Monday 15 May 2017

एच.सी. वर्मा- फिजिक्स में कई किताबें लिखने वाले बिहार के इस साइंटिस्ट को कभी दशवीं पास करना भी मुश्किल लगा था...

एच. सी. वर्मा का नाम सदियों से बिहार के हर छात्र की ज़ुबान पर रहता है। आज हम आपको बिहार के इन्हीं महान वैज्ञानिक के बारे में बताते हैं।
बिहार ने दुनिया तो सिर्फ आर्यभट्ट और चाणक्य ही नहीं दिया बल्कि एचसी वर्मा जैसा महान भौतिक वैज्ञानिक भी दिया है जो आज भी युवाओं को फिजिक्स के रहस्यों से अवगत करा रहे हैं।
3 अप्रैल 1952 को बिहार के दरभंगा में जन्में हरीश चंद्र वर्मा एक भारतीय प्रयोगात्मक भौतिक वैज्ञानिक और 1994 के बाद से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में प्रोफेसर हैं। उनका अनुसंधान क्षेत्र परमाणु भौतिकी है।
उन्होंने ग्रेजुएट, अंडरग्रेजुएट और स्कूल स्तरों पर भौतिकी पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उनका सबसे लोकप्रिय काम दो खंड पुस्तक अवधारणाओं का भौतिकी है उन्होंने आईआईटीके परिसर के पास रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए शिक्षा सोपान जैसे पहल की स्थापना की है। उनकी वेबसाइट के मुताबिक, वह फिलहाल इलेक्ट्रोस्टैटिक्स, मैग्नेटोस्टैटिक्स और इलेक्ट्रोडायनामिक्स से स्नातक स्तर के एक पुस्तक पर काम कर रहा है।
प्रारंभिक शिक्षा
एच. सी. वर्मा ने अपना अधिकांश बचपन को पटना में बिताया। उन्हें प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता श्री गणेश प्रसाद वर्मा से मिली जो अंकगणित के शिक्षक थे। श्री वर्मा ने भारत के स्कूली शिक्षा प्रणाली के खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ स्कूल की पढाई की। पढाई में उनकी बिलकुल भी रूचि नहीं थी। हाई स्कूल की पढाई का उनका अनुभव और भी बुरा रहा जब परीक्षा में उत्तीर्ण करना भी उनके लिए काफी मुश्किल था।
बहुत संघर्ष करके उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की और फिर उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। पटना साइंस कॉलेज ने स्कूल के इस सामान्य लड़के को आत्मविश्वास से परिपूर्ण और उज्ज्वल किशोरावस्था में ढाला।पटना विज्ञान कॉलेज का वातावरण उनके पूर्व विद्यालय से बिल्कुल अलग था। शिक्षक उज्ज्वल, उत्साही और उत्साहजनक थे। एक छात्र जो उत्तीर्ण होने की लिए अंक लाने में संघर्ष करता था, वह पटना विश्वविद्यालय में थर्ड रैंक के साथ भौतिकी में बी.एससी (ऑनर्स) की डिग्री ली।
1975 से 1977 तक, वर्मा एमएससी करने के लिए आईआईटी कानपुर गए और वहां 10.0 में से 9.9 के इंडेक्स के साथ बेहतरीन प्रदर्शन कर एक शीर्ष छात्र के रूप में अपनी पहचान बनाई। इसके बाद उन्होंने डॉक्टरेट की पढाई करने के लिए आईआईटी कानपुर में ही रहने का फैसला किया। वर्मा को तीन वर्षों से कम समय में पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई।करियर
1 9 80 में, श्री वर्मा ने एक लेक्चरर के रूप में प्रतिष्ठित पटना साइंस कॉलेज ज्वाइन किया। वहां उन्हें 11 वीं और 12 वीं कक्षा के छात्रों सहित विभिन्न स्तर के छात्रों को पढ़ाने के लिए कहा गया। उन्होंने देखा कि कक्षा में शीर्ष छात्र भी भौतिक विज्ञान के कांसेप्ट को समंझने और उसका आनंद लेने में असमर्थ थे। उन्होंने इस पर विचार किया और महसूस किया कि समस्या यह थी की जिन पाठ पुस्तकों से वो छात्रों को पढ़ते थे, छात्रों को उन के साथ जोड़ पाए थे।
ये किताब फंडामेंटल्स ऑफ़ फिजिक्स बाई रेसनिक एंड हॉलिडे टी जिसने श्री वर्मा को उनके एमएससी के दौरान बहुत ही प्रेरित किया था। इसका कारण भाषा और सांस्कृतिक अंतर होना था।
ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये युवा छात्रों को पुस्तक की भाषा में उलझा दिया गया और वे पुस्तक के कांसेप्ट और इसकी सुंदरता तक पहुंचने से पहले रुचि खो देते हैं। जब उन्हें भारतीय छात्रों के लिए कोई ऑथेंटिक और अच्छी किताब नहीं मिली जो युवा भारतीय छात्रों के लिए भौतिक विज्ञान की अवधारणाओं को सुखद बनाता है, तब उन्होंने खुद ही “कांसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स” नमक किताब लिख दिया।
डॉ. वर्मा की लिखी ये किताब बहुत ही सफल रही। पुस्तक की सफलता का कारण उसकी ऑथेंटिसिटी, सरल भाषा, दिलचस्प संख्यात्मक उदाहरण और भारतीय संस्कृति के साथ संबंध है।
भारतीय छात्रों के लिए फिजिक्स की खूबसूरती को उजागर करने में पुस्तक सफल रही। डा. वर्मा को “कांसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स” लिखने में आठ साल लगे। उनकी पुस्तक आईआईटी-जेईई (संयुक्त प्रवेश परीक्षा) की तैयारी के लगभग सभी छात्रों द्वारा पढ़ी जाती है। भारतीय छात्रों, विज्ञान और समाज को डॉ. वर्मा ने एक महान उपहार दिया था। आईआईटी कानपुर आने से करीब 15 साल पहले वह पटना साइंस कॉलेज में रहे।डॉ. वर्मा ने 1994 में आईआईटी कानपुर को असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया। यहां उन्होंने कई पाठ्यक्रमों को पढ़ाया, एमएससी और पीएचडी के छात्रों के गाइड बने और “क्वांटम फिजिक्स” किताब लिखा। इसके साथ ही प्रयोगात्मक परमाणु भौतिकी (एक्सपेरिमेंटल नुक्लेअर फिजिक्स) में अनुसंधान किया। आईआईटी कानपुर में अपने नियमित कार्य के अलावा, उन्होंने शिक्षा और समाज के लाभ के लिए स्कूल ‘फिजिक्स प्रोजेक्टशिक्षा सोपान और उत्साही फिजिक्स टीचर्स‘ जैसे कई सामाजिक-शिक्षा की पहल किया।

No comments:

Post a Comment