Thursday, 18 May 2017

| मैंने देखा है उन्हें ||
एक प्रकृति पुत्र कैसा होता है 
मैंने 
कहीं कहानियों में गढ़ा हुआ 
किताबों में नहीं पढ़ा 
मैंने देखा हैं इन्हीं आँखों से
चिन्तन में विचार में
आचार में व्यवहार में
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उत्सवों में
हिन्दी-नदी महोत्सवों में
ताम्बे के लोटे से पानी पिलाते
माहुर की पत्तल में भोजन कराते
मैंने जाना है उन्हें बहुत निकट से
जल पर हाथ रखते हुए
नदी से बात करते हुए
मैंने देखा है उन्हें
स्वयंसेवक से कुशल संगठक
फिर नेता राजनेता
और सर्वोच्च शिखर छूते हुए
बड़नगर के सूरज को
बांद्राभान में ढलते हुए
और ढलते-ढलते भी
वह यादों के उजाले दे गया
अपनों से कह गया
किसी पत्थर पर
मत लिखना मेरा नाम काम
जिससे लोग मुझे याद करे
पर हाँ जहाँ मेरा शरीर गिरे
वहाँ एक पौधा रोप देना
उसे सींचना पालना
और अगली पीढ़ी को सौंप देना
और हाँ ....इतना ध्यान रहे
 उस पेड़ पर भी मेरा नाम न रहे |
|| प्रणाम Anil Madhav Dave जी _/\_ हो सके तो जल्दी आना ||
मोहन नागर

No comments:

Post a Comment