Wednesday, 17 May 2017

भारतीय सेना में “मुस्लिम रेजिमेंट” क्यों नहीं है, ऐसा क्या किया था मुसलमानो ने ? 

पंजाब रेजिमेंट, मद्रास रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, जट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, असाम रेजिमेंट, नागा रेजिमेंट इत्यादि तो मौजूद हैं मगर मुस्लिम रेजिमेंट नहीं है ..? आजादी के बाद से लेकर आज तक कोई भी ऐसी रेजिमेंट ही नहीं बनी? जिससे मुस्लिम समुदाय की पहचान अथवा नेतृतव दिखाई देता हो? ऐसा क्यूँ है? क्या भारतीय मुस्लिम देश के प्रति अपनी जान देने का जज्बा नहीं रखते? या वह भरोसे के लायक ही नहीं हैं? आज हम बताएँगे क्यूँ नहीं है “मुस्लिम रेजिमेंट” और क्या किया था ऐसा इस रेजिमेंट ने .
आज नहीं है अलग बात है मगर सन 65 तक होता था, मगर जब सन 65 में भारत- पाकिस्तान की पहली जंग हुई थी तो इस रेजिमेंट ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ने से साफ़ इंकार कर दिया, (बताने की जरुरत नहीं है क्यों?) लगभग बीस हज़ार मुस्लिम सेना ने पाकिस्तान के सामने अपने हथियार डाल दिए थे जिस वजह से उस वक्त भारत को काफि मुश्किलों सामना करना पड़ा था, क्यूंकि मुस्लिम राईफल्स और मुस्लिम रेजिमेंट के ऊपर बहुत ज्यादा यकीन कर के इनको भेजा गया था. इस वजह से इनकी पूरी की पूरी रेजिमेंट पर ही बैन लगा दिया गया,और पूरे रेजिमेंट को ही खत्म कर दिया गया, क्योंकि भारत की असली जंग तो हमेशा ही पाकिस्तान के साथ होती है, और फिर यदि जंग के अहम मौके पर आकर कोई रेजिमेंट जंग लड़ने से मना कर देगी फिर पाकिस्तान से जंग कैसे जीती जाएगी ?अगर आपको इस बात पर विश्वास ना हुआ हो तो यदि आपके घर में कोई बड़े- बुजुर्ग हों जो 65 के आस- पास सेना में रहें हों या सन 65 की जंग में भाग लिया हो, तो आप उनसे पूछ सकते हैं .. यकीन मानिए ये जानकार हमें भी बहुत बड़ा धक्का लगा था, कि ऐसे भी हमारी कोई रेजिमेंट कर सकती है क्या ? पर वो किसी ने कहा है ना कि “दुनिया में नामुकिन जैसी कोई चीज़ नहीं है”
1971 में पाकिस्तान के साथ फिर युद्ध हुआ उस वक्त सेना में एक भी मुस्लिम नहीं था उस वक्त भारत ने पाकिस्तान के नब्बे हज़ार सेना के हथियार डलवा कर उनको बंदी बना लिया था और लिखित तौर पर आत्मसमर्पण करवाया था!
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लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज इलाके के राजा खेड़ा गांव में 21 अप्रैल 2017 को आजादी के बाद पहली बार गांव वालों ने जाना बिजली क्या होती है.

इस गांव में बिजली एक महीने पहले पहुंची भी तो केंद्र सरकार की पंडित दीन दयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना के जरिए. इन गांवों में जाने के बाद पता चला आखिर बिजली नहीं होने का दर्द क्या होता है.

राजा खेड़ा गांव एक बुजुर्ग मिले, जिनकी जिंदगी बिना बिजली की गुजर गई. कहते हैं उम्र के इस पड़ाव पर आकर हमने एक महीने पहले बिजली नाम की क्या चीज होती है पहली बार देखा है. गांव में आज की तारीख में हर घर में पंखा और टीवी लग गया है.

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