Sunday, 23 July 2017


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जिनका भी बहिष्कार हुआ उनके कुकर्मों के कारण हुआ ...
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आज तक भारत के हजारों वर्षों के इतिहास मर एक भी व्यक्ति का जातिगत शोषण नहीं हुआ; एक भी व्यक्ति का बहिष्कार जातिगत आधार पर नहीं हुआ; जिनका भी बहिष्कार हुआ उनके कुकर्मों के कारण हुआ फिर वे हिन्दू समाज के लिए वैसे ही हो गए जैसे कि आज अमेरिका के लिए नॉर्थ कोरिया।
वर्तमान समय मे बना हुआ जातिगत आरक्षण तब तक खत्म नहीं हो सकता जब तक इन काल्पनिक शोषण की कहानियों का झूठ सामने नहीं लाया जाता। शोषण की कहानियां उसी तर्ज पर बनीं है जैसे कि आर्यन-द्रविड़ियन और कांग्रेस द्वारा बनाई भगवा आतंकवाद की कहानियां...
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राजस्थान के दलितों में एक जाति होती है "बेड़िया". इनका पुश्तैनी काम होता है अपने परिवार की महिलाओं से वेश्यावृत्ति करवाना।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं भांग खा के यह पोस्ट लिख रहा हूँ पर इसकी सत्यता आप इस पर गूगल करके जान सकतें हैं, कई लिंक मिलेंगे; बेड़िया लोगों की पुश्तैनी वेश्यावृत्ति पर यू ट्यूब पर वीडियो और दूरदर्शन की डाक्यूमेंट्री भी देख सकतें हैं।
अगर आप बेड़ियों के इलाके में शाम के समय जाएं तो आपको नुक्कड़ या फुटपाथ पर अकेले खड़े हुए बेड़िया दलित मिल जाएंगे जो अपनी बहन, पत्नी या बेटी के लिए रात का ग्राहक तलाश रहे होतें हैं। बेड़िये, अपनी लड़कियों को अच्छे से खिला पिला कर रखतें है क्योंकि लड़की जितनी भरी-भरी, गदरायी होगी; उसका मार्केट में रेट और अच्छा मिलेगा।
बेड़िया लड़कियां वेश्यावृत्ति अपनी माँ से सीखतीं है, उनकी माँ अपनी नानी से और ये क्रम सैकड़ों सालों से चलता आ रहा है। बेड़िया समाज से हिंदुओं की कोई जाति रोटी-बेटी का संबंध नहीं रखती, यहाँ तक कि असमानता का रोना रोने वाली दलितों की बाहुबली जातियाँ मीणा, जाटव, चमार, पासी इत्यादि जातियाँ भी अपनी बेटी बेड़ियों को देने में घबरातीं है क्योंकि इन्हें पता है इनकी बेटी को अगले दिन से कोठे पर बिठा दिया जाएगा और उसके बेड़िया पति, ससुर और देवर बाजार में उसका रेट लगाने लगेंगे।
बेड़ियों की इन्ही हरकतों के कारण ये हिन्दू समाज से बहिष्कृत रहे, पर अम्बेडकर ने इन्हें मनुस्मृति द्वारा अछूत बनाना प्रचारित किया।
बहिष्कृत जातियों की बात सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में एक दलित जाति है "बावरिया". यह ब्रिटिश सरकार के समय से आपराधिक जाति (criminal tribe) है। यह जाति अपहरण, हत्या, चोरी, डकैती, लूटपाट, बलात्कार आदि जैसी घटनाओं के लिए कुख्यात है।
लखनऊ-दिल्ली हाईवे पर यह जाति अभी लूटपाट भी कर रही है। ये सड़कों कर कीलें बिछा देतें है; उसके बाद कोई बस या कार पंचर टायर की वजह से आगे जा के रूकती है तो यात्रियों को बंधक बना के लूटते हैं और महिलाओं, लड़कियों के साथ बलात्कार करतें है। किसी पुरुष ने रोकना चाहा तो उसकी हत्या कर देतें है। बहुचर्चित बुलंदशहर गैंग रेप भी बावरिया गिरोह के दलितों ने किया था जिसमे एक महिला और 14 वर्ष की बेटी का गैंगरेप किया था। अगर आप कभी भी लखनऊ-दिल्ली हाईवे पर अपनी कार से जाएं तो सुनिश्चित कीजिये कि कार की टंकी में पेट्रोल फुल है और कार अच्छी कंडीशन में हैं। क्योंकि आपकी कार यदि हाईवे पर रोक गई तो फिर आपके साँसों की डोर बावरिया गिरोह के भीमटों के हाथ मे होगी।
बावरिया, अपनी आपराधिक प्रवृत्ति कर कारण वर्तमान समय मे भी बहिष्कृत जाति है।
अब महाराष्ट्र आतें है। देश में सबसे महत्वपूर्ण बहिष्कार यदि किसी जाति का हुआ है तो वे महाराष्ट्र के महार लोग हैं, माने अम्बेडकर की जाति। रोचक बात ये है कि न तो ये जाति बावरिया की तरह लूटपाट करती थी, न ही बावरिया की तरह वेश्यावृत्ति, फिर भी बुरी तरह बहिष्कृत हुए। महार एक सवर्ण क्षत्रिय जाति हुआ करती थी। महारों के हाथ मे चौकीदारी, राज्य के महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा, काफिलों और खजाने का जिम्मा महारों के पास होता था। महारों की समाज मे बहुत इज़्ज़त थी। जब कभी दो लोगों के बीच भूमि विवाद होता था तो इसे सुलझाने के लिए महार आते थे और इनकी कही बात अंतिम होती थी। महारों के लिए परिस्थितियां तब बदल गईं जब इन्होंने जमीन के लालच में अंग्रेजी सेना के साथ मिल कर 1 जनवरी 1818 को पुणे के कोरेगांव में 28,000 पेशवा सैनिकों को मार दिया। आज भी पुणे में भीमा कोरेगांव की मीनार, महारों के देशद्रोह और अपराध की गवाही दे रही है। इसके युद्ध के लिए महारों में कोई पछतावा नही बल्कि आज भी हर बरस 1 जनवरी को कई महार वहां उसी युद्ध के लिए शौर्य दिवस मनाने के लिए इकट्ठा होतें हैं।
इस युद्ध के बाद महारों को सभी मराठी लोगों ने बहिष्कृत कर दिया। दूध वाले ने दूध देने बंद, पुजारी ने मंदिर में घुसना बंद, अध्यापकों ने इन्हें शिक्षा देना बंद कर दिया, कुएं से पानी भरना बंद कर दिया।
तत्कालीन ईसाई मिशनरी John Muir, जो संस्कृत का विद्वान भी था, उसने महारों के साथ मिल कर मनु स्मृति को एडिट किया और इतिहास बना कर ये प्रचारित किया गया कि महारों का बहिष्कार मनु स्मृति द्वारा हुआ है।
1920 में अम्बेडकर ने महारों के भीमा कोरेगांव युद्ध में बात छुपाई और अपनी जाति के बहिष्कार का आरोप ब्राह्मणों पर लगा के ब्राह्मण विरोध (Anti Brahminism) को संस्थागत रूप दिया और इसके बात दलित आंदोलन ने राजनैतिक रूप लिया। ये वे बातें हैं जो इतिहास के पन्नों से मिटा दीं गईं हैं। हिन्दू संगठन भी भाईचारे के चक्कर इन सब बातों को उजागर नहीं करते।
आज तक भारत के हजारों वर्षों के इतिहास मर एक भी व्यक्ति का जातिगत शोषण नहीं हुआ; एक भी व्यक्ति का बहिष्कार जातिगत आधार पर नहीं हुआ; जिनका भी बहिष्कार हुआ उनके कुकर्मों के कारण हुआ फिर वे हिन्दू समाज के लिए वैसे ही हो गए जैसे कि आज अमेरिका के लिए नॉर्थ कोरिया।
वर्तमान समय मे बना हुआ जातिगत आरक्षण तब तक खत्म नहीं हो सकता जब तक इन काल्पनिक शोषण की कहानियों का झूठ सामने नहीं लाया जाता। शोषण की कहानियां उसी तर्ज पर बनीं है जैसे कि आर्यन-द्रविड़ियन और कांग्रेस द्वारा बनाई भगवा आतंकवाद की कहानियां।
कलम उठाइये और झूठे इतिहास को बदल दीजिये..!!
15 जुलाई 
 

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