Sunday, 9 July 2017

सिन्धु घाटी की लिपि :
 क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार नहीं चाहते थे इसे पढ़ा जाए...

हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है , हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश ( सिन्धु सरस्वती क्षेत्र ) था . जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था . वैदिक धर्म को मानने वाले कही बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे . आर्य – द्रविड़ जैसी कोई भी दो प्रथक जातियाँ नहीं थी जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो.

महान इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था – “विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है – तो वह भारत का इतिहास ही है “ .
भारतीय इतिहास का प्रारंभ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है , इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है . बताया जाता है की वर्तमान सिधु नदी के तटों पर 3500 BC में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी . मोहनजोदारो , हड़प्पा , कालीबंगा , लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे . पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध , पंजाब , राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था , किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक , पूरा पाकिस्तान व अफगानिस्तान तथा ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है . अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है .
इस प्राचीन सभ्यता की सीलों , टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है .इतिहासकारों का दावा है की यह लिपि अभी तक अज्ञात है और पढ़ी नहीं जा सकी . जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे – इजिप्ट , चीनी , फोनेशियाई , आर्मेनिक, सुमेरियाई , मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं .
आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है.
सिन्धु घाटी की लिपि को जान बूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए. भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी.
आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में ? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए ?
अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे- –
1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी . इजिप्ट चीनी , रोमन , ग्रीक , आर्मेनिक, सुमेरियाई , मेसोपोटामियाई से भी पुरानी . जिससे पता चलेगा कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है . भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा.
2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है.
3. अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी, वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा.
कुछ फर्जी इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्टीयन भाषा से , कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा और तो और कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे. ये सारे प्रयास असफल साबित हुए.
सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है – सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26 , देवनागरी में 52 आदि मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है की इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है , जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है. लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया.
भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है . इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी . यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी . संस्कृत , पाली , प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है . सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया . सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और सम्पूर्ण भारत में लगाये गए . सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताये है . साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है . इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सिद्धार्थ काक और इरावाथम महादेवन ने किया .
सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या ) , कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं . अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है . विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा.
जिस प्रकार सिन्धु घाटी की लिपि पशु के मुख की ओर से अथवा दाए से बाए लिखी जाती है उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाए से बाए लिखी जाती है . सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं , इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं , लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है . और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है . अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि का पता लगा सकते हैं.
ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे – श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि
निष्कर्ष यह है कि –
सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है
सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है .
उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था .
सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे .
वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है , 7000 BC से भी अधिक पुराना .
हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है , हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश ( सिन्धु सरस्वती क्षेत्र ) था . जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था . वैदिक धर्म को मानने वाले कही बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे . आर्य – द्रविड़ जैसी कोई भी दो प्रथक जातियाँ नहीं थी जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो.
#विट्ठलव्यास

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