महात्मा गांधी हिन्दू धर्म को छोड़ना चाहते थे ...
लगभग 150 साल पहले 30 जून 1867 को गुजरात में एक संत का जन्म हुआ, जिन्हें गुजरात के लोग महात्मा गांधी का आध्यत्मिक गुरु मानते थे। जिनका नाम था- संत श्रीमद राजचंद्र। इन्हें कई लोग जैन धर्म का 25 वां तीर्थंकर भी मानते थे।श्रीमद राजचंद्र का जन्म गुजरात में मोरबी के निकट एक गांव में हुआ था। उनका जन्म एक जौहरी परिवार में हुआ था। उनके जन्म का नाम लक्ष्मी नंदन रखा गया था लेकिन चार साल बाद उनके पिता ने उनका नाम बदलकर रायचंद कर दिया। बाद में वे खुद को राजचन्द्र कहने लगे, जो रायचंद का संस्कृत रूपांतरण था। वह उम्र में गांधी से दो वर्ष बड़े थे और गांधी की ही तरह गुजराती बोलते थे।
राजचन्द्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पूर्व जन्म की कई बातें याद थी। उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज थी। इसलिए कुछ लोग उन्हें जैन धर्म का 25वां तीर्थंकर मानने लगे थे, लेकिन वो जैन धर्म के मुनि के तौर पर कम, और आध्यत्म का ज्ञान देने वाले संत के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध हुए।
श्रीमद राजचंद्र और महात्मा गांधी की मुलाकात
महात्मा गांधी से श्रीमद राजचंद्र की मुलाक़ात साल 1981 में हुई थी। गांधी उनके शास्त्र ज्ञान और अध्यात्म चिंतन की गहरी समझ से अत्यंत प्रभावित हुए। श्रीमद राजचंद्र के धार्मिक ज्ञान और अध्यात्म चिंतन का जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में भी किया था। महात्मा गांधी जी ने लिखा है कि ”रायचंद भाई के विचारों ने मेरे आध्यत्मिक जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला।” गांधी जी प्यार से राजचंद्र को रायचंद भाई कहते थे। अपनी अफ्रीका प्रवास के समय गांधी जी ने गुजराती भाइयों को रायचंद की आत्म सिद्धि किताब पढ़ने की सलाह दी थी।
महात्मा गांधी से श्रीमद राजचंद्र की मुलाक़ात साल 1981 में हुई थी। गांधी उनके शास्त्र ज्ञान और अध्यात्म चिंतन की गहरी समझ से अत्यंत प्रभावित हुए। श्रीमद राजचंद्र के धार्मिक ज्ञान और अध्यात्म चिंतन का जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में भी किया था। महात्मा गांधी जी ने लिखा है कि ”रायचंद भाई के विचारों ने मेरे आध्यत्मिक जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला।” गांधी जी प्यार से राजचंद्र को रायचंद भाई कहते थे। अपनी अफ्रीका प्रवास के समय गांधी जी ने गुजराती भाइयों को रायचंद की आत्म सिद्धि किताब पढ़ने की सलाह दी थी।
जब महात्मा गांधी अपनाने वाले थे इस्लाम या ईसाई धर्म
महात्मा गांधी के जीवन में एक बार ऐसा दौर आया, जब उनका रुझान ईसाई और इस्लाम धर्म की ओर ज्यादा होने लगा। एक बार तो उनके मन में धर्म परिवर्तन का भी ख्याल आया, लेकिन उन्होंने यह फैसला लेने से पहले श्रीमद राजचंद्र से सलाह लेना उचित समझा। इस पर राजचंद्र ने कहा कि वह धीरज रखे और हिन्दू धर्म का अध्ययन करे।
महात्मा गांधी के जीवन में एक बार ऐसा दौर आया, जब उनका रुझान ईसाई और इस्लाम धर्म की ओर ज्यादा होने लगा। एक बार तो उनके मन में धर्म परिवर्तन का भी ख्याल आया, लेकिन उन्होंने यह फैसला लेने से पहले श्रीमद राजचंद्र से सलाह लेना उचित समझा। इस पर राजचंद्र ने कहा कि वह धीरज रखे और हिन्दू धर्म का अध्ययन करे।
गांधी ने अपनी किताब में लिखा है- ”उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि तुम जिस तरह के धार्मिक विचारों को अपनाना चाहते हो वह सभी हिन्दू धर्म में निहित है। उनके इन विचारों से मेरे हृदय को बहुत शांति मिली, तब आप समझ सकते हो, रायचन्द भाई मेरे लिए क्या महत्व रखते थे।”
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