महमूद गजनवी के सत्रह
आक्रमणों का पूरा सच !!
आक्रमणों का पूरा सच !!
अंग्रेजो से प्रभावित भारतीय इतिहासकारों ने विदेशी आक्रमणकारियों
को सदैव महिमा मंडित किया है।
को सदैव महिमा मंडित किया है।
इसी परम्परा में गजनी के महमूद के द्वारा भारत किये गए सत्रह सफल
आक्रमणो की गौरव गाथा भी गायी गयी है।
आक्रमणो की गौरव गाथा भी गायी गयी है।
1025 ईसवीं में महमूद का सोलहवां बहु चर्चित प्रसिद्ध आक्रमण सोमनाथ
मन्दिर पर हुआ।
मन्दिर पर हुआ।
मन्दिर को लूटा गया लेकिन इस घटना को इतना तुच्छ समझा गया कि समसामयिक भारतीय इतिहास लेखकों हेमचन्द्र,सोमेश्वर और मेरुतुंग
आदि ने चर्चा तक न की।
आदि ने चर्चा तक न की।
कीर्ति कौमुदी,कुमार पाल चरित,सुकृत संकीर्तन आदि समसामयिक
पुस्तको में इसका उल्लेख भी नहीं हुआ।
पुस्तको में इसका उल्लेख भी नहीं हुआ।
गुजरात की सत्ता और सम्रद्धि में कुछ भी कमी नहीं आई,
क्यों कि 1026 ईसवी में ही भीमदेव प्रथम ने पाटन गुजरात पर
अधिकार कर लिया और 1026 में ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार
कर पुनः प्रतिष्ठित कर दिया।
क्यों कि 1026 ईसवी में ही भीमदेव प्रथम ने पाटन गुजरात पर
अधिकार कर लिया और 1026 में ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार
कर पुनः प्रतिष्ठित कर दिया।
और इस के सात वर्ष बाद ही 1032 में मंत्रीश्वर विमल देव शाह ने
आबू पर खर्च हुए ”भगवान आदि नाथ” का मंदिर बनवाया जिस में
” बारह करोड़ रूपये” खर्च हुए थे।
आबू पर खर्च हुए ”भगवान आदि नाथ” का मंदिर बनवाया जिस में
” बारह करोड़ रूपये” खर्च हुए थे।
आज फिर से देखते है सत्रह आक्रमण:
पहला आक्रमण 1000 ईसवीं में हुआ था।
यह किसी राजा पर नहीं,खैबर दर्रे के कुछ अरक्षित किलों पर
अधिकार किया था।
अधिकार किया था।
दूसरा आक्रमण......1001ईसवीं....
पेशावर में राजा जयपाल पर.....
पेशावर में राजा जयपाल पर.....
राजा जयपाल के 15-20 पुत्र पौत्र एवं परिजनों को बंदी बना लिया
गया,जिन्हें फिरौती में 250000 दीनार मिलने पर छोड़ा गया
उसके बाद भी 15000 हिन्दुओं का क़त्ल किया गया |
गया,जिन्हें फिरौती में 250000 दीनार मिलने पर छोड़ा गया
उसके बाद भी 15000 हिन्दुओं का क़त्ल किया गया |
अपमानित राजा ने आत्महत्या कर ली,.... क्यों ?....
यह खुला युद्ध नहीं था महमूद ने मित्रता का प्रस्ताव रख,
धोखे से राजा को और उसके परिजनों को बंदी बना लिया और
फिरौती मांगी |
यह खुला युद्ध नहीं था महमूद ने मित्रता का प्रस्ताव रख,
धोखे से राजा को और उसके परिजनों को बंदी बना लिया और
फिरौती मांगी |
महमूद के वापस जाते ही जयपाल के बेटे आनंद आनन्दपाल ने
गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया।
गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया।
तीसरा आक्रमण.....
1006 ईसवीं... मुल्तान ,
1006 ईसवीं... मुल्तान ,
सात दिन के घेरे के बाद वहां के शासक अबुल फतह को बंदी बनाकर मुल्तान पर
अधिकार कर लिया,और राजा जयपाल के पुत्र सुखपाल को
” नवाब शाह ” के नाम से राजा बनाया,महमूद के वापस जाते
ही सुखपाल ने इस्लाम त्याग अपने को स्वतंत्र राजा घोषित
कर दिया।
अधिकार कर लिया,और राजा जयपाल के पुत्र सुखपाल को
” नवाब शाह ” के नाम से राजा बनाया,महमूद के वापस जाते
ही सुखपाल ने इस्लाम त्याग अपने को स्वतंत्र राजा घोषित
कर दिया।
चौथा आक्रमण......
1008 ईसवीं.. मुल्तान..
1008 ईसवीं.. मुल्तान..
सुखपाल का विद्रोह
दमन किया।
दमन किया।
पांचवां आक्रमण.....
1008 ईसवीं पेशावर के राजा आनंद पाल के
नेत्रत्व में उज्जैन ग्वालियर कन्नौज कालिंजर के राजाओं ने
मोर्चा बनाया।
नेत्रत्व में उज्जैन ग्वालियर कन्नौज कालिंजर के राजाओं ने
मोर्चा बनाया।
ओहिंद के मैदान में सामना हुआ।
खोखरो ने भी हिन्दू राजाओं का साथ दिया।
खोखरो ने भी हिन्दू राजाओं का साथ दिया।
पहले धावे में ही खोखरों ने 5000 मुसलमानों को मार दिया।
महमूद की सेना भागने को ही थी की आनंद पाल का हाथी बिगड़
गया और भागने लगा,फिर भी दो दिन तक युद्ध चला ,
आनंद पाल पराजित हुआ।
गया और भागने लगा,फिर भी दो दिन तक युद्ध चला ,
आनंद पाल पराजित हुआ।
छठा आक्रमण......
1009 ईसवीं...
1009 ईसवीं...
नगरकोट काँगड़ा... छोटा राज्य,
हिन्दुओं द्वारा आत्मसमर्पण ......बड़ी लूट,मन्दिरों को लूटा गया।
हिन्दुओं द्वारा आत्मसमर्पण ......बड़ी लूट,मन्दिरों को लूटा गया।
इस लूट में महमूद को सात हजार सोने के दीनार,700 मन सोने
चांदी के बर्तन 200 मन सोना और 20 हीरे मिले।
चांदी के बर्तन 200 मन सोना और 20 हीरे मिले।
सातवाँ आक्रमण.....
1014 ईसवीं... में
थानेश्वर. पर आक्रमण,
मन्दिरों को लूटा गया।
1014 ईसवीं... में
थानेश्वर. पर आक्रमण,
मन्दिरों को लूटा गया।
आठवां आक्रमण......
1015 ईसवीं... में कश्मीर पर अभियान....
असफल आक्रमण- तौसी मैदान में महमूद ने डेरा डाल,महमूद
की बुरी हार हुई ....वह अस्त बस्त हालत में गजनी पहुँच पाया।
असफल आक्रमण- तौसी मैदान में महमूद ने डेरा डाल,महमूद
की बुरी हार हुई ....वह अस्त बस्त हालत में गजनी पहुँच पाया।
नवां आक्रमण......
1018-1019 मथुरा वृन्दावन और कन्नौज
मन्दिरों को लूटा गया।
मन्दिरों को लूटा गया।
दसवां आक्रमण......
1021 ईसवीं.. में फिर कश्मीर पर .....
असफल अभियान ... महमूद की बुरी हार हुई।
असफल अभियान ... महमूद की बुरी हार हुई।
11 वां आक्रमण......
1021-1022 ग्वालियर और कालिंजर असफल
अभियान --- मुस्लिम लेखक “ अबू गाडिर्जी” ने अपनी किताब”
जैनुल अकबर “में लिखा है कि 1019 में कालिंजर पर आक्रमण
में राजपूतों ने इतना प्रबल युद्ध किया की महमूद को उलटे पांव
वापस गजनी जाना पड़ा।
अभियान --- मुस्लिम लेखक “ अबू गाडिर्जी” ने अपनी किताब”
जैनुल अकबर “में लिखा है कि 1019 में कालिंजर पर आक्रमण
में राजपूतों ने इतना प्रबल युद्ध किया की महमूद को उलटे पांव
वापस गजनी जाना पड़ा।
1022 ईसवीं. में महमूद फिर इस हार का बदला लेने के लिए गजनी
से चला,रास्ते में ग्वालियर पर चार दिन चार रात घेरा डालने पर भी
जीत की सम्भावना न देख,शांति संधि (हार) कर वह कालिंजर के
लिए आगे बढ़ गया।
से चला,रास्ते में ग्वालियर पर चार दिन चार रात घेरा डालने पर भी
जीत की सम्भावना न देख,शांति संधि (हार) कर वह कालिंजर के
लिए आगे बढ़ गया।
कालिंजर का किला इतनी ऊंचाई पर था कि उस पर सीधे
आक्रमण करना संभव नहीं था न ही आधार के पत्थर काटकर
घुसा जा सकता था।
आक्रमण करना संभव नहीं था न ही आधार के पत्थर काटकर
घुसा जा सकता था।
गाडिर्जी आगे लिखता है कि महमूद ने विद्याधर को धन रत्न कपडे
औरतें “ भेट “ में भेजी और कई किलों पर बातचीत कर (अधिकार मान
कर ) गजनी प्रस्थान किया।
औरतें “ भेट “ में भेजी और कई किलों पर बातचीत कर (अधिकार मान
कर ) गजनी प्रस्थान किया।
यह मुस्लिम लेखको द्वारा अपने संरक्षकों को ” हारा हुआ” न दिखाने
का तरीका था।
का तरीका था।
महमूद को” दो बार” हराने के बाद विद्याधर ने खजुराहो
में कंडारिया महादेव का मंदिर बनवाया।
में कंडारिया महादेव का मंदिर बनवाया।
12वां,13वां,14वां और 15वां आक्रमण... कुछ विवरण नहीं मिलता।
सोलहवां आक्रमण------
1025 ईसवीं में महमूद का सोलहवां बहु
चर्चित आक्रमण सोमनाथ पर हुआ।
मन्दिर को लूटा।
चर्चित आक्रमण सोमनाथ पर हुआ।
मन्दिर को लूटा।
सोमनाथ की लूट महमूद के जीवन की सबसे बड़ी लूट कही गयी
सैकड़ों मन सोना, चांदी,हीरे जवाहरात,दास,दासी गजनी ले जाये गए।
सैकड़ों मन सोना, चांदी,हीरे जवाहरात,दास,दासी गजनी ले जाये गए।
अंतिम आक्रमण......
1026 ईसवीं में जाटों पर आक्रमण-----
कहते है सोमनाथ आक्रमण से वापसी में जाटों ने बहुत तंग किया
था अतः उन्हें दंड देने के लिए यह आक्रमण किया,
सोचने वाली बात है किस तरह तंग किया होगा.....वस्तुतः जाटों
ने सोमनाथ की लूट का खजाना महमूद से छीन लिया था,
उसे वापस पाने के लिए यह आक्रमण किया, पर उस के हाथ न
खजाना,न विजय हाथ लगी।
कहते है सोमनाथ आक्रमण से वापसी में जाटों ने बहुत तंग किया
था अतः उन्हें दंड देने के लिए यह आक्रमण किया,
सोचने वाली बात है किस तरह तंग किया होगा.....वस्तुतः जाटों
ने सोमनाथ की लूट का खजाना महमूद से छीन लिया था,
उसे वापस पाने के लिए यह आक्रमण किया, पर उस के हाथ न
खजाना,न विजय हाथ लगी।
इस प्रकार हम देखते है कि पहले से पांच आक्रमण एक ही राज्य /
राज परिवार ... राजा जयपाल व उनके पुत्रों पर हुए... अतः ”एक ही“
राजनीतिक जीत गिनी जायगी।
राज परिवार ... राजा जयपाल व उनके पुत्रों पर हुए... अतः ”एक ही“
राजनीतिक जीत गिनी जायगी।
नगरकोट काँगड़ा,थानेश्वर,मथुरा (वृन्दावन) और कन्नौज पर
अभियान।
अभियान।
मंदिरों की लूट के लिए किये कश्मीर पर “दो बार” महमूद की बुरी
तरह हार हुई। कालिंजर पर “दो बार“ और ग्वालियर पर “एक बार”
बुरी तरह हार का मुह देखना पड़ा।
तरह हार हुई। कालिंजर पर “दो बार“ और ग्वालियर पर “एक बार”
बुरी तरह हार का मुह देखना पड़ा।
इस प्रकार एक ही राजनीतिक जीत और चार बार मंदिरों की लूट
तथा पांच बार "हार" के सच पर महमूद को कितना महत्व दिया
जाय यह सोचने की बात है।
तथा पांच बार "हार" के सच पर महमूद को कितना महत्व दिया
जाय यह सोचने की बात है।
महमूद गजनवी जिसके आक्रमणों का कोई राजनीतिक परिणाम
न आया हो,जिससे भारतीय समाज और जन जीवन जरा भी
प्रभावित न हुआ हो,उसके वापस जाते ही सब कुछ यथावत
चलने लगे।
न आया हो,जिससे भारतीय समाज और जन जीवन जरा भी
प्रभावित न हुआ हो,उसके वापस जाते ही सब कुछ यथावत
चलने लगे।
इतनी महत्वहीन घटना कि सम सामयिक भारतीय लेखको ने इसका
जिक्र तक न किया हो,उसे आज के भारतीय इतिहास में एक महत्व
पूर्ण घटना दिखाना क्या सही है ?
जिक्र तक न किया हो,उसे आज के भारतीय इतिहास में एक महत्व
पूर्ण घटना दिखाना क्या सही है ?
कैसे इतना महत्व दिया जा सकता है कि “महमूद गजनवी “ भारतीय
इतिहास का प्रमुख अध्याय/ पाठ बना दिया।
--#साभार_समाधान_blogspot;;
इतिहास का प्रमुख अध्याय/ पाठ बना दिया।
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