बंटवारे से पहले मीरपुर (जो अब पाकिस्तान में है) की रहने वाली हरभजन कौर की यह दर्दनाक कहानी बाल के. गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तक
फॉरगॉटन एट्रोसिटीज़: मेमोरीज़ ऑफ़ अ सर्वाइवर ऑफ़ द 1947 पार्टीशन ऑफ़ इंडिया का अंश है। इस पुस्तक में गुप्ता ने मीरपुर में हुए नरसंहार से बच निकले लोगों के भुला देने वाले अनुभव लिखे हैं। गुप्ता खुद भी उस नरसंहार से बचने वालों में से एक हैं।
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक़्त मीरपुर शहर कश्मीर रियासत का हिस्सा था। यहां करीब 18 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। यही नहीं, 5 हजार से अधिक महिलाओं को अगवा कर खाड़ी के देशों और पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में 10-20 रुपयों में बेच दिया गया।
मीरपुर में स्थित राम मंदिर
27 अक्टूबर 1947 को मीरपुर रियासत का विलय भारत में होने की घोषणा की गई थी, लेकिन उससे पहले ही पाकिस्तान ने मीरपुर और उसके आस-पास वाले शहरों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था।
यह क्षेत्र सिर्फ़ कश्मीर के सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के सहारे था। तनाव बढ़ता जा रहा था। पर भारत सरकार कश्मीर के मामले में दखल नहीं देना चाहती थी।
जनसंहार का एक दृश्य
बाल के गुप्ता के इस पुस्तक के मुताबिक, कश्मीर में मीरपुर से एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिला। उनसे वहां बिगड़ रहे हालात की चर्चा की गई, लेकिन भारत की तरफ से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।इसके मुताबिक, यह प्रतिनिधिमंडल महात्मा गांधी से भी मिला था, लेकिन गांधीजी ने कहा कि मीरपुर में बर्फ पड रही है, इसलिए वहां सेना को नहीं भेजा जा सकता। जबकि, हकीकत यह थी कि मीरपुर में कभी बर्फ पड़ती ही नहीं।
दंगो से पहले की मीरपुर शहर की तस्वीर
मीरपुर के निवासी खुद को भारत का हिस्सा मान रहे थे। इसके बावजूद उन्हें मदद नहीं पहुंच सकी थी।
पाकिस्तान में स्थित मीरपुर खास
उसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह मानवता के इतिहास पर कालिख है। 25 नवबंर को पाकिस्तानी कबीलाई सेना ने मीरपुर पर धावा बोल दिया । पाकिस्तान की फौज को जो भी मिला, उसका कत्लेआम कर दिया। जान बचाने के लिए हज़ारों की तादात में लोग दूसरे सुरक्षित स्थानों की तरफ पलायन कर गए। इधर पाकिस्तानी सेना ने लूटपाट मचाना शुरू कर दिया।
पाकिस्तानी सेना ने चौतरफ़ा घेराबंदी कर रखी थी। किसी को भी नहीं बख्शा गया।
नरसंहार की कहानी कहती लाशों के ढेर
पाकिस्तानी फौज करीब पांच हजार युवा लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर पाकिस्तान ले गई। इन्हें बाद में मंडी लगाकर बेच दिया गया।
आज भले ही मीरपुर पाकिस्तान के हिस्से में हैं, लेकिन इस नरसंहार का जख्म आज भी हिन्दुस्तान के दिल में है।
फॉरगॉटन एट्रोसिटीज़: मेमोरीज़ ऑफ़ अ सर्वाइवर ऑफ़ द 1947 पार्टीशन ऑफ़ इंडिया का अंश है। इस पुस्तक में गुप्ता ने मीरपुर में हुए नरसंहार से बच निकले लोगों के भुला देने वाले अनुभव लिखे हैं। गुप्ता खुद भी उस नरसंहार से बचने वालों में से एक हैं।
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक़्त मीरपुर शहर कश्मीर रियासत का हिस्सा था। यहां करीब 18 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। यही नहीं, 5 हजार से अधिक महिलाओं को अगवा कर खाड़ी के देशों और पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में 10-20 रुपयों में बेच दिया गया।
मीरपुर में स्थित राम मंदिर
27 अक्टूबर 1947 को मीरपुर रियासत का विलय भारत में होने की घोषणा की गई थी, लेकिन उससे पहले ही पाकिस्तान ने मीरपुर और उसके आस-पास वाले शहरों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था।
यह क्षेत्र सिर्फ़ कश्मीर के सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के सहारे था। तनाव बढ़ता जा रहा था। पर भारत सरकार कश्मीर के मामले में दखल नहीं देना चाहती थी।
जनसंहार का एक दृश्य
बाल के गुप्ता के इस पुस्तक के मुताबिक, कश्मीर में मीरपुर से एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिला। उनसे वहां बिगड़ रहे हालात की चर्चा की गई, लेकिन भारत की तरफ से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।इसके मुताबिक, यह प्रतिनिधिमंडल महात्मा गांधी से भी मिला था, लेकिन गांधीजी ने कहा कि मीरपुर में बर्फ पड रही है, इसलिए वहां सेना को नहीं भेजा जा सकता। जबकि, हकीकत यह थी कि मीरपुर में कभी बर्फ पड़ती ही नहीं।
दंगो से पहले की मीरपुर शहर की तस्वीर
मीरपुर के निवासी खुद को भारत का हिस्सा मान रहे थे। इसके बावजूद उन्हें मदद नहीं पहुंच सकी थी।
पाकिस्तान में स्थित मीरपुर खास
उसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह मानवता के इतिहास पर कालिख है। 25 नवबंर को पाकिस्तानी कबीलाई सेना ने मीरपुर पर धावा बोल दिया । पाकिस्तान की फौज को जो भी मिला, उसका कत्लेआम कर दिया। जान बचाने के लिए हज़ारों की तादात में लोग दूसरे सुरक्षित स्थानों की तरफ पलायन कर गए। इधर पाकिस्तानी सेना ने लूटपाट मचाना शुरू कर दिया।
पाकिस्तानी सेना ने चौतरफ़ा घेराबंदी कर रखी थी। किसी को भी नहीं बख्शा गया।
नरसंहार की कहानी कहती लाशों के ढेर
पाकिस्तानी फौज करीब पांच हजार युवा लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर पाकिस्तान ले गई। इन्हें बाद में मंडी लगाकर बेच दिया गया।
आज भले ही मीरपुर पाकिस्तान के हिस्से में हैं, लेकिन इस नरसंहार का जख्म आज भी हिन्दुस्तान के दिल में है।
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