Thursday, 18 May 2017

अच्छे दिन महसूस करने के लिए खोपड़ी में दिमाग तथा विषयो पर सतत निगाह रखने की जरुरत होती है ....................!!!

मोदी सरकार के पहले के दौर में नेहरु गांधी परिवार तथा कांग्रेस के लिए भारत के मिलिट्री सौदे मोटा कमीशन खाने का माध्यम हुआ करते थे .फिर चाहे पुराने हथियार खरीदना पड़े या उनकी डिलीवरी में दशको का समय ही क्यों न लग जाए ........................यही नहीं कई बार ऐसा भी हुआ की जब जागरूक विपक्ष ने ऐसे सौदों में कमीशन की बात को उठाया तो कांग्रेस ने अग्रिम भुगतान के बदले मिले कमीशन को डकारने के साथ सौदे कैंसिल भी किये थे ...............अब आते है लगभग तीस साल पहले के विषय पर जब राजीव गांधी ने विश्व की सबसे लम्बी मार करने वाली फील्ड गन '' सोपमा '' की बजाय स्वीडन की वोफोर्स को चुना था जिसमे कमीशन खाने के कारण राजीव गांधी की सरकार का पतन भी हुआ .उसके बाद देश में अटल सरकार को छोड़ कर ..परोक्ष या अपरोक्ष रूप से कांग्रेस की ही सरकारे रही लेकिन देश को वोफोर्स के बाद दूसरी फील्ड गन न मिल सकी .........फिर आया कारगिल का दौर और तब सीमा पर भारत के पास '' अन्धो में काना राजा '' जैसी सिर्फ वोफोर्स गन ही थी .जिनके जरिये ऊँचे पहाड़ो पर बैठे पाकिस्तानियों पर लाखो राउंड फायर किये गए थे .लेकिन फिर भी पाकिस्तानी घुसपैठिये हटाए नहीं जा सके थे .तभी वोफोस्र के गोले हो गए ख़तम और फिर तत्कालीन सरकार को साऊथ अफ्रीका की डेनियल कंपनी से ब्लैक में वोफोर्स के गोले , प्रति गोला 64000 की कीमत पर खरीदना पडा था ( यहाँ यह ध्यान देने योग्य है की कारगिल वोफोर्स की मदद से नहीं बल्कि तत्कालीन समय में इजरायल द्वारा उपलब्ध कराए गए लेजर गाईडेड बमों की मदद से जीता गया था )..........खैर अब आते है वर्तमान माहौल पर

तमाम तरह की खोज , रणनीतिक वार्ताओं , मूल्यांकन की लम्बी और जटिल प्रक्रिया को सरल करने के बाद मोदी सरकार ने 30 नबम्बर 2016 कोे भारतीय सेना के लिए 145 एम 777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्सर तोपों के लिए अमेरिका से 737 मिलियन डॉलर (लगभग 5000 करोड़ रुपये) की डील साइन की और एक साल के अन्दर ही ये तोपे भारत में जमीनी परिक्षण के लिए पहुँच चुकी है !!!

बोफोर्स के बाद पहली बार सेना को मिलीं M777 अल्ट्रा लाईट
होवित्जर तोपें..................!!!

बोफोर्स सौदे के बाद पहली बार भारतीय सेना में तोपों को शामिल किया गया है। अमेरिका से अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर तोप भारत आ गई हैं। पाकिस्तान से लगी सीमा पर रक्षा तैयारियों के लिहाज से सेना के लिए यह अहम घटनाक्रम है।

1986 में बोफोर्स तोपों की खरीद के बाद इसके सौदे में दलाली के आरोपों ने भारतीय राजनीति में इतना बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था कि नयी तोप खरीदने में करीब 3 दशक का वक्त लग गया। पिछले साल 26 जून को पहली बार जानकारी दी गई कि भारत 145 तोपों की खरीदारी करेगा।

नवंबर आते-आते भारत और अमेरिका के बीच इसके लिए डील हो गई। भारतीय सेना के लिए 145 तोपों की खरीद का करार किया गया था। अमेरिकी कंपनी बीएई सिस्टम्स को इन तोपों को बनाने का जिम्मा सौंपा गया।

बुधवार को पहली 2 तोपें भारत आईं। इन्हें जल्द राजस्थान के पोखरण भेजा जाएगा। वहां भारतीय गोला-बारूद से इनकी टेस्टिंग की जाएगी। इसके बाद 3 तोपों को सितंबर में लाने का प्लान है। फिर 2019 के मार्च से लेकर 2021 के जून के बीच हर महीने 5-5 तोपें आएंगी।

इन तोपों की रेंज 24 से 40 किलोमीटर है। इनके अलावा मेक इन इंडिया के तहत 100 वज्र तोपों के निर्माण पर भी हाल ही में करार हुआ है।

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बस यूँ ही ...................... जासूसी उपकरण इतने छोटे भी होते है ...............साथ में डिजिटल वीडियो कैमरा , जीपीएस + सेटेलाईट रिसीवर !!!
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कैबिनेट ने 10 परमाणु रिएक्टरों के निर्माण को मंजूरी दी.....!!!

भारत में घरेलू परमाणु उर्जा कार्यक्रम को तीव्र गति से आगे बढ़ाने और देश के परमाणु उद्योग को गति प्रदान करने की पहल करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10 स्वदेशी प्रेशराइज्ड हैवी वॉटर रिएक्टरों के निर्माण को मंजूरी प्रदान कर दी । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्ष में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। प्रत्येक रिएक्टर की क्षमता 700 मेगावाट होगी और इस तरह से कुल 10 इकाइयों की क्षमता 7000 मेगावाट होगी। इससे देश की परमाणु उर्जा उत्पादन क्षमता को काफी ताकत मिलेगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत केंद्र सरकार जब सत्ता में आने के तीन वर्ष पूरा करने जा रही है, ऐसे में भारत के परमाणु उर्जा क्षेत्र में यह अपने तरह की पहली परियोजना होगी जिसमें पूरी तरह से स्वदेशी स्तर पर 10 नई इकाइयों का निर्माण किया जायेगा । यह केंद्र सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत होगी।इन 10 रिएक्टर्स के माही बंसवाड़ा (राजस्थान), चुटका (मध्य प्रदेश), कैगा (कर्नाटक), गोरखपुर (हरियाणा) में बनने की संभावना है।

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कुछ शब्द पिता के नाम *

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माँ रोती है, बाप नहीं रो सकता, खुद का पिता मर जाये फ़िर
भी नहीं रो सकता, 
क्योंकि छोटे भाईयों को
संभालना है,
.
माँ की मृत्यु हो जाये भी वह
नहीं रोता क्योंकि बहनों को सहारा देना होता है,

पत्नी हमेशा के लिये साथ छोड जाये फ़िर भी
नहीं रो सकता,
.
क्योंकि बच्चों को सांत्वना
देनी होती है ।

देवकी-यशोदा की तारीफ़ करना
चाहिये,
लेकिन बाढ में सिर पर टोकरा उठाये वासुदेव को
नहीं भूलना चाहिये...

राम भले ही
कौशल्या का पुत्र हो लेकिन उनके वियोग में तड़प कर जान देने वाले
दशरथ ही थे ।

पिता की एडी़ घिसी हुई
चप्पल देखकर उनका प्रेम समझ मे आता है,
उनकी
छेदों वाली बनियान देखकर हमें महसूस होता है कि
हमारे हिस्से के भाग्य के छेद उन्होंने ले लिये हैं...

लड़की को गाऊन ला देंगे,
बेटे को ट्रैक सूट ला देंगे,
लेकिन खुद पुरानी पैंट पहनते रहेंगे ।

बेटा कटिंग पर
पचास रुपये खर्च कर डालता है और बेटी
ब्यूटी पार्लर में,
लेकिन दाढी़
की क्रीम खत्म होने पर एकाध बार
नहाने के साबुन से ही दाढी बनाने वाला पिता
बहुतों ने देखा होगा...

बाप बीमार नहीं पडता,
बीमार
हो भी जाये तो तुरन्त अस्पताल नहीं जाते,
डॉक्टर ने एकाध महीने का आराम बता दिया तो
उसके माथे की सिलवटें गहरी हो
जाती हैं,
क्योंकि लड़की की
शादी करनी है।

बेटे की शिक्षा
अभी अधूरी है...
आय ना होने के बावजूद बेटे-बेटी को मेडिकल / इंजीनियरिंग
में प्रवेश करवाता है..
.
कैसे भी "ऎड्जस्ट" करके बेटे
को हर महीने पैसे भिजवाता है.. (वही
बेटा पैसा आने पर दोस्तों को पार्टी देता है) ।

किसी भी परीक्षा के परिणाम
आने पर माँ हमें प्रिय लगती है, क्योंकि वह
तारीफ़ करती है,
पुचकारती है,
हमारा गुणगान करती है,
.
लेकिन चुपचाप जाकर
मिठाई का पैकेट लाने वाला पिता अक्सर बैकग्राऊँड में चला जाता है...

पहली-पहली बार माँ बनने पर
स्त्री की खूब मिजाजपुर्सी
होती है,
.
खातिरदारी की जाती है (स्वाभाविक भी है..आखिर उसने कष्ट उठाये हैं),
.
लेकिन अस्पताल के बरामदे में बेचैनी
से घूमने वाला,

ब्लड ग्रुप की मैचिंग के लिये अस्वस्थ,
.
दवाईयों के लिये भागदौड करने वाले बेचारे बाप को सभी
नजरअंदाज कर देते हैं... ठोकर लगे या हल्का सा जलने पर
"ओ..माँ" शब्द ही बाहर निकलता है,

लेकिन बिलकुल
पास से एक ट्रक गुजर जाये तो "बाप..रे" ही मुँह से
निकलता है ।

दुनियाँ के हर पिताजी को समर्पित

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