जिन बिमारियों का इलाज डॉक्टर भी नहीं कर पा रहे उनका इलाज जोंक से किया जा रहा है...
दादी-नानी की कहानियों में खून चूसने के लिए कुख्यात माने जाने वाले जीव जोंक का इस्तेमाल असाध्य बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है। जोंक के खून चूसने की स्वाभाविक खूबी के साथ सामंजस्य बैठाते हुए चिकित्सीय जगत में इसका उपयोग स्वच्छ रक्त के बजाय दूषित रक्त को निकालने में किया जा रहा है।
नॉएडा स्थित डा. चौहान आयुर्वेद के चिकित्सा डॉ. अक्षय चौहान ने बताया कि जोंक से उपचार की विधि को आयुर्वेद में जलौकावचारण विधि की संज्ञा दी जाती है। चिकित्सा विज्ञान में इस विधि को लीच थैरेपी भी कहा जाता है। लीच थैरेपी से डायबिटिक फुट, गैंगरिन, सोरायसिस, नासूर समेत कई बीमारियों का सफलता से इलाज हो रहा है। डीप वेन थ्रंबायोसिस जिसमें पैर कटवाने की नौबत आ जाती है, में यह विधि कारगर है। डॉ. अक्षय चौहान जी ने बताया कि पिछले कुछ वर्ष के दौरान इस विधि से अनेको बहुत मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज हो चुका हैक्या है लीच थैरेपी
जोंकों को प्रभावित अंगों के ऊपर छोड़ दिया जाता है। जोंक अपने मुंह से ऐसे एंजाइम का स्राव करते हैं जो व्यक्ति को यह अहसास ही नहीं होने देते कि शरीर से खून चूसा जा रहा है। कृमि प्रजाति के इस जीव की सबसे बड़ी खासियत इसके स्लाइवा में मिलने वाला हिरुडिन नामक एंजाइम है, जो रक्त में थक्का नहीं बनने देता है। इसके स्राव से स्वच्छ रक्त का प्रवाह तेजी से होता है। जोंक दूषित रक्त को ही चूसती है। एक बार में जोंक शरीर से 5 मिलीलीटर खून चूस लेती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक प्रभावित अंग से दूषित रक्त को पूरी तरह चूस नहीं लिया जाता। दूषित रक्त की समाप्ति से स्वच्छ रक्त प्रवाह होता है जिससे जख्म जल्दी भरते हैं।
क्यों हो रही लोकप्रिय
डायबिटिक मरीजों के लिए शल्य क्रिया काफी खतरनाक मानी जाती है। इसकी वजह जख्मों को भरने में सामान्य के मुकाबले अत्यधिक समय लगता है। इस बीच कई बीमारियों के खतरे की आशंका बन जाती है। लीच थैरेपी इन सब मुसीबतों से निजात दिलाती है। और जख्म भी जल्दी भरता है.
रखा जाता है खास ख्याल
इंफेक्शन न हो, इसके लिए एक जोंक का एक ही मरीज के लिए प्रयोग किया जाता है। दूषित रक्त चूसने के बाद इनको उल्टी कराई जाती है, ताकि ये अपने मुंह से दूषित रक्त निकाल दें।
देखिए डॉक्टर ने कैसे इस मरीज का इलाज किया
यह मरीज पिछले 8 महीने से पैर के जख्म से पीड़ित था। लगातार एंटीबायोटिक (Antibiotic) के प्रयोग के बाद भी बिलकुल भी आराम नहीं हो रहा था। और जख्म की संख्या बढ़ती जा रही थी। पैर में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है अब तो चल भी नहीं सकता। पैर का जख्म वाला हिस्सा काला हो गया था, इस मरीज की Blood Report बिलकुल नार्मल है। एलोपैथिक डॉक्टर ने बताया कि यह SCHAMBERG DISEASE WITH PUNCHED OUT ULCER है।10 दिन पहले ये मरीज डॉक्टर चौहान जी के पास आया । उन्होंने इसे आचार्य सुश्रुत के अनुसार “दुष्ट व्रण” (लीच थेरेपी) की चिकित्सा प्रारम्भ कर दी। पैर का कालापन लगभग 50% कम हो गया। 7 दिन के बाद 50 ml रक्त निकाला। रक्त निकलते ही अगले दिन मरीज ने बताया कि पैर का दर्द बिल्कुल बंद हो गया। आज इस मरीज को 13 ज़ोक (leech) लगाई। लगभग 300 ml ब्लड निकाला। मरीज के अनुसार 10 दिन में उसकी 8 महीने पुरानी बीमारी में 50% आराम हो गया हैं।
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