते हैं और तलवार को सैफ । आप को सैफ उद दीन, सैफुल्लाह आदि मिलेंगे, सिपरुल्लाह या सिपरुद्दीन कभी नाम सुना नहीं। कारण आसान है, सिपर पर विरोधी का प्रहार झेलना होता है, वो टूट भी सकता है और उससे विरोधि पर प्रहार भी किया जा सकता है । बेहतर है उसे विरोधियोंमीसे ही चुना जाये । काफिर के वार से काफिर ही मरे वो भी इस्लाम के फायदे के लिए इससे बड़ी इस्लाम की खिदमत और क्या हो सकती है ?
लॉजिकली देखिये सभी बातों को, जोड़कर देखना पड़ता है तभी चित्र स्पष्ट होता है । आसमान में नक्षत्र देखे ही होंगे, क्या सभी तारे कल्पना से जोड़ने नहीं होते तभी समझ में आती है आकृति ?
इस्लाम और वाम से इस्लाम और वाम का अभ्यास ही बचा सकता है । और हर ज्ञान किताबों से नहीं मिलता, इस्लाम केवल किताबों को बैठकर पढ़ने से नहीं फैला इतना तो समझ ही रहे हैं आप ?
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साभार Anand Rajadhyaksha

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