Wednesday, 19 July 2017

अशोक से भी महान वो राजा, जिसे हिंदुस्तान ने भुला दिया

कनिष्क प्रथम. कुषाण वंश का राजा. जिसे कनिष्क महान भी कहते हैं. जिसका साम्राज्य बैक्ट्रिया से लेकर पटना तक फैला था. राजधानी गांधार थी. साम्राज्य में मथुरा और कपीसा जैसे बड़े शहर थे. बौद्ध धर्म को मानता था. उसकी इसी लगन से उस ज़माने का सिल्क रूट निकला था, जिसे चीन आज फिर से बनवा रहा है. 78 ईस्वी में कनिष्क राजा बना था, जिसे शक संवत का पहला साल माना गया. पर इतिहास तो इतिहास है. समय-समय पर बदलता रहता है. कई जगह ये भी कहा जाता है कि कनिष्क 127 ईस्वी में राजा बना था. जो भी हो, ये राजा बड़ा ही प्रतापी था. पर इसके बारे में बात बड़ी कम होती है. अशोक, हर्षवर्धन, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य और अकबर में ही लोग उलझ कर रह जाते हैं. पर कनिष्क का साम्राज्य भी इन लोगों के साम्राज्य से कम नहीं था. बल्कि ज्यादा विविधता वाला था.
कनिष्क का साम्राज्य उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर से होते हुए पटना तक था. कश्मीर में उसके नाम पर शहर भी था: कनिष्कपुर. आज भी इस जगह पर एक स्तूप का कुछ हिस्सा है. माना जाता है कि ये स्तूप कनिष्क का था.
कनिष्क ने पूरी कोशिश की थी कि दक्षिण एशिया और रोम के बीच जमीन और समुद्र दोनों से व्यापार हो.
कनिष्क ने अपने नाम से सोने के सिक्के चलवाए थे. सिक्कों पर इंडिया, ग्रीक, ईरान और दूसरी जगहों के देवी-देवताओं की तस्वीर होती थी. मतलब धर्म को लेकर कोई विशेष झंझट नहीं थी
सिक्कों पर ही कनिष्क की तस्वीर मिलती है. लम्बे कोट और ट्राउजर पहने हुए. और लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान ने अंग्रेजों को देख ये सब पहनना सीखा था. हालांकि सिक्कों पर तो तस्वीर में कनिष्क के कंधे से आग-वाग भी निकलती है. वो सच में तो नहीं होता होगा.
फोटो में कनिष्क के पास एक बड़ी सी तलवार रहती है. कई में ये देखा जाता है कि कनिष्क पूरी तैयारी कर रहा है बलि देने के लिए.
कनिष्क की पूरी ड्रेस पहने हुए मूर्ति काबुल के म्यूजियम में थी. पर तालिबान ने म्यूजियम के साथ सब उड़ा दिया.
बहुत सारे सिक्कों पर ग्रीक में लिखा हुआ है: ΒΑΣΙΛΕΥΣ ΒΑΣΙΛΕΩΝ ΚΑΝΗϷΚΟΥ. पढ़े-लिखे लोग कहते हैं कि इसमें ग्रामर की बड़ी गलतियां हैं.
एक जगह ΟΗϷΟ भी लिखा हुआ है. इसका मतलब शिव होता है.
कनिष्क विदेशी था. यहां आकर उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था. कश्मीर में मीटिंग भी कराई. उस मीटिंग का हेड वही था. अश्वघोष और वसुमित्र उसके अध्यक्ष बने थे. इसी मीटिंग में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान में टूट गया था.
महात्मा बुद्ध की बड़ी स्पेशल मूर्तियां बनीं कनिष्क के वक़्त. 32 प्रतीकों वाली.
कनिष्क ने गंधार कला का विकास किया. ग्रीक, रोमन और इंडियन आर्ट मिलाकर एक बढ़िया फ्यूजन तैयार किया गया.
पेशावर में कनिष्क ने एक बड़ा सा स्तूप बनवाया था. 286 फीट व्यास का. चीन के घुमंतू यात्री लिखते हैं कि ये 600 फीट ऊंचा था. और इस पर तरह-तरह के जेवरात लगे हुए थे. ये एक कई मंजिला इमारत की तरह था.
बुद्धिस्ट किताबों में एकदम अशोक की कहानी की माफिक लिखा गया है कनिष्क के बारे में भी. कि पहले कनिष्क गरम दिमाग का, अड़ियल राजा था. पर बौद्ध धर्म अपनाने के बाद ये शांत दिमाग का उदार राजा बन गया. एक बौद्ध भिक्षु ने अपनी ताकत से कनिष्क को नरक के दर्शन करा दिए थे. कनिष्क डर के रोने लगा. और बदल गया
ये भी लिखा गया है कि बुद्ध ने कनिष्क के बारे में बहुत पहले भविष्यवाणी कर दी थी. कनिष्क ने इस भविष्यवाणी की लाज रखी. इतना काम किया कि उसे राजाओं का राजा कहा गया.


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